पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१९

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उमरा ५३२ उमरा-मझा पुं० [अ० उमरा] दे॰ 'उमराव' । उ०—चोलि उ मरा चटफोना=(१) उगलियों को इस प्रकार खींचना या दवाना मीर सब । य जप्यो सुरतान । अव के पग गढ्ढे गहौ । 'भजो कि उनसे चट चट शब्द निकले । (२) शाप देना । (स्त्री) । पेत परान ।।—पृ० रा०, १३३८ ।। विशेष--जव स्त्रिय विसी पर बहुत कुपित होती हैं तब उलटें उ --अव्य ०--एक प्राय अव्यक्त शब्द जो प्रश्न, अवज्ञा क्रोध तथा पजो को मिलाकर उगलियाँ चटकाती हैं और इस प्रकार के स्वीकृति सूचित करने के लिये व्यवहृत होता है। इसको प्रयोग शाप देती हैं- 'तेरे बेटे मरे, भाई मरें” इत्यादि । उस अवसर पर होता है जब वोलनेवाला आलस्य से, अथवा उगली दिखाना = धमकाना । इराना । उ0--जो तुम्हें उँगली मुह फंसे रहने या शौर किसी कारण से नहीं बोल पाता । दिखाए मैं उनकी अाँखे निकलवा लें। (हलक में) उगती उ खारी--सुच्चा सौ० [हिं० अख] दे० 'उखारी' । देकर (माल) निकालना = वडी छानवीन प्रौर कडाई के साये उगनी-सज्ञा स्त्री॰ [दे० ओंगना] वैलगाडी के पहिए में तेल देने किमी हजम की हुई वस्तु को प्राप्त करना । जैस-चे रुपए की क्रिया । मिलनेवाले नहीं थे, मैंने हलक में उगली देकर उन्हें निकाला। उगलाना--क्रि० स० [हिं० उँगली से नाम०] हैरान करना । (कानों में, उँगली देना - किसी बात से विरक्त या उदासीन | सताना । होकर उसकी चर्चा बचाना । किसी विपर्य को न सुनने का उंगली-सच्चा स्त्री० [सं० अङ्गुलि] हथेली के छोरो से निकले हुए प्रयत्ने बारना । अनसुनी करना । जैसे-हमने तो अब कानो फलियों के प्रकार के पाँच अवयव जो वस्तुओं को ग्रहण करते में उगल दे ली है, जो चाहे सो हो । (दांतो में) उगली देना हैं और जिनके छोरो पर स्पर्शज्ञान की शक्ति अधिक होती है । या दवाना, दाँत तले उँगली दवाना= चकित होना । अचभै च गलियो की गणना अगुष्ठ से आरंभ करते हैं । अगुप्ठ के में आना । जैसे—उस लडके का साहस देख लोग दाँतो मै उपरत तर्जनी, फिर मध्यमा, फिर अनामिका और अत में उगनी दवाकर रह गए। उगली पकडते पहुची पकडनी= कनिष्ठिका है । अनामिका इन पाँचो उगलियों में निर्वन किसी व्यक्ति से किसी वस्तु का थोडा सा भाग पाकर साहस होती है। पूर्वक उसकी सारी वस्तु पर अधिकार जमाना । थोड़ा सा मुहा०—(पाँचो) उँगलियाँ घी में होना = सर्व प्रकार से लाभ सहारा पाकर विशेप की प्राप्ति के लिये उत्माहित होना । ही लाभ होना । जैसे---तुम्हारा क्या, तुम्हारी तो पाँचो जैसे—-मैंने तुम्हें बरामदे मे जगह दी अब तुम चोठरी में भी अपना असवाब फैला रहे हो । भाई, उगनी पकडते पहुंचा उगलियाँ घी में हैं । उँगलियों चमकाना= बातचीत या पकडना ठीक नहीं । उगली पर पहाड़ उठाना =अस भने कार्य लडाई करते समय हाथ और उगलियो को हिलाना या कर दिखाना । उ०—-सिर उठाना उन्हें पहाड हुँ । जो मटकोना। उठाते पहाड उगली पर घुमते ०, पृ० २५ । (किसी कृति विशेष—यह विशेषकर स्त्रियो और जनेखों की मुद्रा है। पर) उगली रखना = दोप दिखलाना । ऐच निकालना । उ गलियाँ नचाना= दे० 'उगलियाँ चमकाना' । उँगलियाँ फोडना जैसे--भला अापकी कविता पर कोई उगली रख सकता है। = दे० 'गलियाँ चटकाना' (पाँच) उँगलियाँ बराबर नहीं उगली लगाना=(१) छुना । जैसे—खवरदार, इस तस्वीर होती = एक जाति की सव वस्तुएँ समान गुणवाली नहीं होतीं । पर गली मत लगाना । (२) किसी कार्य में हाथ लगाना। (सीधी) उँगलियों घी न निकलना=सिधाई के साथ काम किमी कार्य में थोडा भी परिश्रम करना । जैसे-उन्होंने इस न निकलना । मलमंसाहत से कार्य सिद्ध न होना । उँगलियों काम मे नगली भी ने लगाई पर नाम उन्ही का हुआ । पर दिन गिनना = उत्सुकता से किसी (दिन) की प्रतीक्षा उगलीमिलाव--सज्ञा पुं० [हिं० उँगली+मिलाव] नाच की एक करना । उ०—दिन फिरेंगे या फिरेंगे ही नहीं । कव दिन हैं गत । इसमें दोनो हाथ सिर के ऊपर उठाकर उनकी उ गलियाँ उगलियो पर गिन रहे ll-चुभते०, पृ० ३ । उँगलियों पर मिला दी जाती हैं। नचाना= जिस दशा में चाहे उस दशा में करना, अपनी इच्छा उधाई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ऊ धना] १ ऊँघने की क्रिया या भाव । के अनुसार ले चलना । अपने वश में रखना । तग करना । २. निद्रागम १ झपकी । जैसे--अजी तुम्हारे ऐसों को तो मैं उँगलियो पर नचाता है। क्रि० प्र०-.-आना ।—लगना ।। (किसी पर या किसी की भोर) उँगली उठाना=(किसी उचः--वि० [हिं० ऊँच] दे॰ 'ऊँच' । उ०--'तुका' ‘सूदा' बहुत का) लोगो की निदा का लक्ष्य होना । निदा होना । बदनामी कहावे लडत बिरला कोय । एक पावे ऊँच पदवी एक खाँसो होना । (किसी पर या किसी की भोर) उँगली उठाना = (१) जोय । दक्खिनी॰, पृ० १०६ । निंदा का लक्ष्य बनाना । लाछित करना । दोषी बताना । उ॰चनाव--संज्ञा पुं० [देश॰] एक किस्म का चरिखाने का कपडा ।। उ०--चाहे काम किसी को हो पर लोग गली तुम्हारी ही उँचाई -सपा बी० [सं० उच्च, हिं० ऊच+प्राई (प्रत्य॰] ओर उठाते हैं । (२) तनिक भी हानि पहुँचाना । टेढ़ी नजर 1 बलदीं । ऊ चापन । उ०—हिय न समाई दीठि नहि से देखना । उ०- मजाल है कि हमारे रहवे तुम्हारी ओर कोई नई ठाढ़ सुमेर । कहूँ लगि कहाँ उचाई कहें लगि बरन उगली उठा सके । उँगली करना = हैरान करना । सताना । फेर ----जायसी ग्र०, पृ० १५ । ३ बड़प्पन । महत्व । दम न लेने देना। आराम न करने देना। ३०–जितना काम उचान--सच्चा स्त्री० [हिं० उचा+आन (प्रत्य॰)] उचाई । को इतना ही वे और उँगली किए जाते हैं । उगली वलदी ।