पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०८

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कंठत्राण ७२२ कठीरव कत्राण-सज्ञा पुं० [सं० कण्ठत्राण] लढाई मे गले की रक्षा के लिये कठस्थ-वि० [स० कण्ठस्य] १ गले में ग्रटका हुआ । कठपत । | बनी हुई लोहे की जाली या पट्टी (को॰) । २ जनानी । जिह्वाग्न । क । क ठाने । कठदवाव--संज्ञा पुं० [हिं० कठ+दबाव] कुशनी का एक पेंच जिसमे कठहार---संज्ञा पु० म० कण्ठहार] गले में पहनने का एक खिलाड़ी एक हाथ से अपने प्रतिद्वदी के कठ पर थाप मारता गह्ना । हार ।। है और दूसरे हाथ से उसका उसी तरफ का पैर उठाकर उसे | कठा-सा पु० [हिं० कठ] [वी० अल्पा० कठी] वह भिन्न भिन्न भीतरी अज्ञानी टाँग मारकर चित कर देता है । इसे क 5भेद रग की रेखा जो तोते आदि पक्षियों के गले के चारों ओर भी कहते है। निकल आती है। हंसली । २ गले का एक गहना जिम में बडे कठ्नीलक - संज्ञा पुं० [म० फण्ठनीलक] १ मशाल । २ लूक । बड़े मन के होते हैं। ये मनके सोने, मोती या द्राक्ष के होते है। | लुकारी । लुक्क (को०] ।। ३ कुते या अँगरखे का यह अर्ध चद्राकार माग जो गले पर कठभग --- संज्ञा पुं० [स० कण्ठभङ्ग] हकनाना । हकलाहट [को०] । अागे की ग्रोर रहता है । (दर्जी) । ४ वह अर्धचद्राकार कठमणि-सज्ञा पुं० [सं० कण्ठमणि] १ गले में पहना गया रत्न । कटा हुआ कप जो कुरते या ग्रगे के कठे पर लगाया जाता उ०—गज मुकु IT कर हार कठभनि मोहइ हो ।—तुलसी है । ५ पत्थर या मोढ़ की पीठ का वह जो माग उपान और ग्र ०, पृ० ४ । २ घोडे की एक मैवरी जो कठ के पास होती है । कारनिस के बीच में हो । ३ अत्यंत प्रिय वस्तु (को॰) । कठाग्न--वि० [स० कण्ठाग्र] कस्य । जवानी । वजन । कंठमाला-सज्ञा पु० [सं० कण्ठमाला]’ गले का एक रोग जिसमें कठाग्रहण----सज्ञा पुं० [स० कण्ठग्रहण] कठपलेप । कठानिन । गले रोगी के गले में लगातार छोटी गिल्टियाँ या फुदि । लगाना । उ०-दुरि थक ही मजण कुग्रहण करति । निकलती हैं । ---ढोला०, दू०, २१४ ) कठला'-सज्ञा पुं० [हिं० कठ+ला (प्रत्य॰)] १ गले में पहनने का कठोधन-~~-सज्ञा पुं० [सं० कण्ठ+रोध १ सस रुनना । बच्चों का एक गहना । कठुला ।। २ मृत्यु के निकट' की अवस्था । उ०क ठरूधन भए मोह विशेप-नजरपट्ट, वाघ का नख, दो चार तावीज अादि को तागे में लागा अजहू' ।- पलटू०, १० १, पृ० २६ ।। | में गूथकर वालको यो उनके रक्षार्थ पहुनाते हैं । | कठाल- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ नाव । नीका । २ कुदाल । वैलव । ३ २ घेरा डालना । घेरा। उ०--ऊड छा उप्पर कठला कर युद्ध । लडाई 1४ मयन का पात्र । ५ ऊँट । ६ एक खाद्य । परभष्पुरि अखरे 1-पृ० रा ० ४१४ । कद । सूरन । ७ पटेल । सावन । ६ थैला (को॰) । कठाला- सज्ञ: Wी० [सं० कण्ठाला] वह पा र जिममे मथने का कार्य कठला- संज्ञा स्त्री॰ [स० कठला वेत की बनी डलिया (को०)। | किया जाये [को॰] । कठली -सज्ञा स्त्री० [हिं० कठला] दे॰ 'कठला'–२ । उ०—दुसेन्या कठिका-- संज्ञा स्त्री० [सं०] एक लडीवाला हार [को०] । | दरम्सी कडे कठली भी ।---रा० ख०, पृ० ३२ । कठी-वि० [स० कण्ठिन! कठ या ग्रीवा सवधी (०] । केठशालुक-संज्ञा पुं॰ [स० कुण्ठालुक] एके रोग जिसमें गले के कठोर--सा क्षी० [मु० फण्ठी]१ क । गला । २ हार। छोट दान | भीतरी कफ के प्रकोर से बैर बरावर गाँठ उत्पन्न हो जाती का हार । ३ घोड़े की गर्दन की रस्सी (को०] । हैं । यह गाँठ खरखुरी होती है और काँटे की नाईं बुगती है। कठी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कठा का अल्पा० रूप] १ छोटी गुरिया । कठश डो—संज्ञा स्त्री॰ [स० कण्ठशुण्डी] गले की ग्र थि का शोथ या कठा । २ तुलसी चपा आदि के छोटे छोटे मनियों की माला | सूजन (को॰] । जिसे वैष्णव लोग गले में वविते है ।। कठशल-सज्ञा पुं० [स० कधठझूल घोडे के गले की एक भी मुहा०—कठो उठाना या छुना = कठी की सौगध खाना । कसम जो दूषित मानी जाती है । खाना । दठी तोडना =(१) वैष्णवत्व का त्याग । मास मछली कठशोभा- संज्ञा पुं० [स० कण्ठ शोभा] एक छद जिसके प्रत्येक फिर खाने लगेन। (२) गुरु योजना । कटी देना=चेला करना चरण में ११ अदार होते हैं और लघु अक्षरों की स्थानस मता या चेला बनाना। कठी वाँधना=(१) चेना बनाना । चेला बनी रहती है । जैसे,—फिरे हय बख्खर पखर से । मेने फिर मूडना । (२) अपना अघ भक्त बनाना । (३) वैष्णव होना । इदुज़ पख कसे पृ० रा०, ६३२ । भक्त होना । (४) मद्य, मास छोडना । (५) विषयो को कंठशोप- सुज्ञा पुं० [स० कण्ठशोप] १. कठ सूखना । गला सूखना । त्यागना । कठो लेना = (१) वैष्णव होना। भक्त होना । (२) २ व्यर्थ विवाद [को०)। मग्न, मांस छोड़ना । (३) विपयो को त्यागना ।। कठो –सज्ञा चौ० [म०] १ गले का एक गहना जो सोने का अौर । ३ तोते अनि पक्षियों के गले की रेखा । हंसली ! कठी । जड़ाऊ होता है। २ पोते की कठी। गुरिया । घूटा । | कठोर –मझा पुं० [स० कठीण] दे० कंठीरव'। उ०—सीत मेह कसरी--सज्ञा स्त्री० [सं० फण्ठश्री] दे० 'कश्रो-१' । उ०--कमरी मारुत तप सहूणो शकस वतो कठोर रहैं ! -रघु रू। पृ० १०२। बहू क्राति मिलि मुकताहल 1---पकीदास ग्र०, मा० ३, कठीरव--सच्ची पुं० [स० कण्ठोरय] १ सिह । २ कबुतरे । ३ मत पृ॰ ३६ । वाला हाथी । ४ स्पष्ट उक्ति। स्पप्र्थक शब्दों में कैयन [को॰] ।