पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०५

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कंचन ७१६ कजरी मुहा०-- कचन बरसना=(किसी स्थान का) चमद्धि अौर शोभा कचुरि -सुज्ञा स्त्री० [सं० कञ्चुला] केचुन । उ०-नैना हरि में युक्त होना । ३० - तुनी वहाँ न जाइए कंचन बरसे मेह। अंग ५ लुबधे रे माई । लोक लाज कुल की मर्यादा बिसराई । –तुलमी (शदद॰) । जैसे चंदा चकोर, मृगी नाद जैसे । कचुरि ज्या त्यागि फनिक २ धन । मपत्ति । उ०—(क) च न च न सब कोउ कहै पहुँच फिरत नही तैने --सूर (शब्द०) । विरल कोय । इक कचन इक कामिनी दुर्गम घाटी दोय -- कचूलिका--सज्ञा स्त्री॰ [३० कञ्चुलिका] अँगिया । चोली [को । कदर (शब्द०) । (छ) वंचक भगत कहाय राम के । किंकर कचूली- सज्ञा स्त्री० [सं० कञ्चली] केंचुल । उ॰—(क) विप कमें कचन' कह काम के [---तुलसी (शब्द०)। ३ धतूरा । ४ की कबुली पहिर हुआ नर नारी ।-कवीर ग्र०, पृ० ४१ । एक प्रकार का कचनार । रक्त काचन । ५. [स्त्री० कचनी] एक (ख) माँग ते मुकुतावनि टरि, अलक संग अरुझि रही उरगिनि जाति का नाम जिसमें स्त्रियाँ प्राय वेश्या का काम करती हैं। | सत फन मा नौ कच लि तजि दोनी ----सूर० १०।१६.६४ । कचन- वि० १ नीरो । स्वस्य ! ३ म्वच्छ । ३दर । मनो। कुचूq--सुज्ञा जी० [हिं०] ३० 'कचकी'-१' । उ० --हेरे सिय एम कचनपुरुप--संज्ञा पुं॰ [स० काञ्चनपुप] सोने के पत्र पर खोदी हुई । | जमग हियो, कचू कज श्रीपत। कहियो ।—रघु रू०, पुस्प की एक मूति जो मृतक ने मे महाव्राह्मण को दी जाती पृ० ११३ । | हैं । यज्ञ पुस्प को भी कांचनपुत्प कहते हैं। कचूवा--संज्ञा स्त्री० [स० कञ्चुक] दे० 'कंचुवा-२' । उ०—(क) सिर कचनिया--मुज्ञा स्त्री० [हिं० कचनार] एक छोटी जाति का कचनार । सड़ी गलि कचवउ हुवउ निचोवण जोग । ढोला ० ० ८३ । | इसकी पत्तियां और फल छोटे होते हैं । (ख) रतन जडित को काचली अ कली कचूर्वउ पर हो कबुनो-सज्ञा स्त्री० [सं० कृञ्जिनी वेश्या अथवा स० केचन + हि० ई सुमीड |--बी० रासो, पृ० ६६ ।। (प्रत्य॰)] वेश्या । उ०-नेवक द्विज दच्छिना, कचनी कवि, [, केचनी कवि कछा--संज्ञा स्त्री० [सं० इञ्चिका बाँस को पतली टहनी यो हि० धन पावत ।—प्रेमबन, पृ० ३३ ।। | कनखा, मि० तु० ‘कमचा'] पतनी डान | कनखा । कल्ला । कचा--वि० [हिं० कच्चा] दै० 'कच्चा' । उ०—कहै दरिया परिपंच कज-सज्ञा पुं॰ [स० कञ्ज] १ ब्रह्मा । २ कम न । फंदा रचा इसिक नामुक निनु रहत कचा ।सं० दरिया, यौ--कजज= ब्रह्मा । ३०-कजज की मति सी वड़ भागीं । पृ० ७३ । कचिका-संज्ञा स्त्री० [सं० कञ्चिका]१. वाँस की शाखा । ३ फुसी । श्री हरि मदिर सो अनुराग --केशव (शब्द०)। ३ चरण की एक रेखा जिसे कमल या पद्म कहते हैं। यह विष्णु छोटा फोड़ा । के चरण में मानी गई है । ४. अमृत । ५. सिर के बाला केश। कची--वि० [हिं० कच्ची] दे० 'कच्ची' । उ० -रज श्री विद की। कंची काया --स० दरिया, पृ० १६७ ।। कज अवलि-सा लौ० [सं० कञ्ज+प्रावलि] दे० 'क जावलि' । कचु-सज्ञा जी० [स० कन्चुक] दे॰ 'कंचुकी' । उ०-६वर्ण सूत्र में कजई'--वि० [हिं० जा! कर्ज के रग का । बुएँ के रग की। रजत हिलोरे कच काढती प्रात 1-जन, पृ० ८८ । खाकी । कचुक--संज्ञा पुं० [सं० कंचक] [ी० कंचकी] १ जामा ! चोक । कजईसा पु० १ एक प्रकार का रग । खाका रंग । २ वह चपकन । अचान। २ चोली । अँगिया । ३ वस्त्र । ४. घोडे। जिसकी अखि कनई रग की होती है । चन्द्र। कवच । ५. केंचुल । ६. कचुक के प्रकार का कवच कजक--सज्ञा पुं॰ [स ०] १ पक्षी विशप । ३ मैना [को०] । जो घुटने तक होता था (को०)। ७ भूमी या छिलका (को०)। कजड़-संज्ञा पृ॰ [देश० या हि० कोलजर] [स्त्री० कजडिन, कजड़ी, ८. तपमा । चमड़े का पट्टा (को॰) । | कजरी एक अनार्य जाति । कचुकालु–सुज्ञा पु० [स० कञ्चकालु सर्प । नप [को॰] । विशेप--यह भारतवर्ष के अनेक स्थानों में विशेषकर बुदेलखंड में कृचुक्ति ---वि० [सं० कञ्चुकित]१ जो कचुकयुक्त है। २ जो कवच पाई जाती है । इम जाति के लोग रस्सी वटते, सिरक बनाते धारण किए हों। ३ कई या अनेक पर्तावाला (मोती) (को०)। और भीख माँगते हैं । कचुकी– संज्ञा स्त्री० [स० कञ्चुकी] १. अँगिया । चोली । उ०— कजन-मंज्ञा पू० [सं० कञ्जन] १ कामदेव । १ पक्षीवि शेप । क वह गुपाल कचही फारी कद भए ऐसे जोग ।----सुर०, ३ मैना [को॰] । १०७७८ । २ के चूल | ३०--मुदर पानी कंचुकी नौकसि मागौ यांप ---दर ग्र०, मा० २, पृ० ७१०। कजनाभ-सज्ञा पुं॰ [नं० कञ्जनान] दे॰ 'पद्मनाभ' [को०] 1 कुचुकी----संज्ञा पु०[म० कञ्चुकिन् ]१ रनिवास के दास दासियों का कजर--मज्ञा पुं० [सं०] १. पेट । उदर । २ हाथी । ३ सूर्य । ग्रव्या । अंत पुररक्षक। ४ ब्रह्मा । ५ मयूर 1 मोर । ६ संन्यासी [को॰] । विशेप-कचुकी प्राय बड़े बूढे ग्रोर अनुभवी ब्राह्मण हुआ करते कजर--संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ ‘क जड' । ५ जिनपर राजा का पूरा विश्वास रहना था । कजरवेटिव- वि० [अ० कंजर्वेटिव] १ परपरावादी । २. अनुदार। २ द्वारपाल । नकोय । ३. साँप । ४ छिपकैवाला अन्न, जैसे- ३, ब्रिटेन का एक राजनीतिक दल और उसका सदस्य। धान, जौ चना इत्यादि । ५. व्यभिचारी । लपट (को०)। कजरी–सुज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ कजड जाति की स्त्री ३ वेश्या । के चरण :