पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९४

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अंत्यजन्मा अत्याश्रम य--अन्यजगमन= सवर्ण जाति की स्त्री का असवर्ण जातिवाले प्रत्यक्षर-सच्ची पुं० [सं० अन्त्याक्षर ] १ किसी शब्द या पद के पुरुप के साथ यौन सत्र । अत को अक्षर । २ वर्णमाला का अतिम वर्ण 'ह' । । अत्यजन्मा--वि० [सं० अन्त्यजन्मा] सत्य जाति का । निम्न जातीय श्रेत्याक्षरी--सुप्ता स्त्री० [सं० अन्त्य +-हि. अक्षरी ] किसी कहे हुए | [को॰] । श्लोक या पद्य के अतिम अक्षर से प्रारभ होनेवाला दूसरा अंत्यजा--संज्ञा स्त्री॰ [ स० अन्न्यज्ञा] गूदा । अतिम वर्ण में उत्पन्न स्त्री मलोक या पद्य पढ़ना। किसी एलोक या पद्य के अतिम पद के [ को०] । अत्य अक्षर से दूसरे इलोक या पद्य का प्रारभ । यो०--प्रत्यागमन = सवर्ण जाति के पुरुप का असवर्ण जाति की विशेष--विद्यार्थियों में इसकी चाल है। एक विद्यार्थी जब एक स्त्री के साथ यौन संबध । श्लोक या पद्य पढ़ चुकता है तब दूसरा उस श्लोक के अतिम अत्यजाति- वि० [सं० अन्त्यजाति ! अतिम जाति का। निम्न जाति का भर में प्रारभ होनेवाला दूसरा श्लोक या पद्य पढता है। फिर [को०]।। पहला उस दूसरे विद्यार्थी के के हुए पद्य का अतिम अक्षर लेता अत्यजातीय-नि० [सं० अन्त्यजातीय ] दे॰ 'अत्यजानि' (को०]! है और उससे प्रारभ होनेवाला एक तीसरा पद्य पढता है । अत्यधन-सज्ञा पुं॰ [ म० अन्त्यधन ] गणना की प्रतिम राशि (को॰] । यह क्रम बहुत देर तक चलता है। अंत में जो विद्यार्थी श्लोक अत्यपद--श्री० पुं० [ स० अन्त्यपद } अनिम या सबसे बड़ा वर्गमूल । या पद्य न पाकर चुप हो जाता है उसकी हार मानी जाती है । अत्यमूल (गणित) [को०] । अत्यानप्रास--सच्चा पुं० [ स० अन्त्यानुप्रास ] पद्य के एक अत्यभ- -मक्षा g• [ सं० म त्यम् ] १ अतिम नक्षत्र अर्थात् रेवती । चरण के अतिम अक्षर और पूर्ववर्ती स्वर का विसी अन्य | २ मन पगि ।। चरण के अंतिम अक्षर और पूर्ववर्ती स्वर से मेल। पद्य के अत्यमद- सुद्धा पुं० [स० अन्त्यमद ] मदात्यय रोग की एक भेद । चरण के अतिम अक्षरों का मेल । तुक । तुकबंदी । तुकात । विशेष--इसमें रोगी वडो व तिरम्वार करता है, न खाने ये ग्य उ०----श्रुतिक मानकर, कुछ वर्षों का त्याग, वृत्तविधान, लय, चो जों को खाता है और इसके मन में जो गुप्त बातें ह ती हैं अत्यानुप्रास अादि नाद-सौंदर्य-साधन के लिये ही है !----रस०, उन्हें प्रकट वग्नै लगता हैं । मदा वय तीन प्रकार की पृ० ४६ ।। होता है। पूर्वम्द, मध्यमद और अन्यमद। --मा० नि०, विशेष----जसे, सिय सभा किमि कहीं वखानी। गिरा प्रनयन नयन पृ० ११५ । विन व नी ।--तुलसी (शब्द०)। इस चौपाई के दोनों चरणो का अत्यमूल--संज्ञा पुं॰ [ म० अन्त्यमूल } दे० 'अत्यपद' । अतिम अक्षर 'नी' है। हिंदी कविता में ५ प्रकार के अत्यानुप्रास अत्ययुग--सद्मा पुं० [ स० अन्त्ययुगर ] गणनाक्रम से युगो अत में मिलते हैं। ( १ ) सत्य, चिसके चारो चरणो के अतिम अाने वाला युग । कलियुग । वर्ण एक हो । उ०—-न ललचहु । सव तजहु । हरि भज्हु । यम करहु । (शब्द०) । (२) समात्य विपमात्य, जिसके सम से सम ग्रत्ययोनि--संछः स्त्री० [ स० अन्त्ययोनि ? अतिम या निम्न योनि और विपम से विषम के अत्याक्षर मिलते हो । उ०---जिहि | [ को 1। । सुमिरत सिधि होइ, गणनायक करिवर बदन । करहु अनुग्रह सोइ, अत्ययोनि --> निम्न में नि का [को० ] । बुद्धिराशि में गुण सदन । --तुलसी (शब्द॰) । (३) समात्य अत्यलोप--सा वि० [ स ० अन्त्यलोप 1 किसी शब्द के अतिम वर्ण जिसके सम चरणो के अत्याक्षर मिलते हो विपम के नही। उ०—या अक्षर को लप ( भा० वि० )। सब तो । शरणा । गिरिजा। रमणा (शब्द०)। (४) विपमात्य, अत्यवण--संध्या पुं० [ स० अन्न्यवर्ण ] १. अतिम वर्ण । शूद्र । २ । जिसके विपम चरण के अत्याक्षर एक हो, सम के नहीं। उ०+ अत का वर्ण है'। ३. पद के अंत में आने वाला कोई भी वर्ण लोमिहि प्रिय जिमि दाम, कामिहि नारि पियारि जिमि । | या अक्षर।। तुलसी के मन राम, ऐसे है १६ लागि हो --तुलसी (शब्द०'। अत्यविपुला--सच्ची श्री० [ स० अन्त्यविपुला ] अार्या छद को एक भेद । ( ५ ) समविपमात्य, जिसके प्रथम पद का अत्यक्षिर द्वितीय विशेप--इसके दूसरे दल के प्रथम तीन गणो तक चरण पूर्ण न्ही पद के अत्याक्षर के समान हो । ३०--जगो गुपाला । सुभोर होता और दोनों दलों में दूसरा और चौथा गण जगण होता काला। वही यसोदा । लहै प्रमोदा (शब्द॰) । है। इसे अत्यविपुल महाचपला, अत्यविपुला जघनचपला या अत्यावसायी-सज्ञा पुं० [स० अन्त्यावसाथिन् ] [स्त्री॰ अत्यावसायिनी । अत्यविपुलः मुखेचपला भी कहते हैं। १ हिंदुओं की प्राचीन जातिव्यवस्था के अनुसार अत्यत नीच अत्यविराम-- सहा मुं० [ रा ० अन्त्यविरमि] अत का या प्रतिम जाति का व्यक्ति । चाहाल । मनु के अनुसार निषाद स्त्री और विराम । उ०--गिरजाकुमार मार अत्यविराम रहित पक्तियो चाहाल पुरुष से उत्पन्न व्यक्ति । २ अगिरा के अनुसार चौडाल, के मुक्त द को काव्य के लिये बहुत उपयुक्त मानते हैं 1--हि० श्वपच, सत्ता, सूत, वैदेहक, मागघ और अयोगवे ये सात का० अ० प्र०, पृ० २६१ । जातियाँ। अत्या--सा झी० [ म ० अन्त्या ] चाडाली । चाडाल की स्त्री । प्रत्याश्रम--सया पुं० [सं० अन्न्याश्रम ] अतिम अश्रिम । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, चाड़ानिन । वानप्रस्थ और सन्यास--इन चारों आश्रम में अतिम । सन्यासाश्रम [को०,]।