पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१९३

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ड ७०७ अक्ष, औक्षक इ-सज्ञा पु०म० कुण्ड, प्रा० उड-गड्ढा]गड्ढा खोदनेवाला । (२) बेतरह चुकना या घोखा खाना । झटपट विना सोचे मिट्टी खोदनेवाला । मिट्टी उठानेवाला मजदूर। बेलदार। समझे कोई काम करके दु ख उठाना । जैसे,—वे चले तो ये उ०—चले जाहू ह्याँ को करें हाथिन को व्यापार । नहिं जानत हमे फँसाने, पर अाप ही घे मुह गिरे । (३) मूल करना । यहि पुर बस धोवी, औड़, कुम्हार !-विहारी (शब्द०) । भ्रम में पड़ना । जैसे,—-रामायण का अर्य करने में वे कई डा--वि० [सं० फुण्ड, प्रा० उड] [वि० बी० श्री] गहरा । जगह अँधे मुह गिरे हैं । औंघा हो जाना = (१) गिर पड़ना | गभीर । उ०—(क) तव तिन एक पुरस भरि आडी । एक (२) बेसुध होना । अचेत होना । एक योजन लाँदी चौड़ी --पद्माकर (शब्द॰) । (ख) २. नीचा । उ०----राजा रही दृष्टि के बी। रहि न सका यो कहे गोवर्धन के निकट जाय दो अंडे कृह बुदवाए । तव माँट रसौंधी !-—जायसी (शब्द॰) । ३ वह जिसे गुदा भजन - लल्लू (शब्द०)। (ग) यह समझ मणि न पाय श्रीकृष्ण कराने की आदत हो। गांडू (बाजारू) । - चद्र सदको माध लिए वहाँ गए जहां वह डी महाभयावन वा--सज्ञा पुं० एक पकवान जो वेसन और पीठ का नमकीन तय गुफा थी ।—लल्लू (शब्द॰) । आटे का मीठा बनता है । उलटा । चिल्ला । चिलडा। अाँडा--वि० [हिं० औंडना=उमडना] [वि॰ स्त्री० [डी] उडान सडा घाना—क्रि० स० [सं० अघ करण ?] १. उलटना 1 उलट देना । हुआ 1 चढ़ा हुआ । वढा हुआ । उ०—आवत जात ही होय है। पट कर देना। अवोमुख करना। उ०—प्रधाई सीसी सुलखि साँझ बहै जमुनी भतरोंड लो औडी ।—रसखान (शब्द॰) । विरह वरत विललात । बीचहि सूखि गुलाव गौ छीटो छुई न डावड़ा--वि० [हिं०] दे॰ 'अंडवड' । । गात ।-विहारी (शब्द॰) । २ नीचा करना । लटकाना । औडी–वि० [हिं० घो] उलटी [ अधी। उ०—(क) फेरी नृत्य उ०---बुधि वल विक्रम विजय वडापन सकल विहाई। हारि दौंडी यह ौी बाते जानि महा, कहीं राजा रक पढे नीकी गए हिय भूप वैठि सीसन अँधाई ।-रघुराज (शब्द॰) । ठौर जानि के 'भक्तमाल (श्रीभक्ति०), पृ० ५१३ । (ख) कर स्वतंत्र अधिकार सभी पिटवायी होडी । धूर्त चला जो जाल श्रीरा--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अवेला'। (चाल) पडी वह अभी न ऑडी ।—कविता० को०, भा० २, औस-सज्ञा पुं० [अ० आउँस] दे॰ 'ग्राउस' । पृ॰ ३५५ । सना--झि० अ० [सं० उष्म+ क, हि० उमसना] उमस होना । अदना --क्रि० अ० [म० उन्मादन] १. उन्मत्त होना । बेसुध हर--संज्ञा स्त्री॰ [स० अवरोध, प्रा० ओरोह] अटकाव । रुकावट । होना । उ०—-देव कहे अपि प्रौदे बुझति प्रसंग अागे सुधि न वाधा । विघ्न । संभार बुझि अानंद परस्पर ।----देव (शब्द॰) । २ दयाकुल --संज्ञा पुं० [सं०] १ अनंत । योप । २ शब्द या ध्वनि (को॰) । होना । घबराना। अकुलाना । उ०—-देत दुसह दुख पवन मोहि ३. चार की सख्या का वाचक शब्द (को॰) । अचल चारु उडाय । कसु कामिनि करिके कृपा, ऋदिय सुधि -सज्ञा पी० विश्वं मरा । पृथ्वी । विसराय !--रघुराज (शब्द॰) । अg--ग्रव्य ० [हिं॰] दे॰ 'श्रीर' । fदाना(G—क्रि० अ० [स० उट् जन] वना । व्याकुल होना । दम ४--सर्व० [हिं०] यह । उ०-:- मैले अवर तण, असुरा करण घटने के कारण घबराना । उ०--ब्रह्मा गुरु सुर असुर के अकाम । सिवौ नचित एण से, जड ने जगराम ।--रा० मधिक विप नहि जान । मरे सकल दाइ कै संघिक विप रू०, पृ० २५५ । । करि पान -कवीर (शब्द॰) । औकन-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] राशि । ढेर ।। धना--क्रि० अ० [स० अघः यो अवधा उलट जाना । उलटा विशेप-औकन ज्वार के उन वालो वा भुट्टो के ढेर को कहते हैं। होना । विना-क्रि० स० उलट देना ! उलटा कर देना ! उ०~-जीति सवै जिनसे दाने निकाल लिए गए हो। इस ढेर को एक बार | जग घि घरे हैं मनोज महीप के दुदुमी दोऊ !-—(शब्द०)। फिर वचाखुचा दाना निकालने के लिये पीटते हैं। ऋचा-वि० [स० अध. या अद+अध] [वि॰ लौ० अधी] १. अकात'संज्ञा पुं० [अ० वक्त फा बहू व०] समय ! वक्त । उलटा । पट । जितका मुह नीचे की ओर हो । जैसे, घ औकात'--संज्ञा स्त्री॰ (एक व०) १. वक्त । समय। वरतन । उ०—धा घड़ा नहीं जल डूबै सूधे सों घट | यौ---औकात बसरी = जीवन निर्वाह । भरिया । जेहि कारन नर भिन्न भिन्न करु गुरु प्रसाद तै मुहा०—ौकात जाया करना = समय नष्ट करना 1 औकात बसर तरिया -कवीर (शब्द॰) । करना= जीवन निर्वाह करना । मुहा०—-अंधी खोपड़ी का= मूर्ख । जड । कूढमग्ज । उ०— २. हैसियत् । विसात । विसारत । जैसे,—-अपनी औकात कविरा आँधी खोपडी, कवडू वापै नहि। तीन लोक की सपदा देखकर खर्च करना चाढिए । उ०—क्यो कर निभेगी हमसे कव अवै घर माँहि ।--कवीर (शब्द०)। आँधी समझ = मुलाकात अापकी । वल्लाह क्या जलील है अौकात अापकी । उटी समझ । जड वुद्धि –ौधे मुह मुह के बल । नीचे --शेर०, भा० १, पृ० २६५।। मूह किए । अधेि मुंह गिरना=(१) मुह के बल गिरना। अक्ष, अक्षिक---संज्ञा पुं० [सं०] वृपभसम है। वैलो का झड़ | २-२३ संपूर्णा० अमि० ग्र २, पृ॰ २४६।