पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९३

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अंत्यज अंतहकर्ण ! ३२ अतहकर्ण-सज्ञा पुं० दे० 'अत रण । उ०~-सुंदर हरि के 'भजन प्रतिज-- पुं० दे० 'प्रत्यज'। उ० --वहि जो अह देह अभिमानी । ते निर्मल अतफण ।--सुदर ग्र०, पृ० ६७६ । चारि वणं अतिज लौ प्र नी ।-- गुदर ग्र*, * ० १, पृ० ३७४।। अतहपुर-सवा पुं० दे० 'अत पुर' । उ0--(क) पुछत पूछत ग्यौ अतिम---वि० [ म अन्तिम ] १ जा अत्र में है। अन । । धाग्निर।। मतपुरि । हुमी सुदरसण तणौ हरि ।,--लि, दू० ५२।। मने पिछला। गवके पीछे न । २ चरम । मदम के । (ख) उटिव नृपति दीवान त, अतर में जाय ।--१० रासो, मूद दरजे का । अतिम यात्रा--मम) प्री० [सं० अन्तिम यात्रा ] मायावा । महा अतहा -सा पुं० [सं० मन्त्र + ] अाँतो की माल।। प्रति का प्रस्थान । धारि गफ । प्रनानि । मृत्यु । मग । मौत। हरि । उ०—–करि अगर।ग चरवी बसा अतहार अाभार दिय ।-- | मूर के पीछे उस म्यान र जयामा । यात्रा जहाँ अपने सुजान च०, पृ॰ २३ । यामनुमार उगे हर संग प फ भागना पड़ता है। अताराष्ट्रिय-वि० [सं० भन्तर+राष्ट्रिय ] दो या दो से अधिक राष्ट्रो अतिमाक- दी० पुं० [सं० प्र तमाङ] नौ । मया [को॰] । से संबध रखनेवाला । अतिमेथम्--[ अ० 'अरिटमेदम्' की हिदीपरण] मावि घेदन । अताराष्ट्रीय--वि० [सं० अन्तराष्ट्रीय ] दो या दो से अधिक राष्ट्रो से अती---मह भी० [६८ अ व शनि । ३०-दुरै मृर प्रती ग न मामी सवध रखनेवाला । म भुमि छत्ती नु गाय ३ ---१० स०, ६६ । १०४७ । अताल--सज्ञा पु० [ म० अन्तलि ) अति । अंडी |--गरि फुक सु अतेषु-मि० वि० [ १० ग्रन्ते | दे० 'अनन' । उ॰--अधर महल पर | कक, डक्किन ढुक, गिद्ध गहूक माल |--१० रा०, २।२६० । बैठ गाया, पंत जाय बनाये ---गुर।न०, ५० ३८ ।। अतावरि–सल्ला स्त्री० दे० 'अतावरी' । अतेउर -मा १० ( म० अ त पुर, प्र० गतेज्र; अंतैपर ] घर के अतावरी--सझः ८ [ सै० अन्त्र + भयली ] प्रेतडिय अतों का । भीतर का भूगि जिम न्ति रहती हैं । अत पुर। जनानसमूह ।--ग्रताव गहि इन गध पिसाच कर गहि म्यान। 1 निवाग । २०-८६ पैरइ फेरि यि । मुगल धावही --मानम, ३।१८।। अवे' नीयद २ बुनाई ।--वीस० ० पृ॰ [१ । अतावशायी--सया पु० [सं० अन्तदिशायी]१ गाम की सीमा के बाहर अतैवर(५).-सा पं० ६० प्रज?'। ---इज फेरी जय प३ वसनैवल । २ प्राचीन काल में अस्पृश्य याहे जानेवाले वर्ण २१य, गहु अवर रियो वाला--बी० ९, पृ॰ २३।। जैसे- इटाल । अते वासिQ--मः १० दे० 'अन्वामी' । ३००-गोपादान!ज भी अतावसायी--सच्चा पु० [ सः अन्तवसाय ] १ नाई । हज्जाम । २ । | पनि उन अतेव।मि।--नान, १० ६०८।। हिंसक । चाडोल । अतेवासी-सी पुं० [सं० अ तेवासी] १ म ३ समीप रहनेवाली । अतित(७----वि० [ सं० अत्यन्त ] दे॰ अन्त' । उ० ---पुच्छन मु वल निध्य । चैल। 5 ग्राम में 'हर हुनेवाला । चट्टान । बुल्यो दलिय 1 करि सु चित अतित चित । पृ० रा०, १२७५। अति-सच्चा स्री० [सं० प्रन्ति ] वडी बहन [को०] । मत्य । --प्राचार्य मोर अतैवामी प्रयत गह'ने घोर घट्ने याने दोनों ही उस मादर्श से प्रेरित है त ? .---पाणिन, अति --वि० [सं० अन्तिक,प्रा० अतिम्र] १ समीप । निकट । उ०-- पृ० ३९८ । खहे प्रति चहुवान के वैन बोले |--१० रा०, पृ० ८५ । २. ५ अत्य---a" [सं० प्रन्य } प्रत या} भनि । जिरी । मदो पिछला । अत मे । उ० ---ज़ के छ तत को मत अति कहि कहि समझायो । यौ०--प्रत्यजन्मा, प्रत्यानि, अन्यजातीय । प्रतिम वर्ण ।। --पृ० स०, ६७१४५५ ।। अत्य-सभा • वह जिगी गणना मत में हैं, जैसे--१ लग्न में अति” (७-६० ‘अत्यत' । उ०-सहस मत हय पेत रहि परे पच से। भने । ३ नाद में रेवती । ३, वणों में मून सार ४ दति, लुथ्यि कोस पचह प्रचर परे सु पाइल अति ।--पृ० रा०, असो में 'इ' । ५ एफ सरर ! पद्म की नयी । द६ मार्ग १९२४४।। की सध्या (१०००,००० ०००,०००,०००) दम ब रोड परोस । अतिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० अन्तिक ] १ पडोस । २ निकटता। सामीप्य ६ यम [को॰] । | [को०]।। अत्यक-सपा पुं० [ म० अन्त्यक ] अतिम दणं पा मप्य । अरयज अतिक-वि० १ पास। २ निकट । समीप [को०]। [को०]। अतिकता--सा सी० [सं० अन्तितः ] सामीप्य । निकटता [को०]। प्रत्यकर्म----सी पुं० [ म० अन्यकर्मन् } मंत्येष्टि क्रिया। अतिकस्थ---वि० [सं० अतिकस्य ] निकटस्थ । पास या समीप पहुँचा अंत्यक्रिया- सद्या स्त्री॰ [स० अन्त्यप्तिया] प्रत्ययम् । प्रत्येष्टि [को०] हुमा [को॰] । अत्यगमन--सपा पुं० [ स० अन्त्यगमन] सच जाति को स्त्री के असअतिका--सा स्त्री० [सं० प्रन्तिका ] १ प्रति । वही घन। २ चूल्हा। वणं जातिवाले पुरुष के साथ वास [को०]] . भट्ठी । ३ एक पौधा । घरातला [को०]। अत्यज---सच्चा पुं० [ सं २ अन्त्यज ] [ वि० सी० अयजा ] वह व्यक्ति जो अतिकाल(५)--सा पुं० दे० 'अनकाल। ४०--गुर परमादै भिष्मा मतिम वर्ष में उत्पन्न हुआ है । यह पद् जो प्राचीन युग में न | पाइवा, अति कालि न होगी भारी -गोरख 6, पृ० ३७ ॥ के योग्य नही माना जाता था या जिसकी छु। हुमी जन द्वि प्रतिकाश्रय-- सच्चा पुं० [ अन्तिफाश्रय ] समीपस्थ का सहारा या अवल उन दिनों ग्रण नहीं करते थे, जैसे-- घोबी, चमार नट ब्रह, वन [को० ]। डोम, मेद, भिल्ल इत्यादि ।