पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/८९

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अंतर्देशीय २८ अंतर्भूत जा रहा है ---जय० प्र०, १० ८६ । २ अत्मिचिंतन । आत्मा अतनिर्भरता-~-सज्ञा पुं० [सं० अतर् + निर्भरता ] पारस्परिक निर्भका ध्यान । रता । एक दूसरे वा भरोमा या महारा। उ०म्बघिीनता अतर्देशीय---वि० [सं० अन्तर्देशीय ] १ देश के भीतर का । जैसे अत ध्येय नही, साधन मात्र है, ध्येय है अतरनिर्भरता तथा एकता। देशीय पत्र । २ दो या दो से अधिक देशो के मध्य को । दो -~रजत शि०, पृ० १२१ ।। या अधिक देश सवधी ! अनिविष्ट--वि० [सं० अन्तनिविष्ट ] १. भीतर बैठा हुआ । अदर | ना हुआ । २ अत करण में ग्थेित । मन में जमा हुआ । अतर्धान'---संज्ञा पुं० [सं० अन्तद्धन ] लोप । प्रदर्शन । छिपाच ।। हृदय में बैठा हुन्न । तिरोधान् । क्रि० प्र०—करना=(१) भीतर वैठना । अदर ले जाना । भीतर अतर्धान--वि० गुप्त । अलक्ष्य । गायव । अदृश्य । अतहित । अप्रकट। रखना। (२) मन में रखना। जी में बैठना । हृदयगत करना । लुप्त । छिपा हुआ। दिल मे जमाना।—होना = (१) भीतर बैठना । भीतर क्रि० प्र०-.-करना = छिपाना । दूर हटाना। = नजर से गायब जाना । भीतर पहुँचना । (२) मन में धमना । चित्त में बैठना । करना । उ॰—ताते महा भयानक भूप। अतद्धनि करी सुर दिल मे जमना। हृदयगत होना । भूप। - सूर ( शब्द० ) --होना = छिपना। लोप होना । अतनिष्ठ--वि० [ने अन्तनिष्ठ) प्रादमीय या विषयगत (मजेक्टिव) । उ०----भई मुनि की खेज सो भए अतद्धन।---वृद्ध० घ०, उ०----प्रेमचंद के लिये मूव कुछ अपना ही है, जैनेंद्र का जो कुछ पृ० १६ । है अपना है । एक वहिनिष्ठ श्रीर दूसरा प्रतनिष्ठ -प्रेम अत ई द्व- सच्चा, पुं० [सं० अन्तर्द्वन्द्व ] १ चरित्र विकास की दृष्टि से गोर्की, पृ० २१७ । २ अतरिफ चिंतन में लगा हुआ (को०)। नाटक के प्रधान पात्र का प्रातरिक संघर्ष। मन में उठनेवाले अतनिहित--वि० [सं० अन्तर्निहित ] विलीन । ममाविष्ट । उ०--उधर भाव अथवा विचारों चा सघर्ष । ७०---मानवीय प्रेम के उद्- पराजित पालरात्रि भी जल में प्रतनिहित हुई |--कामायनी, भव, उत्थान, विकास, अतद्वंद्व, ह्रास अादि की कहानी वाहने प० २३ ।। को यत्न किया गया है ।--हि० अ० प्र०, पृ० २४५। २ घर अतवीप-संज्ञा पुं॰ [ मै० अन्तर्वाप्प ] देवाए गए अध्। रोका हुआ या देश को आपसी झगडा [को०)।। gfसू । निरुद्ध बाप्प [को०]।। अतर--समा, पुं० [सं० अन्तर] घर के भीतर का गुप्त द्वार। अतवाप्प- वि० अश्रूमय [को० ]। अतर्वोध-सा पु० [सं० अन्तर्योध] १ आत्मज्ञान । अस्मिा की घर में आने जाने के लिये प्रधान द्वार के अतिरिक्त एक और पहचान ! २ अतिरिक अनुभवे । द्वार। पीछे का दरवाजा । खिडकी । चोर दरवाजा। | अतर्भवन--सद्या पुं० [सं० अन्तर्भवन ] घर का भीतरी भाग । मतग है। अतर्धा-सवा स्त्री० [सं० अन्तर्धा ] १ अपवारण । २ सगोपन । अतरभवन । उ०—-छोड सभा विलास मी अतर्भवन निज किस | आच्छादन [को० ]।। विजन मे --पार्वती ०, पृ० १५१ । अतर्धान--वि० [सं० अन्तर्धान ] गुप्त । अदृश्य। अतहत । उ०—है। अतर्भाव-सा ऐ० [सं० अन्तर्भाच ] [ वि० अन्तर्भावित , अन्तर्भूत, सा हरि जू भए अतर्धान । भोस कहि तू प्रगट घग्यान ।---सूर०, अन्तर्भावना] १ मध्य में प्राप्ति । भीतर ममावेम । अतर्गत होना। १२८६।। शामिल होना ।----उ० अन्य थलिकारी को उपमा, दीपक और अतर्धापन--सज्ञा पुं० [सं० अन्तर्धापन ] संगोपन । छिपाने या तिरोहित रूपक में अतर्भाव है। (अयत अन्य अल कार उपमा दीपक यदि करने का कार्य [ को० ] । के अतर्गत है )--( शब्द०)। २ तिरोभाव । विलीनता । अतर्धापित---[ सु० अन्तर्धापित ] सगोपित। छिपाया हुआ [को० ] । छिपाव । ३ नाश । अभाव। ४ अहं न या जैन दर्शन में पाठ अतर्धारा--सज्ञा स्त्री० [सं० अन्तधारा ] वह प्रवाह जो वाह्य लक्षणों से वर्मा का क्षय जिससे मोक्ष होता है। व्यक्त न हो । अतरिक धारा । उ०—वन जीवन के विपम देश क्रि० प्र०-—करना ।-हो । की निर्मल अतर्घारा। जीवन का मृदु मर्म सोचतो रही अमृत ५ भीतर का भाव । अारिक अभिप्राय । आशय । मशा । रस द्वारा १--पार्वती०, पृ० २१।। अत्तभवनासधा स्त्री॰ [ अन्तर्भावना 1 १ ध्यान । मोच विचार । अतधि--सद्मा पुं० [सं० अन्तधि ] १ दो सघर्षशील राज्यों के बीच में चिता । चितवन। २ गुणनफल के अतर से संख्याओं को ठीक करना। पहनेवाला राज्य । २ दे० 'अतर्धा' [को० ] । अतर्भावित--वि० [ सै० अन्तमवित] १ अतभूत । अतर्गत । शामिल। अतध्र्यान--सना पुं० [सं० अन्तध्यन] अतरिक एवं गंभीर समाधि । [को० ]। - | भीतर। २ भीतर किया हुआ । छिपाया हुआ। लुप्त । अंतभु क्त--वि० [सं० अन्त मुक्त ] शामिल । समाविष्ट । उ०--इन अतर्नगर--सी पुं० [सं० अन्सर्नगर ] राजा का प्रसाद या रईस की । जातियो और इनकी समस्त प्राचार परपरा को धीरे धीरे इन महल [को०]। टोकामो तथा ऋपियों के नाम पर लिखे गए नए नए स्मृति अतर्नयन--सुझा पुं० [सं० अन्तर्नयन ] दे॰ 'अतर्दृ ष्टि' । ३०----खोल और पुराणग्रयो मे अतभुत किया गया ।--हि० सी० भू०, अतर्नयन करती नित्य शिव को मन ।--पार्वती ०, पृ० ६३ । | पृ० १३ ।। अतर्नाद--सा पुं० [सं० अन्तर्नाद ] अंतरात्मा की पुकार। हृदय की अतभू त’---वि० [सं० अन्तर्भूत | अंतर्गत। पाामिल ।' उ०—जिनके अाचाज । | अतभूत है मुद्रावध समस्त । -सुदर १०, भा० १, ५ ३२ ।