पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९८

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मंधराती ३७ अंधाई विशेष--चाणदय ने अर्यंशास्त्र में राजा के दो भेद किए है-- एवं अध)। दूम्रा चलिः शान्त्र राजा । चलित शारत्र वह है। जो जन वुभव र शव की मर्यादा का उल्लघन व रता हो। इन दोनों में चाणक्य ने अधराज को ही अच्छा से ही हैं, जो योग्य मंत्रियों के होने पर अच्छा शासन य र सकता है । अधरात्री--मा सी० [सं० अघरात्री ] अँधेरी रात । अघवार से वाली रात [को० ]। अधरोप- सज्ञा पुं० [सं० अन्ध + रोप भ पण क्रोध । अति ध । उ० भृकुटि के कुडल वक्र मरोर, फुफता अधरोप फन खोल ।-- पल्लव, पृ० १२१ ।। अधल’---वि० [सं० अन्ध, प्रा० अल] अंध। । नेत्रहीन। अधल” -- सवा पुं० अधोर। अंधेरा । अधली--सच्चा स्त्री॰ [ प्रा० अधल 11 पुं० अघला 1 अधी स्त्री । अघी । उ०--अँधली अाखिन काजल कीया। मुडली माँग सँवारे ।-- सुदर ग्र०, भा० १, पृ० ८७३ । अधवि--सज्ञा पुं० [सं० अन्धविन्दु ] अखि के भीतरी पटल पर का वह २थान जो प्रवाश को ग्रहण नहीं करता और जिसके सामने १डी हुई वस्तु दिखाई नहीं देती ।। विशेप-- नेत्रपटल पर ज्ञनततु पीछे से अवर गिरायो के रूप में फैले हुए हैं और मुन २ माकू । छडिया के प्रकार में ही गए हैं । मनुष्य की अाँख में इन शबुओं की संख्या ३३,६०,००० मानी गई है। ये छडियाँ वा शंकु आकार अर रग का परिज्ञान कराने में वाम देते हैं। यदि प्रकाश ऐसे स्थान पर पहें जहां कोई शक न हो तो कुछ देख नहीं पड़ता। यही स्थान अघविदु कहलाता है । अंधविश्वास--सझा पुं० [ सं० अन्धविश्वास ] दिना विचार किए किसी चात वा निमचय । विना समझे बुझे वि सी बात पर प्रतीति । संभव-अस भव विचाररहित धारणा । विवेव शून्य धारणा । अंधश्रद्धा-- सच्च पुं० [सं० अधश्रद्धा ] विन। विचर की श्रद्धः । विहीन प्राथा । उ०---अधश्रद्धा और श्रद्धा आदि इसी के परिणाम है।--जय० प्र०, पृ० ५३ ।। अधस--सः पुं० [ सं अस 1१ पका हुच्ची चावल । भात । २. में जन (को०) । ३ जडी बूटी (को०) ।४ सोम नामक लता ( क ० ) । ५ स मरस (को०)। ६ रस (को०)। ७. घृत (को०)। अधसैन्य--सन पुः [ सं० अन्धसभ्य ] अशिक्षित सेना। दे० ‘भिन्नकूट' ।। अधाम--सझा पुं॰ [ स० अन्धक, प्रा० अन्ध ] [ स्त्री अधी] बिना अखि का जीव। वह जिसको कुछ सूझता न हो। वह जीव जिर कं, अखिो मे जय हि न हो । दृटिरहित जव । उ०—जानता वूझो नहीं बूझि क्यिा नही गोन। अधे को अधा मिला राह बतावै कोन :-- वीर सो० सं०, भा० १, पृ० १४। अधा--विर १ बिना अखि का । दृप्टिरहित । ३०--अधा बाट २दही फिर फिर अपने देय ( कहावत ) २. विचार रहित । अधिवक । ज्ञानी । उ०—-शानी से कहिए कहा कहत व वीर सजाय । अधे आगे नाचते कला अकारथ जय । कवीर सा० स०, पृ० ८६ । क्रि० प्र०--करना । -वनना !-६नाना ,--होना। भले बुरे का विचार खो बैठन।। ०-क्रोध में मनुष्य अध हो जाता है । ( शब्द॰) । मु०---अधा करना = (१) दे० 'अध। बनाना' (२) व श्रीर जोया या प्रवेश से विवेकहीन बना देना । अधा बनना = जान बूझकर विसी बात पर ध्यान न देना। अंधा बनाना= यूख में धूल डालना । वेवकूफ बनाना ४ खो देना। अधर मुल्ला टूटी मस्जिद = चुरे को बुरी चीज का मिलना। जैसे को तैसा मिनन । अधा क्या चाहे दो भाँखें = जरूरतमद की अपनी जरूरत पूरी होने की कक्षा करना। अधे की लफडी या लाठी = (१) एक मात्र ।घा सहारा । अासरा । (२) वह लडका जो म ई लडकों में बचा हो। इवलीता लड का। अधे के हाथ वटेर लगना = विस वस्तु का अयोग्य व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से प्रप्त होना । उ--समझ ली कि तुम अपनी मिहेनत से नहीं पास हुए, अधे के हाथ वटेर लग गई - मान०, भा० १, पृ० ६२ । अधो मे काना राजा यो सरदार = थाडी सी जानकारी से मूखों या अनजान लोगो के बचे प्ठ बनना। अध का राज = विवेकहीन मन । उ०—-राव रक अधा सवै फिर अधो हो । राज --दरिय, वनी, पृ० ९।। ३ मतवाल।। उ•मत्त । जैसे---धादमी अपने मतलव मे श्रघा है। ४ जिसमे चुछ दिखाई न दें। अँधेरा । प्रकाश शून्य । यौ---अधा आइना = वह दर्पण जिसमे चेहरा साफ दिखाई न दे। धुंधला शशा। अधा कृ = (१) दे० 'अधकूप' १। (२) लडको की एक खेल जो चार लकटियो से खेला जाता है। प्रघा फूप = दे० अधकूप'। उ०---तन में जो अछा कूप है। वही तुम्हारा रूप है -- संत तुरसी, पृ० २५। श्रधा घर= वह मकान जि.की बाहरी रौनक खत्म हो चुकी हो। अंधा घोडा = उपानह । जूता ( स धु फकीर ) । प्रधा चिराग = वह चिराग जिसकी ज्योति में प्रसार न हो । धुंधली ज्योति का दीपक । अधा तारा = ने पचन नामक तार।। अधा ६रवार = दे० 'अधाराज' । अघा दीया= दे० 'अधा चिराग'। अधा मैसा = लडको घा एक खेल जिसमें एक लडका दूसरे लडके की पीठ पर चढ़केर उस्की अखि यद कर लेता है और दूसरे लटके उस भैसा बने हुए लडके के बीच से एक एक करके निकलते हैं। सवार लडवा उपर से प्रत्येक निचलनेवाले लडके का नाम पूछता जाता है। भैसा बना हुमा लडवा जिसका नाम ठीक बता देता है उसे फिर वह मैसा घनाव र उसकी पीठ पर सवारी करता है । अधा रोज = वह राज्य जिसकी अवधे वर हो। अन्यायी राज्य । अघा शीशा = दे० 'आइना' । कहा०--अधा गाए बहरा बजाए = जब किसी काम के करने में अयोग्य व्यक्ति एक साथ लगे हो। अघी पीसे फुत्ता खाय= निष्प्रयोजन काम की चडे परिश्रम से करना। मधे के प्रागै रोए, । अपनी आँखें खोएअरण्यरोदन। प्रधे को दूर फी सुनना असमर्थ होते हुए भी समर्थ से बढ़कर काम करना या अनजान होकर भी जानकारी से भी अधिक समझ की बात बताना । अधाई-सम्रा सी० [ हि० अघा +ई 1 अधापन् । विवेव हीनता । उ०-भप रता प्रधा सवै अधाई का राज ।दरिया बानी.