पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२०२

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क–हिंदी वर्णमाला का पहला व्यजन जण । देगका उच्चारण : विशेप-प। उत्तरी भारत में 1 दिन में निफना है। में होता है। इसे पश वणं । कहते हैं । प, ग, 7 और इसमें अधिरत' || किनी मिट्टी । प्रज्ञ या उन * इसके सतर्ण हैं। है। यह नि ,२१ । Ef' र दो है, पर इनमें प्राप ; क-संज्ञा पुं० [स० कम्] १ जने । २ विद । ३ अन् । ४. ध । या परन न न 1 7 गत २२ र नृT होती ५ रन । ६ मेघ । ७ पुष्प । ३० --- मेघ गुप विन राईगु यद् र TT Ft it ? -- है। तेनिया प्रति क कघ र ग तोय --नद ग्र०, पृ० ५० । ८ मस्त है । उ०--- गाने रग है।, (i) दुरि , 1 महेद ग ! (5) सिम भप के पत्र उन दो वन चक्र अनुप | देन है तो छ विश्रा , प्र ! 'न् : ' ' (5) छ', प्रश्न छोटी दी । । । । ।, गर । नाता है। घने छायत मकल सोभा रूप ।—सूर (शब्द०)। ९ सु । १० ही गर योर से 11 की 3 * ? यि न है। काम 1 ११ सोना । उ०- *० गुस, क जल, क पनत, क गिर २ एयर पर । क} : ।। चतु । उहै दिन दुरु क पुनि काम । क कॅचन ते ग्रीति नजि, सदा हे। हुरिनाम । जी ग्रासा' हैं ? ( न । । । मु य में का -नददाग (शब्द॰) । १२ केश (को०) । १३ ग (को०) । ३मा तमह जिसे ।। ३ ५।। तन पर रगर १४ कृपणता । कजसो (को०)। १५ दुग्ध । ध (को०) । पीते हैं। ५ ।।। । । 14,---15 Fई नन। ले। कक--संज्ञा पुं०[स० कद्ध][० कफी, ककी (हिं॰)] १ एक मामा प्राप्रो । ६ जाहिर है। - Y" ५। ५ो । डा ! हारी पदी जिराके पख वाण में लगाए जाते थे। राफेद चील । मुहा०--- पयर= * { । । । । । कर? । काक । उ०—-ग, कप, काक, गाल । कट कटहि दिन कफदो-+मशा • [१० कफ हैं। प्रपा० प क । पनि ।---तुलसी (शब्द०)। २ एक प्रकार का ग्राम जो पंकट । २ ३ ए 1 छोटा ३१ । । बहुत बड़ा होता है । ३ य । ३ गि। ५ बुद्धिन्ठिर ' । विशेप--: ' t :'। उम समय का कल्पित नाम जप वे ब्राह्मण वने र गुम्न भाई कण--स। 1० [१७ कण] १ कः १ पहनने जा पा भूपेगे से विराट के यहाँ रहे थे । ६ ए के महारथी । जो वसुदेव कना । । । । । । । 38-३ र कण परी का 'माई या । ७ कम के एक 11 का नाम । ६ एक देश का दे५ ।-- १ ० १ ०, १० ८३।२ एक धागा तिस न गुना नाम । वृ० स०, पृ० ८३ । ६ एक प्रकार के कैनु नो ग्रादि फी पुटी पीने एप में वीर तहि के एक छनने के वरुण देवता के पुत्र माने जाते हैं ! साथ पि ३ ६ ३मय में इन पर था दुटूिन के साथ में विशेप----ये सदया में ३२ है और इनकी प्रकृति कौर की जद रायं 4धते हैं। के गुच्छे की सी है । ये अशु से माने जाते है । विशेरा--प्रवाह में देनार हे अनुनार वनर, रारा, अजवायन १० वगला । ११ शरीर । उ०----विरिकन वीर अंत्यत पकः । ग्रादि की नौ पोटलियो पीले ३ ६ ३ 1 से बाँधते हैं । जिन पिप्पि कक अनसव सके ।—पृ० ०, ६॥७७ । १२ एक तो लोहे के छहले नै म दुन् । दुलहिन है ।प में वधि दी जाती है और न मात्र, 7, मोली, पानी, युद्ध । उa--करि कक सक या सुर नि डरा-पृ० रा०, २।२८५ हुरिर, नोद। नग ग्रादि म च। नानी है। १३ तीक्ष्ण लोहा । १४ वृविशेप (को०)। १५ एक प्रकार ३ एक प्रकार का पाय गो गार ने प्रारभ होता है। का अम (को०)। १६ मिथ्या ब्राह्मण। 17ाह्मण होते हुए मौर जिरगे परम पर वश है। इ7में प्रप मम पर अपने को ब्राह्मण कहनेवाला व्यक्ति (को०) । १७ द्वीप । का अधि । 9ोप न है। इनके गाते हैं। समम दोपहर के १३ विभागों में से एक (को॰) । उपरात वृध्या तफ़ होता है। यो०- फकोट । कफपन्न । फकपर्वा । मफपृष्ठी । ककमुख । क्रि॰ प्र॰—बाँधना ।—तना --पहनन। ---पहनना। ककट-सज्ञा पुं० [सं० कट] कवच । सनाह 1 व । उ०-२हू सु । ४ तास के ग्राठि भेदों में से एकः । ५ पापण । मदन(०)। धम्म राजेंद्र । दुष्ट ककट सिर कहै ! --१० १०, १।८१५ । ६ मुकुट । ताज (को॰) । २ अकुश (को०) । ३ सीमा 1 हद [को॰] । कृणास्त्र--संज्ञा पुं० [H० क णास्त्र] वाल्मीकि के अनुसार (के ककटक---सज्ञा पुं० [सं० कटक १ कपच । पमं । मनाह । ३ | प्रकार का अस्त्र [को०) ।। अकुश [फो०] । ककृणो'संज्ञा दी० [सं० फ ] १ पढ्दार करधनी ! - ककटकर्मा त-सज्ञा पुं॰ [स० कटफर्मान्त ]तारा ये कवच (बस्तर) । घटिका । २ मा भूपण जिसमें घुघल है। फिौ०] । पनाने का कारखाना [०) । ककणी-f० [सं० फणिन] फकड नाम प्रभुपणवाला[को०)। ककड-सज्ञा पुं० [स० कर्कर, प्रा० फस्फर] [वी० अल्पा० ककडी] ककणीका-सी स्त्री० [सं० फड़णीको] २० ककणी' (को०] । [वि० ककडीला] १ एक निज पदार्य । ककडे जो जलाकर ककत---मज्ञा पुं० [सं० फत] १ उ7 से उतरने का फधा । २ एक चूना बनाया जाता है । प्रकार का वि पातं जीव । ३ नागपला । अविला (को ।