पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१९६

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औडुवर ७१० श्रीदुबरी जायेंगे उतने ही मुरजीवा की तरह रात और मोती लेकर प्रोत्स--वि० [सं०] उत्त, प्रवाह या झरना । सवधित ने] । वेगे ।—सुदर० प्र ०, भा० १, पृ० २०५।। झौत्सगिक-----वि० [१०] १ उत्सर्ग साधी । १ महज । स्वाभाविक । औडुबर--संज्ञा पुं॰ [सं० ओडुम्वर] दे॰ 'औदुबर' [को०] । ३ व्याकरण में सामान्य रूप से मान्य मा सामान्यत. म्वीकार्य औडुपिक–वि० [सं०] नाव से (नदी थादि) पार करनेवाला (को॰] । | (नियम) 1 ४ त्यागनेवाला । छोइनेपाल । ५ सामान्यये ।। औडुपिक-सुज्ञा पु० नौका के यात्री [को०) । श्रोत्सुक्य-सज्ञा पुं० [सं०] उत्सुकता । उत्क। हौसन्ना 1 औडुलोमि–सुज्ञा पु० [सं०] एक ऋपि वा प्राचार्य जिनका मत वेदात शौथा--वि० [सं० अवस्यल + क (प्रत्य०)] उयना । छिटला । । सूत्रों में उदाहृत किया गया है । उ०—-अति अगाध ग्रति यरी नदी कूप पर जाय । सो औडू-सुज्ञा पुं० [सं०] उडीसा प्रदेश का निवासी । उडीसा का रहने । ताकी सागर जहाँ जाकी प्यास बुझाय ।-बिहारी (शब्द०)। वाला (को॰] । औदक---वि० [सं०] जले साधी । जलवाला। जनीय [को॰] । औढर-वि० [स० अव+हिं० ठार या ढाल जिस ओर मन में ग्रावे औदक-सा पु० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह उपनिवेश जिसमे उसी ओर ढल पहनेवाला। जिसकी प्रकृति का कुछ ठीक जल की बहुतायत हो । ठिकाना न हों । मनमौजी। उ०—देत न अघात रीझि जात 11 टिकट औदकना -क्रि० अ० [हिं० उदकना] उछलना । चौकना ।। पात अाक ही के मोरानाथ जोगी जुव औढर ठरत हैं।---तुलसीदनिकु---संज्ञा पुं॰ [सं०] १ कोटिल्य के अनुसार पका चावल प्रयतू (शब्द॰) । औढरदानी-वि० [हिं० औढर+दानी] बहुत अधिक देनेवाला ।। भात दाल बेचने वाला । २ भात पकाने वाला रसोइया (को॰) । शौढरदानी -सुज्ञा पुं० [हिं० औढर+दानी] शिव । शकर । जो प्रौदयिक-वि० [सं० उदय] उदय सोधी । तरग में अकिर विना विचारे सेवकों की कामना पूर्ण करते हैं। दयिक-सा पुं० जैन मतानुसार वह मावे या विचार जो पूर्व सचित कर्मों के कारण चिते में उठना है। उ०—औढरदानि द्रवत पुनि थोरे । सकत न देखि दीन कर जोरे ।—तुलसी (शब्द॰) । औदर-वि० [स०] पेट साधी । २ पाचन क्रिया सवधी ०] । औणक-सच्चा पु० [सं०] एक वैदिक गीत ।। श्रौदरिक--वि० [स०] १ उदर सदघो। वहूत खानेवाला। पेटू ! औदर्य–वि० [सं०] उदर सुवधौ । पेट का । प्रौदरिक । श्रौतरना--क्रि० अ० [सं० अवतरण] दे० 'अवतरना' । उ०— | श्रीदश्वित–सधा पुं० [स] मट्ठा जिसमें प्राधा पानी मिलाया गया (क) मीन की मरोल की म मोले मृग मुकुर की मानिनी हो । छाछ (को०] । मनोज जग जीतिवें श्रौतरी है ।---गग०, पृ॰ ३७ । (ख) औसर औदसा+--सुधा श्री० [स० अबधशा] बुरी दया। दुर्दशा । दुख । वीत फिरि पछतावे । औतरि औरि या ते आवै ।---सुदर० अापत्ति । ग्र०, मा० १, पृ० २२० । क्रि० प्र०—फिरना = बुरे दिन अान।। औतार--सच्चा पु० [सं० अवतार] दे० 'अवतार' । उ॰—मलखान औदाना–संज्ञा स्त्री॰ [स० अवदान वह बस्तु जो मोल लेनेवाले को | अवतार मेरी सुलिव्य --प० रातो, पृ० ८४ ।। ऊपर से दी जाती है। घाल । घलु प्रा। औतारी -वि० [हिं० अवतारी] दे॰ 'अवतारी' । औदार्य- सपा पुं० [सं०] १ उदारता ! २ सात्विक नायक का एक श्रौत्कठ्य-संज्ञा पुं॰ [स०ौत्कण्ठ्य ] १ उत्कठा। उत्सुकता । २ गुण । ३. अर्थसपत्ति । अर्थवता (को०)। ४ महुता ! अाकाक्षा । इच्छा । ३ चिता [को॰] । श्रेष्ठता (को॰) । औत्क -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] उत्कर्पता । उच्चता । श्रेष्ठता [को॰] । औदासीन्य, औदास्य - सज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'उदासीनता' । औक्य--सचा पुं० [स०] उत्सुकता । उत्कठा । इच्छा [को०] । औदोच्य–वि० [सं०] उत्तर सवधी । उत्तरी [को॰] । औत्तमणिक-वि० [सं०] शुक्र नीति के अनुसार दूसरे से सुद ब्याज औदीच्य..--सद्या पुं० गुजराती ब्राह्मणो की एक जाति । पर दिया हुआ (धन) । | "श्रौदु वर-वि० [स० औदुम्वर] अदुवर या गूनर का बना हुआ । श्रौत्तमि--सज्ञा पुं॰ [सं०] १४ मनु मे से तीसरा ।। | २ ताँबे का बना हुआ। औत्तर---वि० [सं०] १ उत्तरी । उत्तर दिशा सबधी । ३ उत्तर में औदु बर- सज्ञा पुं० १ गूलर की लकडी का बना हुआ यज्ञपाने । रहने या होनेवाला (०) । २ १४ यमों में से एक । ३ एक प्रकार के मुनि जिनका औत्तरेय–सच्चा पुं० [सं०] अभिमन्यु की पत्नी उत्तर से उत्पन्न यह नियम होता था कि सवेरे उठकर जिस दिशा की ओर | परीक्षित नरेश (को०] ।। पहले दृष्टि जाती थी, उसी मोर जो कुछ फल मिलते थे, औत्तानपाद, श्रौत्तानपादि-सा पुं० [सं०] १ उत्तानपाद के पुत्र उस दिन उन्हीं को खाते थे।४ गूलर का फल (को०)। हरिभक्त ध्रुव । २ ध्रव नाम का तारा [को०] । ५ गूलर को नकडो (को०)। ६ तौबा या ताम्रपा (को०)। औतापिक---वि० [सं०] १ उत्ताप सववी । २ उत्तापजन्य । ७ एक प्रकार का कोढ (को॰] । श्रौत्पत्तिक---वि० [सं०] १ उत्पत्ति सबधी। २ स्वाभाविक । सहज । औदु बरक-सद्मा पुं० [सं० औदुम्बरक] गूलर का जगल (को॰] । जन्मजात । औदु बरी–सच्चा सी० [स० औदुम्वरी] गूलर के वृक्ष की शाखा या त्पातिकृ---वि० [सं०] उत्पात या उपद्रव सवधी [को 1 लकड़ी (को० ।