पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१९०

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औला १७०४ ओठ शोला--वि• १ ले के ऐसी ठंडा । बहुत सर्द । २ मिस्री का तिणकै योल्है राम है, परवत मेरे भाइ । सतगुरु मिलि परचा | वना हुआ लड्डू जिसे गरमी मे ठडक के लिये घोलकर पीते हैं । भया तब हरि पाया घट माँहि ।-कवीर ग्र०, पृ० ८१ । ओला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] काँगडा जिले में होने वाला एक प्रकार (ख) ढूढन ढूंढत जग फिरया तिण के होल्हें राम ।-कवीर का बबूल जिसकी लकडी से खेती के औजार बनते हैं। ग्र ० १ ० ८१ । । झोला- संज्ञा पुं० [हिं० ओल] १ परदा । ओट । २ भेद। गुप्त बात । ओवडना(j f-f६० अ० [देशी] दे० 'उमडना' उ०--ग्रावरत मेघ योला–प्रत्य० [हिं०] हिदी का एक प्रत्यय जो कतिपय शब्दो के | समें भोवडे घडो पचे व खग ---रा० रू०, पृ० २५०।। | अत में लगकर किसी वस्तु के लघु रूप का बोधक होता है। प्रोवर--सज्ञा पुं० [अ०] १ समाप्त । खत्म। उ०—मैच वर हो जैसे, अम से अमोला। गया |--चद० ख०, पृ० ४१ । ३ क्रिकेट के खेल मे पाँच या झोलारनपु–क्रि० स० [हिं०[ दे० 'उलाना । छह गेंद दिए जाने भर का समय । लिक संज्ञा पुं० [हिं० ओल == अड, ओट, १० ओल्ला क्रि० प्र०——होना ।। मोट । परदा । उ०•-नील निचोल दुइ कपोल विलकति विशेष--जब एक ग्रोवर समाप्त हो जाता है, तब गेंद दूसरी ही करि ओलिक तोही --केशव स ०, भा० १, पृ० १२ । तरफ से दिया जाता है और खिलाडियों की जगहें बदल दी। ओलिगाव--सज्ञा वी० [अ०] १ वह सरकार जिसमे राजसत्ता या जाती हैं । शासनसूत्र इने गिने लोगों के हाथो में हो। कुछ लोगो का ओवरकोट- संज्ञा पुं० [अ०] बहुत लदा कोट जो जाडे में सर्व कपड़ों राज्य या शासन । स्वल्पव्यक्तितत्र । २ ऐसे लोगो का के ऊपर पहना जाता है। लवादा। उ०—कुअर साव का समाज । श्रोलिया --सज्ञा पुं० [५० औलिया] दे० 'औलिया। उ०—हि । ओवर पोट लिए खेल में दिन भर साथ रहा ।--प्रधी, पृ० ३९ । | अहि करत सौरगसाह ओलिया ।—भूषण ग्र०, पृ० १११ ।। ओवरसियर- संज्ञा पुं० [अ०] इजीनियरों के मुहकमे का एक कार्यकdf ओलियाना+--क्रि० स० [हिं० ओली = गोद ली में भरना । जिसका काम वनतीं हुई इमारतो, सडको आदि की निगरानी | गोद में भरना ।। और मजदूरों की देख रेख करना है । ओलियाना -क्रि०स० [हिं० हूलना] प्रविष्ट करना। घुसेड़ना । ओवा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अ' । घुसाना । जैसे,- पेट में सीग ओलियाना । ओष--सज्ञा पुं० [सं०] १ जलन । दाह । २ भोजन पकाना (को०) । झोली- सज्ञा स्त्री० [हिं० श्रोल+ई (प्रत्य॰)]१ गोद ! ३०----अपनी । ओषण-सच्चा पुं० [सं०] तिक्तता । तीखा स्वाद को०] । अोली में बैठाकर मुख पोछी, हुवा करने लगी ।--बयामा० ओषणी-सच्चा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का शोक [को०) । पृ० १८१ । ओषद--सझा की० [सं० औषध] दे॰ 'ओषध' । उ०—-सोच घटे मुहा०-ओली लेना = गोद लेना । दत्तक बनाना । | कोई साधु की संगत रोग घटे कछु पद खाए |-- २ अचल । पल्ला ! ३०-देहि री काल्हि गई कहि देन पसार हु गग०, १० ११८ । ओलि मरी पूनि फेदी ।—केशव ग्र०, भा० १, पृ० ३० । सोध--सच्चा स्त्री० [सं० औषधि] दबा। ओषध । उ०-- कीन्हीस मुहा०—ोली मोडना=अचल फैलाकर कुछ माँगना । विनय पान फूह बहु भोगू । कीन्हेसि बहू ओषधे वहु रोगू ।--- पूर्वक कोई प्रार्थना करना । विनती करना। उ०—(क) एंड जायसी (शब्द॰) । सो एंडाई जिनि अचल उहात, अाला अाहात हा काहू का जू ओषधि, ओपधो-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ बनस्पति ! जडी बूटी जी डीठि लगि जायगी ।—केशव (शब्द॰) । (ख) बोली न हाँ वे दवा में काम आवे । उ०—ज्वर इमारे ने उन्हें थोड़े ही बुलाइ रहे हरि पाँव परे अरु ओलियो ही 1--केशव प्र ०, दिनो मे निर्बल कर दिया, पर ओषधी अच्छी की। श्यामा०, मा० १, पृ० ११ । । पृ० ६२ । २. पौधे जो हर एक बार फलकर सूखे जाते हैं । ३ झोली । उ०—(क) ओलिन अवीर, पिचकारि हाथ । जैसे,—गेहू, जो इत्यादि । सोई सखा अनुज रघुनाथ साथ । तुलसी (शब्द॰) । (ख) यौ०-औषधिपति । मोषधीश । दसन वसन प्रोली मरियै रहै गुलाल, हँसनि लसनि त्यौं कपूर ओषधिगर्भ-सच्चा पुं० [सं०] १, चंद्रमा । २ सूर्य (को०] । सरस्यौ करै ।-नानद, १० ७० । ४ खेत की उपज की ओषविधर-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ चद्रमा । २ कपूर । ३ वैद्य (को॰] । अदीज करने का एक ढग जिसमे एक विस्वे का पता लगाकर पोधनमा श्रोपधिपति--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चद्रमा । २ कपूर ।। वीघे भर की उपज का अनुमान किया जाता है। ओलौना -संज्ञा पुं॰ [स० तुलना से नामिक धातु] उदाहरण । विशेप-ओपधिवाची शब्दो मे 'स्वामी' वाची शब्द लगाने से मिसाल । तुलना । चंद्रमा या कपूरवाची शब्द बनते हैं । ओलोना --क्रि० अ० उदाहरण देना । दृष्टांत देना। प्रोपधोश- सच्चा पुं० [सं०] १ चद्रमा । २ करे । ओल्ल-सज्ञ । पु० [सं०] जमानत [को॰] । प्रोपर--सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रौपर] छुटिया नोन । रेह का नमक । पोल्ल'--'३० भाद् गोला [को०] । ओष्ठ- सच्चा पुं० [सं०] १ हो । अोठ । लव । २, दो या दो सख्या मौल्हसिन जी० [हिं० ल] ओट। अडि। उ०—(क) का सूचक शब्द ।