पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९९

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। पृ० ४। अवाधुंध अंधेरा अधाधध१८-सा औ० [हिं० अधा + धध] १ बा अंधेरा। घोर अधियारी-सवा झी० [सं० अ धकार प्रा० अन्धभार, अन्धर है, अघकार। उ०—अधाधुध भयो सव गोकुल, जो जहँ रम्यो ६ ( प्रत्य० ) ३१ प्रधरसर । प्रधे ।। ३ ३३ पट्ट जी पूर्व सो वह छुपायी ।--सूर० १०७७ । २ अंधेर। अविचार । घोड, शिकारी पदाव र चीते दि दी । प" इसलिये अन्याय । गऽवड । घी गांधीगी। प्रपघ । भौरा । उ6-- वैधी रहती हैं कि फिी र य न । वहां कोई किसी को पूछने वाला नहीं, अघाघुघ मची है अघी'-• सी पी० [हिं० पु० प्रघा, " अघी ] विना काय को (शब्द॰) । स्त्रो । जीन्द्र देय न गरे । अधाधध-वि० विना सोच विचार का । विचाररहित । वैधडक । अधी--वि० स्पी० १ ट्रिहित । विकून्य । थियार दिन । वैहिसाव । बेअदाज । वैठिकाने । उ०——वह किसी कोरे स्वप्न यी---- अघी नार = १ नजर जिला प्रव५ ३ है।। २ द्रष्टा की काल्पनिक घाधुध डहन नही है --जय० प्र०, मानिनः जो नवरो को नया 67 मय पर न देता है। मा०-अधी वंदना = विना अदाज में नहीं उत । ठप होना। अधाधुध-- क्रि० वि० १ विना सोचे विचारे । वैवाट । बैत । विना प्रदाज में फTी चीज 7 ठर न.प पर बैठना। ३००० मारामार। उ०--अधाधुध घर्म के मार्ग से जग गते एक बार उनकी अधः *ट त। नव नगई उने का । खाती ।--संत तुमी०, पृ० २२३ । २ अधिग्ता से । बहुता दिने गरि १-२, पृ० १० १ थत से, जसे-वह अधाधुध दौडा अतिा है। वह अधाधुघ ३. प्रकाशन । अपरिपूर्ण । ३०-३' मानयुग हो । खाए चला जाता है । ( शब्द० )। वो धी गुफा प; ।-- प्रे गर ( ० } ! ! मर्दानी । अधानुकरण--सहा पुं० [सं० भन्ध + अनुकरण ] विना विचारे अनु उन्मत्त । करण करने का कार्य। अधु-सया पु० [ ३० ग्रन्छ ] १. *घो। र । : नि । दुरुप झी अधानुवृत्ति--सहा स्त्री॰ [सं० शन्ध + अनुवृत्ति ] दे॰ 'प्रधानुकरण' । जननेंद्रिये [को० ]।। उ०-.-'भारतीय इतिहास की कुछ समस्याएँ नामक तैय में अधु---वि० अंधेरा। प्रेम से मना। प्राई। --मुराअपनी अधातूवृत्ति और प्रनगलता से 'न भूमि स्यात्-सर्वान् दाना मुताति गृह व । तुम्हारी है। विदुर जग अग्ने । प्रत्यविशिष्टत्वात्' का अनुवाद यो दिया है---भृमि व्यक्तिगत मूर०, १०।१८० । संपत्ति नहीं है --काव्य ये० प्र०, पृ० ४० ।। अधुल-सः पुं० [ से अन्धत ] पि वृक्ष । निरन व पेड। अधानुसरण----स। पु० [ म० अन्ध + अनुसरण 1 दे० 'मधानुकरण। धुला५'- वि० दे० 'पधना' 1 ----पौधे निम्न में से, पानी मुन्ना उ.-.-उन्होंने भारतीय परपरा को मानते हुए भी अधीनुसरण' । । पार । तिन पास न भिटीये, दो गई है चोरु }--वरवानी, कही नही किया है--रस०, पृ० ५। । १० ५०० । अधार -सहा पुं० [ स० अन्धकार, प्रा० अधभार, अधार 1 ६० अधर--- सप्तो पु० [सं० अन्धपार ( अन्ध इद पति-इनि ), प्रा० । 'अधकार' । उ०—-गिरद्द उडी भन अघार रैन।--- ० ०. अधयोरभन्धइयार, अप०, पुं० हि धेर, अधिपार] १. २० । ६५ । अन्याय । अविवार । अत्याचार। जुल्ने । ३ उपत्र । गडदछ । अधारी --- वि० { प्रा० अन्धार+हिं० ई (प्रत्य॰)] अधकारयुक्त । कुप्रबचे । भौसा। सवाघ । धगधग' । ६ । अँधेरी। अंधेरिया। उ०—-अघारी दरुन निसा, भू सपनतर कि० प्र०—फरना ।--मचानी --होना = विचार या गडद आइ-पृ० रा०, १७१७१ । होना । घौगाधनी होना । ३०--इनन। फिरगिने बैठी हैं किसी की जवान तक न हिली और में प्रापत में यः मरते हैं, वैया अंधारी'—सद्मा स्त्री० घोडे, हाथी अथवी वैलो की अखिो पर डालने अधेर है ।--फिमाना, भा० ३, ५० ३ ! का पद । अंधेरी । उ०--इभ कुभ अधारी फुच सुकचुकी, अधरखाता--सद्मा मुं० [हिं० अर्घर+खाता] १ हिसाव किताव मौर कवच सभु काम के कलह ---वैलि, दू० ६० । व्यवहार में गडवडी । व्यतिग। २ अन्यथाचार। मन्याय । अधालजी- सझा स्त्री० [सं० अन्धालजी ] अतर्मुख फोहा। अधी अविचार । कुप्रवघे । ३. अविचारपूर्ण या अन्यायपूर्ण व्यवहार। | फोड । अतर्मुख पिटक [को० ]।। अंधेरगर्दी---सा ही० [हिं० अधेर +फा० गदी] वेहद अबेर । अनाचार अंधाहि--ससा पुं० [सं० अन्धहि ] विपहीन चर्प [को० ]। (बोल०)। अधाहि--सहा सी० एक प्रकार की मछली । कूचिको [को० ]। अघेरनगरी--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० अघेर-+ सं० नगरी ] १. वह स्पान, अधाहिक--सच्चा पुं० [सं० अन्धा हिफ] एक विपरहित सर्प [ फो०]। सस्थान या स्थिति जहां कोई नियम या कानून न हो। भन्यायअधाहुली--सच्चा स्त्री० [सं० अध पुष्पी] चोरपुष्पी नामक क्षुप । पूर्ण राज्य। २. अशाति या अव्यवस्थापूर्ण स्थान । उ०दे० 'धोरपुप्पी' । अधेर नगरी अनवूझ राजा । टेका और माजी टका सेर खाजा । अधिका--सच्चा स्त्री० [सं० अन्धिका ] १ रात। रात्रि । २ चूत । --भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ६७०। जू का खेल । ३ एक विशेष प्रकार का खेल या क्रीड़ा। अधरा--सहा पुं० [हिं० अधेर+आ ( प्रत्य॰)] गुडवः । अधेर । ४ ख का एक रोग। ५. सर्पपी जिसके अत्यत सेवन से । अनर्थ । अन्याय । उ०—महामत्त बुधिदल को होनी देखि कर दृष्टिक्षय होता है (को०)। ६. स्त्रियों को एक भेद (को॰) । अधेर ।--सूर० १ । १८६१