पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०६

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जुलं ७२० कंटकौद्धरण कजल सच्चा पुं० [स०] एक प्रकार के पक्षी । कटक-- ससा पुं० [स० कण्टक][वि० कटकित] 1 काद।। उ०—ध्यन कजा--सज्ञा पुं० [स० करञ्ज] १ ए के कंटीली झाडी। कुसि प्रकुस क न जुत वन फिरत कटक किन है ।--- मानस, विशेप-इसकी पत्तियाँ पिरिस की पत्तियो से कुछ गिनती ७५१३ । २ माई की नोक । ३ दद्र शबू । ४. उमम गवाले जुलती कुछ अधिक चौडी होती है। इसके फूल पीले गीले के अनुसार वह पुरुष जो वाम मा न हो या पाममार्ग का होते हैं । फो के गिर जाने पर केटी फलियाँ लगती हैं । विरोधी हो। पशु । ५ विध्न । Rधा । उ । ६ माघ । इनके ऊपर का छिलका कडा र केटीला होता है । एक ७ ज्योतिप के अनुसार जन्मकुंडी में पहला, चौथा, सातव एक फली में एक से तीन चार तक बेर के बरावर गोल और दसवाँ स्थान । ६ बाधक । विनत । उ०—जो निज गोल दाने होते है । दानों के छिलके कहे पौर गइरे खाकी गो-द्विज देव धर्म कर्म का कटक ।-सा हैन पृ० ४१७ । । धुएँ के रग के होते हैं। के लड़के इन के दानो से गोनी की तरह वस्तर । काच ।—हिं० । खेलते हैं। वैद्य लग इसको गुदी को अपध के काम में लाते यौ०-निष्कटक हैं । यह ज्वर और चमरोग में बहुत उपयोगी होती है। कटकद्र म—सी पुं० [स० कण्टद्कम] १ कटीली चुः । २ कैंटीली अँगरेजी दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है। इससे तेल झाडी । ३ शाल्मलि वृक्ष । सेमल का पेड (को॰) । भी निकाला जाता है जो खुजली की दवा है । इसकी फुनगी कटक फल-सज्ञा पुं० [स० कण्टकफल] १ कटहन। २ गया। और जह भी काम में आती है। यह हिंदुस्तान और बर्मा में। ३ एरड या रेड़ का पेड । ४ धतुरा ०} । बहुत होता है और पहाड़ों पर २५००० फुट की ऊँचाई तक । तथा मैदानो और समुद्र के किनारे पर होता है । इसे लोग। कटकशोधन-संज्ञा पुं० [अ० कटकशोधन २० कटकद्वरण' । खेतो के बाद पर भी धने के लिये लगाते हैं । |- कौटिल्य अर्थ ०, पृ० २०० । पर्या०- गटाइन । करजुवा । कुवेराक्षी । कचिका । वारिणी ।। कटकणी -सज्ञा स्त्री॰ [स० फप्टकणी ] दे० 'के करी (को०)। कटकिनी । कटकार--- सज्ञा पुं० [स० कण्टकार [० रुटकारी] १ से मल । ३ २ इस वृक्ष का बीज । एक प्रकार का चयूल । विकक । ची । ३ भटकटैया । कजा-वि० [देश॰ अथवा स० कन्ज सेवार के रग की, काही पा खाकी कटेरी। रग का] [छौ• कजो] १ कने के रग की। गहरे खाकी रग कटकारिका-सज्ञा स्त्री० [सं० कण्टकारिका] ६० 'कटका' [को०)। का । जैसे,--क जी श्रख । कटकारी---सज्ञा स्त्री॰ [म ० कट कारी] १ भटकटैया । २. करी। विशेष—इस विशेषण का प्रयोग अाँख ही के लिये होता है । छोटी कटाई । २ सेमल । २ जिसकी अाँख कजे के रग की हो । उ०—ऐवा ताना कहे कटकाल-सज्ञा पु०सि० कण्ट काल]१ कटहुन । २ काटो का घर। पुकार | कजे से रहियो हुशियार । (कहा०) । कटकालुक-सज्ञा पुं॰ [स० कण्टकालुरु] जवामा । कजारसज्ञा पुं॰ [स०] १ मोर । २ वृदर । ३ हाथी । ४ मुनि कटकाशन--संज्ञा पुं॰ [स ०] ऊँट । ५ सूर्य । ६ व्रह्मा (को॰] । कटकाष्ठील--सज्ञा पुं॰ [स० कण्टकाष्ठील] एक तरह की मछली । क्रुजावलि- सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे मगण, नगण और दो जगण गौर एक लघु ( म न ज ज ल ) कटकाङ्क्षप-सज्ञा पुं० [सं० कण्टकाह्वय] १० कटह्व' (को०] । होता है। इसे पकजवाटिफा और एकावली भी कहते हैं। केटाकत--वि० [सं० फण्टाकत भी कहते हैं। कटकित--वि० [स० फटकित] १ रोमाचित । पुलकित । उ०--- उ०—'भानुज जल महँ प्राय परे जव 1 कजवलि बिकस सर । होति अति उससि उसामन ते, सहज सुवासन र मजु लागे में तव । त्यो रघुबर पुर अाय गए तव । नारिरु नर प्रभुदे पौन ।---देव (शब्द॰) । २ काँटेदार। उ०—कमल कटकित लखिके सव (शब्द॰) । सजनी कोमल पाय। निशि मलीन पंह प्रफुलित नित दरसाय । कजास—सय पु० [हिं० गाँजना] कहा। तुलसी (शब्द०)। कजिका-सा स्त्री० [स० कञ्जिका] १ ब्राह्मणयप्टिका वृक्ष २ हटकिनी-सज्ञा स्त्री० [सं० कंपटकिनी] भटकटमा (क्ने । | बम्हनेटी । दे० 'भारगी' । | कटकिनी–वि ० १ कॅटलो । २ व्यग्रक । ३ चुभनेवानको । कजिनी-सबा सी० [सं० कजिनो वेश्या ।। कटकिल---सज्ञा पुं॰ [स० कण्टकल]एक तरह का कैंटीला वमको॰] । कजूस--वि० [सं० कण+हिं० चूस] [सम्रा कुजूसी] जो धन का भोग न करे । जो न खाय और न खिनावे । कृपण । मुम । मक्खी कटको'---वि० [स० कण्टकिन्] कोटेदार । केटोला । कटक---संज्ञा पुं० १. छोटी मनी । कैटव ।। २ खेर का गेड। कजूसी-सक्षा स्त्री० [हिं० कजूत कृपणता। सूमपन । उदारता ३ मैनफल का पेह । ४ वाँस । ५. वर का पेड । ६ गोखरू! का अभाव । | ७, काँटेदार पेड ।। कट—वि० [स० कण्ट] कोटे से युक्त [को०] । कटकी--सज्ञा स्त्री० [सं० कण्ट की ] 'भटकटैया । यौ० --कटपत्रफल= ब्रह्मदळी नाम का पौधा । कटफल =(१) कटकोद्धरण---सज्ञा पुं॰ [सं० फण्टकोद्धरण]१. काँटा निकालना । २ | कटहुल । (२) धतूरा । (३) लताकरज । (४) गोखरू । विघ्ननिवारण । ३ शत्रु का दमन । ४ राष्ट्र या समाजद्रोहियो कट -सा पु० [हिं० कोट] ३० 'काँदा' । का अनुशासन -मनु, म ६ ।