पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९७

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अंधराज अधकाल अधकालq---सञ्ज्ञा पुं० दे० 'अघकाला' । अधधी---वि० [ स० अन्धधी ] मूर्ख । नाममझ । मदबुद्धि अधकाला--संक्षा पुं० [सं० अन्धकार] अधकार । अँधेरा। उ०—-ऐसे । [को॰] । वादर सजल, करत अति महावल, चलत धहरात करि अध- अधधुध'--सद्मा पु० [स० अन्ध = अन्धफार+ धूम-धू अथवा अन्घ + काला ।—सूर०, १० ८५५ । घूनन ( कपन हलचल ), स० अन्ध + हिंधुध ] १ अधार । अधकासुहृद्- सच्ची पुं० [सं० अन्धकासुद्द६] अधकारि शिव [को० ] ! अँधेरा। उ० ---(क) अति विपरीत तृणावर्त अायो । छातचक्र अधकूप-सच्ची पुं० [सं० अन्धकूप] १ वह कू जिसका जल सूख गया मिस ब्रज के ऊपर नद वरि मे भीतर प्रायो । अधधुध भयो हो और मुंह घासपात से ढका हो । अधा कूअ । सूखा सघ गोकुल जो जहाँ रह्यो मो तह छपाया 1--सूर०, (याद०)। कू । अँधेरा कूअ । उ०——यह कूप कूप भवे अधकूप, वह रक ( ख ) क ख ले औट रहत वृष्टर ने अधध्रुध दमि बिदिप्ति हुआ जो यहाँ भूष निश्चय रे । --तुलसी०, पृ० २८ । २. भुलाने |--सूर०, १० । ८६० । २ अ धुध । अधेर । अनर ति । अंधेरा। अधकार । उ०——जैसे अधी अधकूप मे गनत न खाल दुराचार । अनियमित व्यापार । उच्छवन कर्म । उ०--समुझि पनीर । तैसेहि सुर बहुत उपदेसै सुनि सुनि गे कै बार--सूर०, ने प? तिहारी मधुकर, हम भजनारि गंवार । सूरदास ऐमी १८४ । ३ धनाधकार। निविड तम । अघागुप्पे । उ०— क्यो निय? अघध सरकार -- सूर०, १०1३६०६ ।। अघकूप भी अाव, उडत अव तसे छार । ताल तलावा पोखर, अधधुध--वि० विशाल । अपार । उ०--देखते मदध देकचे अधधुध घूरि भरी जेवनार ।--'जायसी ग्र०, पृ० २२७ । ४, एक नरक दल बधु सो वलकि वोल्यो राजा राम वरिवट ।—भियारी० का नाम । ग्र०, भा० २, पृ॰ ३२ ।। अधकृपता--भक्षा मी० [सं० अन्धकूपता ] अँधेरापन । मूर्खतः । अज्ञाने। अधधुध-नि० वि० चहुत । अत्यधिः । उ०--अनुवा म वाप, उ०--उन्हें जगत् की अनेकरूपता और हृदय की अनेक भावा रुच रे, बहुरि नहीं अम अवसर पाय |--जग० ज०, मा० २ हमकता के सहारे अधकूपता से बाहर निकलने की फिक्र करनी पृ० ११० । चाहिए।--चितामणि, भा० २, पृ० ५१ । अधधू-मझा पुं० [ देश० ] कूप । कुछ [ का ] । अधकोठरी-सच्चा स्त्री० [ सं ० अन्ध - हि० कोठरी ] अंधेरा और तग अधपपरा--सहा जी० [सं० अन्धपरपर 1 विना समझे घूझे पुरानी कमरा (बोल०)। | चाल का अनुकरण । एक या कोई याम करते देख दूसरे का अधखोपडी--वि० [ स० अन्ध+हि खोपडी ] जिसके मस्तिष्क में । बिना किसी वि द्वार के उसे करना । लीक पिटीअल । भेडिया| बुद्धि न हो । मूर्ख । गाउदी । भोदू । अज्ञानी । नासमझ । धेसान । अधड-.-सझी पुं० [स० अन्घ + हिं० डू (प्रत्य॰)] गर्द लिए हुए कडे शो के अधपूतना--सज्ञा श्री० [सं० अन्धपूतना ] दे॰ 'अघपूतना ग्रह'। की वायु । वेगयुक्त पवन । अधी। तूफान । उ०—-अधड था अधपतनाग्न--सा पुं० [सं० अन्धपूतनाग्रह ] चालकों का रोगायोप। चढ़ रहा प्रजादल सा झुंझलाता।---कामायनी, पृ० २०० । विशप-६समे वमन, ज्वर, खांसी, म्याम आदि की अधिकता होती अधतम-सी पुं० [स० अन्धतमस् ] घना अंधेरा । अँधेरागुप्प । ३० - है। बालक के शरीर से चरबी की सी गध अाती हैं और वह जग के निद्रित स्वप्न सजनि सब इसी अधतम में बहते ।-- बहुत रोता हैं । दे० 'पूना' । पल्लव, पृ० ५७ ।। | अधप्रभजन- संज्ञा पुं० [सं० अन्धभजन] ऐसो तेज हवा जिसमें कुछ न अधतमस-सच्चा पुं० [सं० अन्धतमस् ] दे॰ 'अघतम'। उ०—–अवतमस सूझ पडे । अाँधी । तूफान । ३०--वहती अधप्रभजन ज्यो, है किंतु प्रकृति का आकर्षण है खीच रहा ----कामायनी, यह त्योही स्वरप्रवाह, मचल कर दे चचल ।कापा । पृ० २२७ । अनामिका, पृ०६७।। अधता--सज्ञा स्त्री॰ [ स० अन्धता ] अंधापन । दृष्टिहीनता। उ०---चल न सके चाल लागे दुख दैन वाल बैन, लटपटे भए नैन अधता अधवाई--सच्चा स्त्री॰ [ स० अन्धवायू ] घूल लिए हुए वेगयुक्त पवन । छई --दीन० ग्र०, पृ० १३८ ।। ऐसी तेज हवा जिसमें गर्द के कारण कुछ सूझ न पड़े। आधी । अधतामस्---संवा पुं० [स० अन्धतमिस् ] दे० 'अधतमस' [को० 1।। तूफान । अधतामिस्र--संज्ञा पुं० [सं० अन्धतामिस्र] १. घोर अधकारयुक्त नरक। अधमति--वि० [स० अन्धमति] उलटी वुद्धिवाला । नासमझ । मूर्ख । बडा अंधेरा नरक । २१ वहे नरको में से दूसरी या १८ व।। उ०—रे दसकध अघ मति तैरी अायु तुलानी अनि ।--- २ जीने की इच्छा रहते हुए भी भरने का भय ( साख्य) । सूर०, ६७६ । विशेष---साक्ष्य में इच्छा के विघात अर्थात् जो इच्छा में अाए । अधमूषिका--सद्मा जी० [स० अन्धमूषिका 1 'देवता' नामक पौधा । उसे करने की अशक्ति को विपर्यय कहते हैं । इस विपर्यय विशेष---वैद्यक में माना गया है कि इसके सेवन से अज्ञापन चली के पाँच भेद हैं जिनमें से अंतिम की अधतामिले थे। अभिनिवेश जाता है। कहते हैं। अधर--वि० [स० अन्धकार, अधार] अँधेरा । अधकारमय । ३ योगशास्त्र के अनुसार पाँच क्लेशों में से एक । मृत्यु का प्रकाश रहित । उ०-नखत चहू दिसि रोव हि, अधर घरति भय । अभिनिवेश । ४ मृत्यु के बाद अमिा का अनस्तित्व अकास ।--जायसी (शब्द॰) । [को०]। अधराजा---पुं० [स० अधराजा ] शास्त्र और नीति अादि से अनः अधत्व--सझा पुं० [ स० अन्घत्व ] अघापन [को॰] । भिज्ञ अविवेकी राजा ।