पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/९०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

- । अंतर्भूत अंतर्वाण अंतर्भ तसा पुं० जीवात्मा । प्राण । जीव । ३ भीतर तक पैटर्नवाला । मीनर पहुँच नेवाला । उ॰-- अतर्भूमि--सा स्त्री० [ अन्तभूमि ] पृथ्वी का भ.तर भाग । भूगर्भ । चाण ये सात्वि , अध्ययन का अनयमी सूत्र | गहराई तक अतर्भद-- से पु० [ अन्तभेद ] भीतरी मनमुटाव [ को० ]।। उन शान्त्र में पैठने पर मारे हाथ माया --पं० पृ० २।। । अतदिनी - वि० [सं० अन्तर्मेदिनी] हृदय । 'भेदन ६ रनेव,ग्नी । भीतर अतर्यामी--स पु० ईश्वर। परमात्मा । चैतन्य । परमेश्वर । | तक पहुँचनेवालः । उ०----उसकी सर्वदशिनी अन्दर्भ दिनी पो । पुरुप ।। से छिपी न रह मकी --प० 'रानी, पृ० ८! अतर्योग---सा मुं० [सं० अन्तयम् ] ध्यान । अबु ध्यान [ म ० ] अतभी म-वि० [ सं० तभी म] जमीन के अदर का । भूगर्भ में अतप्राट्रीय--वि• दे० 'अतर ट्रिीय’, ‘ग्रत रराष्ट्रीय'। २०--उनके काम । स्थित [को० ]। अरने के घटे और याम करने के नियम, भारत की प्रायिक अतर्मन--संज्ञा पुं० [सं० अन्तर्मन ] भीतरी मन ! मन की भीतरी व्यवस्था पर ध्यान रखते हुए, अ ट्रीय ढग पर हों। -- भा० चेतना अवचेतन । ३०--( क ) उस भरे पूरे वावरण वि०,१० ३६ ।। में रहने पर भी मेरा अतर्मन वास्तव में 'भयकर सूनेपन का यिषा--!ह शब्द सम्मृत व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध नहीं हैं। अनुभव करता रहता था 1--प० रानी, पृ० ३६ । ( ख ) अतर्ल व--संश' पुं० [सं० घन्तर्लम्व ] वह त्रिकोण क्षेत्र जिसके भीतर अतर्मन के भूमिबाप से ध्वस भ्रश हो । शिखर सनातन लव गिरा हो। विबर रहे हैं मृत्यं धूलि पर --युगपथ, पृ० ११०। अतर्लपिका-- सच्चा फी० [सं० अन्तलपिका] वह पहेली जिसका उत्तर अतर्मना--वि० [सं० अन्तर्मनस्, अन्तर्मना ] १ व्याकुलचित्त । उस पहेल वे अक्षरों में हो । उ०—(a) कौन जाति सीता | वह या हुअा। विवल । २ द स । रजीदा । ३. अतमुखी । रती, दई नन व हे तात । कान प्रथ वरप्यो हरी, रामायण अतर्मल--संज्ञा पुं० [सं० अन्तर्मल ] १ भीतर का मल। पेट के अवदात !--वेगव ( घाब्द०)। इस दोहे में पहले पूछा है भीतर का मैला । पेट के अंदर की अलाइश । २ चित्त कि संता मौन जाति र्थ ? उत्तर--गमा = स्त्री ! फिर पूछा विकार । मन का दोष । हृदय की बुरी वामना। कि इनके पिता ने उन्हें किराको दिया । उत्तर 'रामाय = राम अंतर्मुख'--वि० [सं० अन्तर्मुख ] [ ० अन्तर्मुखी ] १ जिसका को । फिर पूछा विम ग्रंथ मे हरण दिखा गया हैं । उत्तर मुख भीतर की ओर हो । भीतर मुंहवाला । जिसका छिद्र भीतर हुम्रा 'रामायण' । (ख) चार 'हीने बहूते चले आ आठ महीने की अोर हो। उ०---यह फोडा अति कठोर र अतर्मुख होता य,री । अमीर खुसरो यों व है तू वृभ पहेली मंरी --- (शब्द०)। है ---अमृतसागर (शब्द०)। ३ जिसकी वृत्ति वहिर्मुख न हो। इसमें 'मोरी' शन्द ही उत्तर है । rr के शर्बन रदनेवाला । ३०-- असली न-- वि० सं० अन्तली न ]१ मत । भीतर छिपा हो । स्या 'वह अतमुख र अात्मरत था |--भस्मा० चि०, पृ० १०! । हुम । गर्क । विलीन । ३. तन्मय । ध्यान में मन (को०)। अतम ख’---क्रि० वि०, भीतर की ओर प्रवृत्त । जो बाहर से हटकर प्रतवं --सन्न पुं० [ स’ अन्तर्वश ] अते.पुर [को० 11 गीतर ही लीन हो। | पंतवं शिक----वि [ मन्तवशिक] अत पुर या प्रवेश या निरीक्षक क्रि० प्र०—करना=भीतर की ओर ले जाना या फेरना । भीतर | [को०] । नईत अतर्वण--- वि० सं० [ अन्तर्वण ] वन में मीतर घगा हुआ [को० ]। पर उनके द्वारा अपनी महिमा का साक्ष त अनुभव करता है-- अतवता--वि० [सं० अन्तयंती ] १ भंवती । अतर्वनी । गरि । कठ० प ० ( शब्द ० ) । हामिल।। २ भीतरी ! भीतर की । अदर रहने वाली । अतर्मुद्र--सद्या पुं० [सं० अन्तमुद्र ] भक्ति का एक प्रकार [को० ] ।। अतरस्थित। अंतर्वनी--वि॰ स्त्री० [ सं• अन्तर्वत्नी ] गर्भवती। भणी । हामिला। श्रतमुद्र--वि० भीतर से मुहरबंद [को० ]। उ०--निज प्रिय पति के दिव्य तेज ३ मतबंनी शनी ।- अतर्म त--वि० [सं० अन्तर्मत ] गर्भ के भीतर मरा हुआ। पावत, १० ५१।। | ( णिशु } { को० ] । अतर्वमि--सज्ञा पुं० { २० अन्तर्वमि ] अजीणं [को॰] । अतर्य-वि० [सं० श्रन्तय ] भीतर का । वीच का [ को०] । अतर्वर्ग- पुं० [सं० अन्तर्यगं] विसी दग या समूह के भीतर फा अतर्यज्ञ-सा ५० दे० 'अतयग' (को॰] । वर्ग [को०)। अतर्यश्छद-संवा धुं० [सं० अन्तर्यपध्द ] भतर का वरण [को॰] । | अतर्वत-वि० [सं० अन्तर्वत ] [ वि० सी० मतवनिनी ! भीतरी । अंतर्याग--सच्चा पुं० [सं० अन्तर्याग ] मानस यज्ञ या मानसिक पूजा | र्भ तर का। मेदर रहनेवाला [को॰] । [को०] । अतर्यामी'--वि० [सं० अन्तर्यामिन्, अन्तर्यामी] [वि० जी० अन्तर्यामिनि] अतर्वस्तु-- सुद्धा स्त्री॰ [ मे० अन्तर्यस्तु ] किसी पुस्तक, पत्र, पेटी मादि के भीतर की वस्तु [ मो०]। १, भीतर मी वात जाननेवाला । हृदय की बात का शान रखने | अतर्वस्त्र--संया पुं० [ सु० अन्तर्वस्त्र ] उपरी वस्त्र के अंदर पहनने वाला । ३०----(क) जो अतर्यामी, वहीं इसे जागा [--सामेत, १० २३३ । (ख) किसने तुपको असमिनि ! बतलाया उसी पर उपदा [ फे० ]। प्रतवाणी---न' पुं० [सं० अन्तर्वागी 1 7 * भाना ?--वीणा, १०, ५६ । ३ मत करण में स्थित होकर . प्रेरणा करनेवाला । चित्त पर दबाव या अधिकार रखनेवाला । शास्त्रों का जाननेवानी। विद्वान् । द्रियों को हटाप घतर्मुख अतीव स० अन्तर्पती] १ गर्भ