पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१९२

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मोह ग्रा ओहG-मंत्री श्री [हिं० ग्रोट, ६० ग्रह = अवगुठन या देश] हर–क्रि० वि० [हिं०] दे॰ 'पर' । ग्रेट । अनि । उ०—(क) बाट होहु रे नांट निवारों का हरना-शि० अ० [३० अवहरण] वढी अौर उमडवी हुई ची। नु नाहि देहि अछि नारी --जयी २०, पृ० ११५ । (ख) | का पटना । घडाव पर होना। हिट शेसि जॉगि वारि च। अब बात कुरा री - हरी–ज्ञी नी० [हिं० हारना] थकावट । जाय। उ०, पृ० १३४।। हाचंज्ञा पुं० [३० उपत्] नाय का यन । यौनाङ–० अ० [स० अवघटन होना । अष्टि होना। अज्ञार-मुज्ञा पुं० [अ० प्रचार] रथ या पालकी ३ =पर पड़ी बीउना । --अह रात अहई, चूर प्रभात दरवै ।-- ० इ०, पृ॰ ३६१ । आ पड़ा। पूराउ०—(क) निद्रिका मुन्न प्रहार यादा-वज्ञा पुं० [अ०] पद । स्यात् । --नों जिन्हें मुनावि उधारी । देविं दूरहिनन्ह होन्ह दुबारा-मानस, ११३८ । या नई ने किया पैदा । दारों के लिये शोहद विडियो के दिये (ख) संत पु.ली निकट निधारे। करि३ विनर प्रार | दो।—विता , ६० ४, पृ॰ ३२८ । उबारे ।-बुराज (शब्द॰) । यो-प्रोड्देदार। हि ग्रोही –बई० [हिं० वह १ दह । २ उजु ! ॐ ग्रोद्देदार-सुज्ञा पु[अ० ग्रोहा + वार(प्रत्य॰)]पदाधिकारी इ०—(क) ना हि पूर्व न तो न नावा -- 7, हाकिंन । अर्यंत कर्मचारी । अधिकारी। पृ० ३। (ख) ब्रान मति नहि पाव ही —मान, ग्रोहना--क्रि० ० [३० ग्रेवारण] १. इंनो अादि को र १।१३। । उठाकर हिलाते हुए उन दादी का देर लेगाने के लिये नीचे गिराना | बुरही ना । ३. विर विक्र करना । –बुवं० [हि वह वह भी ! ३०–नौ जनतें वन वधु अनि –अन्ना पु० [३० अस] बने । -य का म्वन् । अयन । । विशॉर । पितः वचन ननिउँ नहि हू ।-नानन०, ६॥६० । ३०-चत्रि न नि नि ॐ नार । भवति त्रवत दूध हो–अब्य० [स० अ) १ एक प्राइवर शब्द । २. एक को धार ।—गदः 7, पृ० १६० । आनंदसूचक शब्द ।। । शौ---कृत वरांना ना चौदहवाँ ग्रौर हिंदी वर्णमाला का ग्यारह व्याकुल होना । अकुलाना । उ॰—एक करे धन, एक है। | ब ब । इनके इन्चारण का झ्यान केंद्र और प्रोष्ठ हैं। झाडौ , एक अनि पान पो के कहै बनत न अावनो। एई बहू -वर में+ ३ दिन में बना है। परे नाई, एक डाट न हीं काई, एक देखत है त्राटे, कई पाक अगि - मुद्रा पृ० [मला०] बन की जाति का एक बंदर। वो । यावन --तुतती १०, पृ० १७५। नुनोत्रा टयु में होती है। जना--क्रि० १० [?] एक बरतन में से दुतरे वतन में दिशेय–ह बंद फै? 7 क होता है, पर विय कर लापन डालना । हैलना ! उटना। लिए हुए पंजे 1 का वर हैं। इनके पैर की उँगलियाँ मिली अॉन-इंज्ञा पुं० [नं० अकुट्टन, ग्रा ग्राउट्टण, अावट्टन= थेदन करना त्रिी हैं। यह नु अड़े के गय रहेना है। ईदका स्वभाव या १० अवघटन] १ लकडी का दोहा विपर चौपादों का नूजील और इंग्ज हैं, ए. वह बड़ा चानाक होता है। चारा काटा जाता है। ३ वह हा जिउधर ऊब की गुंडेरी गुना-क्रि० मु० [३० अबञ्जन] बाडी के पहिये की धुरी ने काई जाती है। वैन देना । ऑटना-क्रि० प्र०, क्रि० ३० नु० श्रावर्तन, प्रा० ग्राउण दे श्रीगg---दि॰ [ अगाऊ चा गुङ्ग] [• ऑगी] १. नू । ‘ौटाना' । नगा। २ न बनेन । चुप्पा । ३०----मुनि द्वन इत्र अटाना--क्रि० स० [अ० अवतन, प्रा अाउईग] दे॰ 'ग्रौटाना। अव प्रौनी हि नुनु प्रेन उच्च न्यारा । Tए वे प्रम पवाइ ठ -सच्चा पुं० [९० झो] दे॰ '5' । उ--हउति कवि दिरं पुनि त र म न TT |–नुनन (जब्द॰) । वात, पूर ने झरत जाव व अवदावि राती देख नन मौहिये। अॉगीना !इ अवाक चुप्पी । नापन | बानी । --केशव 7 २, मा० १, पृ० १४९ । वन-झि० प्र० [. अरा=नीचे मुह अचवा प्रा०/प, ओठ-संज्ञा स्त्री० [स० अप्ठ, प्र० ग्रौटा हुआ कि तारा। उन। Vइग्ध घ] ॐनदा | अल्लाना । र देना । | हृया किनारा । बारी। जैसे --पड़े की ठ। रोटी का ऑ3। श्रधाई-ज्ञा स्त्री० [० ग्रावा=नाचे मुह या प्रा०] की मुहा०---ौंठ उठाना =पन्तौ हैं इए वैन को जानना ।। नद । मुंद्रा । झपन्न । औंठा-बुना बु० [हिं० अँगूठा स्त्रियों के पैर के अँढे में पहनने अपना-ट्वाि० ऋ०० ग्रोवाड या 3३०Vघ] दे॰ 'इन' । का एक प्राभूषण । ----विवा पहिरिन प्रा पहिरिन । अजना' --%ि० अ० [३० जन= व्याकुल होना] ना ! -ौर श०, पृ० १५१ ।।