पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कठील ७२३ कडूया कृठील–ज्ञा पुं॰ [सं० कण्ठील]१. ऊँट । ३. वह पात्र जिसमे मथने काल-सज्ञा पु० [स० करनाल, फी० करनाय] एक वाजा । का काम किया जाय किये ।। जो पीतल की नन्नी का बनता है और मुंह में लगाकर वजाया कठीला--सज्ञी झी० [नु० कठीला] मथन का पात्र (को०)। जाता है। नरसिंहा । तुरही । तूरी । कठेकाल:--संज्ञा पुं० [स० कण्ठे काल] शिव । महादेव (को०] । कड़ाल ३-सह्या पुं० [हिं० कर= मूज] जोलाहो का एक के वीनुमा कठौप्य–वि० [सं०] ध्वनि या वर्ण जो एक साथ कई अौर अोठ के औजार जिसपर ताना फैलाकर पाई करते हैं। ' मारे से वाला जाय । विशेष—यह दो सरकडो का बनता है। दो वरावर वरावर विशेq---- शिक्षा में 'ग्रो' और कंठौप्य वर्ण कहलाते हैं । सुरकडों को एक साय रखकर बीच में बांध देते हैं। फिर कठ्य–वि० [सं०] १ गते से उत्पन्न । २ जिसका उच्चारण कठ उनको अाढ़े कर आमने सामने के भागो को पतली रस्मी मे ने हो । ३. गन्ने यो स्वर के लिये हितकारी । जैसे,—-कठ्य तानते और ऊपर के सिरो पर तागा वाँधकर नीचे के सिरों पत्र । को जमीन में गाड़ देते हैं। इस तरह कई एक को दूर दूर पर केळ्य-नज्ञा पुं० १ दह वर्ण जिसका उच्चारण कंठ से होता है । गाड़कर उनके सिरे पर बँधे तानो पर ताना फैलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में ऐसे आठ वणं हैं—यु, क, ख, ग, घ, ङ, है कडिका-सच्चा स्त्री० [सं० कण्डिका १ वेद की ऋवाओं का समूह । और विसर्ग । २ वह वस्तु जिसके खाने से स्वर अच्छा होना २. वैदिक ग्रं यो का एक छोटा वाक्य, खेड या अवयव । पैरा । है या गवा चुलता है। गले के लिये उपकारी अ६६ । कडिया--सज्ञा स्त्री० [सं० फण्ड]१ बाँस की डोलची । २ पिटारी । विशेष---स5, कुन जन, मिर्च, अच, राई, पीपर, पान । गुटिका कडिन-व० [सं० कण्डिल] प्रमत्त । मधुमत्त (को॰] । करि मुख मैएि सुर कोकिला समान –वैद्य जीवन(शब्द०)। को'--संज्ञा स्त्री० [हिं० कडा] १ छोटा क डा। गोही । उप नीं। कडन- सुज्ञा पुं० [सं० काइन]१ कटन।। २ पिटाई। ३. कुटाई। २ सुख। मल । गोटा । सुद्दा ! ३ वह पात्र जिसमें कडी जलाई जाय । अँगीठी । उ--दोनों बच्चे मुश्की र हफना ४ भूनी अलग करना [को॰] । कडी (अँगीठी) को घेर कर बैठे रहे - फूत्रो०, पृ० ८१ । कुइनी--बुजा सीम० कग्डन] १ ऊबन । ३ मूल (को॰] । केडी-संज्ञा स्त्री० [सं० करण्ड पीठ पर वाँधी जाने वाली वह टोकरी के इम–वि० [अ० कडेन] १ बेकार। * नप्ट । ३. भ्रप्ट । उ० -- जिम वैठकर या मामान लादकर लोग बदरीनाथ, हिमालय नाडु मन चाव न कम हो गया ।अभिशप्त, पृ० ५२ । पहाइ पर यात्रा करते हैं। करा- सज्ञा झी० [२०] मोदी नस । मोटी नाडी । कडील-पझा स्त्री॰ [फा० कदोल] मिट्टी, अबरक या कागज की बनी विशेष-सुश्रुत मे मो वह क इराएँ मानी गई हैं जिनसे शरीर के । हुई लालटेन जिसका मुह ऊार होता है। इसमें दीया जलाकर अवयव फैन और मिकुडते हैं। लटकाते हैं। कइसरो)---सुज्ञा स्त्री[सं० हपठी] ३० ‘कठथी' । उ०—कडसरी कटी । कड़ीलिया- संज्ञा स्त्री० [हिं० कडील या पुर्त० गडील] १ वह ऊँचा Tीबा ग्रुन करत, चंदण निले तिलक दुत चंद ।—रधु० रू०, धरहरा जिसके ऊपर रोशनी की जाती है । प्र० ३५३ । विशेष--यह समुद्र में उन स्थानों पर बनाया जाता है जहाँ चट्टानें कइहार-मुंज्ञा पु० [स० कणचरि] दे० 'कर्णधार' । उ०—करे जीव रहती हैं और जहाज के टकराने का डर रहता है । जहाजो | भव पार कइहार सो ।- वीर ग्र०, पृ० १३२! का ठीक मार्ग बनाने का काम भी इससे लेते हैं। प्रकाश कडा--मज्ञा पुं॰ [स० स्कन्दन = मलत्याग] [स्त्री० अपा० कडी] १. स्तन (लाइट हाउस) । १ सूखा नोवर जो ईवन के काम में माता-है। ३ वह वाँम जिसपर कदीले लटकाई जाय । मुहा०—कडा होना =(१) मुखना । दुर्बल होना। ऐठ जाना। कडु--संज्ञा स्त्री० [सं० कण्डु] खुजली । खाज । (२) मरे जीना। जैसे,—ऐवा पटका कि कडा हो गया। कडुक- वंछा पुं० [सं० फण्डुक] १ मिनाबाँ । २ तमाल । उ०२ नवे प्रकार में पथा दुग्रा सूखा गोवर जो जलाने के काम में । | कालकच्च तापिच्छ पुनि डुक सोह तमाल --प्रनेक (शब्द०)। अाता है । ३ सूखी मन । गोटः । सुद्दा । कडुघ्न-वि० [सं० कण्डुघ्न खुजली मिटानेवाला [को०] । कडा--संज्ञा पुं० [सं० काण्ड] मज के पौधे का डठन जिसके चिक, कडुघ्न-सा पु० सफेद सरसों ।। | कलम, मोटे ग्रादि बनाए जाते हैं। सरक। कडुर-वि० [सं० कपडुर] खुजली पैदा करनेवाला [को०] । कडानक- सज्ञा पुं० [सं० कपडानक] शिव की एक अनुचर [को०] । कडू-संझा [सं० फण्डू] दे० 'कडु'। कडारी---सजा पु[न० कारिन्] १. जहाज का माँझी । (ल०)। कडूयन--सज्ञा पुं० [स० कण्डूयन] खुजलाहट [को॰) । २ नाव नेनेवाला । कर्णधार ।। | कडूयनक-- वि० [सं० कण्डूयनक खुजबी पैदा करनेवाला [को॰] । काना--प्रज्ञा पुं० [म० कण्डोल] लोहे और पीतल आदि को चद्दर कडूयनी-सच्चा स्वी० [स० काडुपनी] रगड़ने के काम आनेवाला एक का बना हुप्रा कूपाकार एक गहरी बरतन जिसका मुहैं गोल | प्रकार का ब्रुश [क]।। और चौडा होता है। इसमें पानी रखा जाता है। कडूया-सड़ा ब्री० [५० कण्डूया! खुजली [को०] । २-२५