पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०७

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कटर ७२१ कटतालव्य झट्र--संज्ञा पुं० [अ० डिकटर] १. शशे की बनी हुई सुदर सुराही मुहा०-- कठ सूखना = प्यास से गला सूखना । जिसमे शराब और सुगंध आदि पदार्थ रखे जाते हैं। यह २ गले की वे ननियाँ जिनमें मो जन पैट में उतरता है। अच्छे शीशे की होती है, इसपर वेल बूटे भी होते हैं। इसकी । और अावाज निकलती है । घाँटी । डाट शीशे की होती है । करावा । २ चौड़े मुह की शीशी यौ०- कठस्य । कठाग्र । या वोतले । ३ कनटर (वोल०) । मुहा० ---कठ करता या रखना - कम्ब क' ना या रखन' । कटल-सज्ञा पुं॰ [म० कण्टल] वेवूल ० । जवानी याद करना या र खुनः } कठ खुलना = (१) सधे हुए का साफ होना । (२) अावाज निकलना। कंठ फूटना = कटा--संज्ञा पु० [अ० को डेढ़ बालिश्त की एक पतली लकडी जिसके एक छोर पर चमड़े का एक टुकड़ा लगा रहता है जिससे (१) वणों के स्पष्ट उच्चारण का आरभ होना । अावाज खुलना । वच्चों की अावाज साफ होना । (२) बकरी फूटना। चुग्हिारे चूडी * गते हैं। वक्कुर निकनन । मुह से शब्द निकलना । (३) घाँटी फूटना। कटाइन'-- मुज्ञा स्त्री॰ [सं० कष्टक-+ हि० आइन (प्रत्य॰)]१. चुडेल । | नुतनी। डाइन । ३ लडाकी स्त्री । दुष्टा स्त्री । कर्कशा स्त्री । युवावस्था और में होने पर अावाज को बदलना। कई बैठना कटाईन--वि० [देश॰] १ नकद । २. ठीक ठीक । पक्का । या गेलो वैठना == अबाज का बेसुरा हो जाना । अावाज का भारी हो ना ६ कठ होना= कठाग्र होना। जवानी याद होना । कटॉप- सज्ञा पुं० [सं० कटोप] किसी वस्तु की अगला हिस्सा जो जैसे, उनको यह सारी पुस्तक कठ है। | भारी से भारी सिर । यौ०. कंटापदार- जिमका अागा नारी हो । जैसे,--कटापदार ३ स्वर । अावाज। शव्द । जैसे,--उमका कठ वडा कोमल है। उ०—-ग्रति उज्वला सव व लहू बसे । शुक के कि जूता । कटाफल---सज्ञा पु० [सं० कण्टाफल] कटह[को॰] । पिकादिक कठहर |---शव (शब्द०) । ४ वह लाल नी । कंदाल----संज्ञा पु०स० कण्ट लु]एक प्रकार का रामवस या हाथीचको श्रादि कई रगो की लकीर जो सुग्गो, पड्क अादि पक्षियो के गले के चारो अोर जवानी में पड़ जाती है । हॅपली । क । जो बबई, मदरस, मध्य भारत और गगा के मैदान में होता है । इसकी पत्तियों के रेशे से रस्सिय वटी जाती हैं ।। उ०--(क) बाते श्याम कठ दुइ वाँ। तेहि दुई फेद डरो मठ जीवां 1--जायसी (शब्द॰) । के टालु--सज्ञा पुं० [स० कण्ट्रोल] अनेक वनस्पतियों के नाम । जैसे, मुहा०—कठ फूटना = तोते अादि पक्षियों के गले मे रगीन रेखाएँ | वातंकी, वज, वर और वृहती (को०) । पडना । हैमली पना या फूटना । उ०-हीरामन हो तेहिक कटाह्वये-भज्ञा पुं० [सु ० कण्टाढ्य] पद्म की जड [को०] । परेवा । कठ फूट करत ते हि सेवा |--जायसी (शब्द॰) । कटिका-संज्ञा स्त्री० ]स ० कण्टक] १ पतली छोटी नोकदार नत्थी ५ किनारा । तट । तीर । काँठा । जैसे,- वह गाँव सदी के | करने की तीली ! २ पिन । ३ अलिपिन। कठ पर बसा है । ६ अधिकार है। पास । उ०~-निज केन कटी'- वि० [सं० कण्टिन्] काँटेवाला । कटकयुक्त [को०] । पुरसाने । पृ० १०, १३।११०। ७ मैनफ्ल का पेड़ । कटी-संज्ञा पुं० अनेक वृक्ष के नाम, जैसे,-- अमार्ग, खदिर, गोक्षुर। मदन वृक्ष । अादि कौ० ।। कठकुन्ज- मज्ञा पुं० [सं० कण्ठकुज] से निपात रोग का एक भेद ।। कटून मेट- सज्ञा स्त्री० [अ० कैटूनमेट] वह स्थान जहाँ फौज रहती। विशेष---यह तेरह दिन तक रहता है। इसमे सिर में पीड़ा मौर हो । छावनी ! | जर न होती हैं, सारा शरीर गरम रहता और दर्द करता है । कटोप---संज्ञा पुं॰ [हिं० कान+तोप] एक प्रकार की टोरी जिससे । कठकूजिका–संज्ञा स्त्री॰ [सु ० कण्ठकूजिका] वीणा । सिर और कान दुके रहते हैं। इसमें एक चेंदिया के किनारे कठकुणिक संज्ञा [म० कण्ठकूजिका वीणा ! छह मात अगुल चौडी दीवाल लगाई जाती है जिसमें चेहरे के। कठगत--- वि० [सं० कण्ठगत] गले में प्राप्त । गले में स्थित । गले में लिये मुह काट दिया जाता है। अाया हुमा । गले मे अँटका हुआ । कंट्रक्ट-सज्ञा पु० [अ०] ठेका । ठोका । इजारा। महा०—- प्राण के ठगत होना = प्राण निकलने पर होना । मृत्यू का कृट्रेक्टर-सज्ञा पु० [अं॰] ठेकेदार या ठीकेदार। निकट अाना । उ०----प्राण कठगत भयउ भुवालू |--तुलसी कट्रोल--संज्ञा पुं० [अ०] १ नियंत्रण | काबू । जैसे—इतनी बडी (शब्द॰) । सभा पर ट्रोल करना हँसी खेल नहीं । २ किसी वस्तु के कठत.---क्रि० वि० [सं० कण्ठत.] १ कठ या गले से । २ खले समुचित वितरण के लिये सुरकारी अधिकारे । रूप में यह स्पष्टतया [को॰] ।। यौ॰—क ट्रोल अफिस वह कार्यालय जहाँ से कट्रोल की कठतलासिका--सज्ञा स्त्री॰ [स० कण्ठेतलासिका] रस्सी या चमड़े की कार्यवाही का सचालन होता है। कट्रोल शॉप = कंट्रोल की | पट्टी जो घोडे के गले में रहती है [को०] । दुकान । कठतालुक्य- वि० [म० फण्ठतालव्य] (वर्ण) जिनका उच्चारण कठ-संज्ञा पुं० [म० कण्ठ] [ बि० कठ्य] १ गला । टेंटुअा। उ०~ कठ और तालु स्यानो से मिलकर हो । मेली कठ सुमन की माला ।—मानस, ४८ । विशेप-शिक्षा में 'ए' और 'ऐ' को क इतालव्य वर्ण या कठती नव्य यौ०--कठमाला ! कहते हैं। इसका उच्चारण कंठ और तालु से होता है।