पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/८७

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२६ सिह ( शब्द०)',उतरिक्ष में अत सा पुं० [मैं। গবান अतरिक्षक्षित माडौं अतरिक्ष अर्थात् लोप हो गया। ( ग ) अविलाइनो इतने अतरीक--संज्ञा पुं० [सं० अन्तरिक्ष, प्रा० अतरिक्ष, अतरिक | कोण । अतरिक्ष ।-डि० ।। समय में अतरिक्ष था ।--अयोध्यासह ( शब्द० ) ! अतरोक्ष--सा पुं० [सं० अन्तरीक्ष] ने० 'ग्रतरित' [को। अतरिक्षक्षत---वि० [सं० अन्तरिक्षक्षित ] अन्तरिक्षवासी । अंतरिक्ष में अतरीछ--सञ्ज्ञा पुं० [सं० अन्तरीक्ष प्रकाश । गमन । उ०— | रहनेवाला [को०)। पारस, मनि नृप नखिया, करि कचन के ग्राम । अतरीछ उडिके अतरिक्षग-वि० [सं० अन्तरिक्षग 1 अतरिक्ष या प्रकाश में गमन गयौ, नरवहन के धाम --परमान १०, पृ० ३४ } | करनेवाला [को० ] ।। अंतरीप-सी पुं० [सं० अन्तरोप] १ ईन । टपू । २ पृथिवी वा अतरिक्षग’--सच्चा पुं० पक्षी । विहगे । खग [को०)। | वह नोकीला भाग जो समुद्र में दूर तक चला गया हो । राम । अतरिक्षचर’--वि० [सं० अन्तरिक्षचर] दे० अतरिक्षग' [को० ।। अतरीय --सा पुं० [सं० अन्तरीय] के मर में पहनने का वस्त्र । प्रधाअतरिक्षचर--सच्चा पु० पक्षी [को॰] । बस्त्र । घेती। अतरिक्षचारी-वि० [सं० अतरिक्षचारी] दे॰ 'अतरिक्षग' [को॰] । अतरीय--वि० भीतर का । अदर का • मोतरी। अंतरिक्षचारी--संज्ञा पुं० पक्षी [को०)। ।। या नीट अतरु अतरिक्षजल-सज्ञा पुं० [ पुं० अन्तरिक्ष जल] प्रोस । अवश्याय नी हार --सल्ला ऐ० दे० अतर' । उ०-~-एत अत ९ के डबर:-२७० अ रू० १ ० २४१ ।। [को॰] ।

  • अत्तरेक्य-सैः पुं० [सं० अन्तर् + ऐक्ष्य हादिक एकता। रिक अतरिक्षसत्-वि० [सं० अन्तरिक्षसत् ] अतरिक्ष या शून्य प्रकाश में ।

एकत्व । उ०——न्नोगतने की सुदढ नीव रख अतरै फ्यु पर । | गमन करनेवाला । अाकाशचारी । रजतशि०, पृ० ११३ । । अतरिक्षसत्'--संज्ञा पुं० १ अात्मा । २ पक्षी । , अतर--वि० [३० अन्तर भीतर । बीच में । अतरिक्षायतन--स्त्री० पुं० [सं० अन्र्तारक्षायतन] अतरिक्ष में निवास के विशेप-समस्न पदो में इस शब्द के अ., अतर, प्रत प्रार | करनेवाले देवता [को॰] । अतम रूप येयनियम हो जाते है । अतरिक्षायतन'–वि० श्रीकाशवासी । क्षतरिक्षवासी (को०) । । अतर्कथा--सक्षा ली० [सं० अन्तःकया प्रसंग द्वारी या संदर्भ में अंतरिख -सञ्ज्ञा पुं० [सं० अन्तरिक्ष, प्रा० अतरिक्ख] १ दे० 'अतः । सकेतित कथा । रिक्ष' । २ (ला०) झूला। उ०--रसदायिनी सुदरी रमत तर्कथा-सधा स्त्री० [सं० ग्रन्तर + कथा | गुप्त कया । भीतरी बात। सेज अतरिख भूमि सम |--बेलि०, ६० २६७ । । उ०-- साहित्यकार वा जीवन, अन् कंथा ग्रादि के प्रश्न कभी न अतरिच्छ- -संघ। पुं० [सं० अन्तरिक्ष , प्रा० अतरिक्ख] १ आकाश । पूछना चाहिए, नही तो रसधारा भंग हो जाती है ।--भा० उ०---जोजन बिस्तार सिला पवनसुत उपाटी । किंकर करि शिक्षा, पृ० १२६ ।। घान, लच्छ अतरिच्छ काटी --सूर०,६६८ । २ अधर । अतगंगा--सधा स्त्री० [सं० अन्तर्गङ्गा गुप्त गगा । छिपी हुई यो लुप्त ओठ । उ०—अतरिच्छ श्री वधू लेत हरि त्यही अाप अपनी गगा [को॰] । घाती --सी० लहरी, पृ० ५६ ।। विशेष-~-अतरिक्ष का पर्याय अधर = ठ है और अधर को अंतरिक्ष अतर्गड-- वि० [सं० अन्तर्ग) व्यर्थ । निष्प्रयोजन। वेकार। है, अत पर्यायसम्यि से अर्यपरिवर्तन हुअा।। निरर्थक । वृथा [को०]।। अतरित---[वि० अन्तरित] १ भीतर किया हुआ। भीतर रखा हुमा । अतर्गत’---वि० [सं० अन्तर्गत १- भीतर 'प्रया हुन्न । समाया हुआ भितराया हु • छिपाया हुआ । शामिल । अतर्भूत । मतग हीत । समिलित । उ--(क) “मार क्रि० प्र०—करना = भीतर करना । भीतर ले जाना। यह भी ध्यान हुआ कि ऐसे बड़े-बड़े वक्ष इन्हीं छोटे दीजो के छिपाना ।—होना = भीतर होना । प्रदर जाना। छिपना । अतर्गत हैं' ---भारतेंदु ०, भा० १, पृ० १२५ । (ख ) इस २, अतर्धान । गृप्त । गायव । तिरोहित । समये इतना भूभाग मलावार के अंतर्गत है'।--सरस्वती क्रि॰ प्र॰—करना । होना। (शब्द॰) । २ भीतरी । छिपा हुन्न । गुप्त। उ०--'यह फोडा ३ माच्छादित । ढका हुआ । कभी प्रत्यक्ष, कमी अतर्गत रहता है' --अमृतसागर (शब्द) क्रि० प्र०—करना ।-होना ।। ३ हृदय के भीतर का । अतःकरणस्थित । उ०—उनके अतगत ४, बीच में आया हुभा (०)। ५ अलग किया हुआ । पृथषकृत | भावो को कौन जान सकती हैं' (शब्द०)। (को०)। ६ तुच्छ समझा हुम्रा या तुच्छ समझा हा या तुन्छ अतगत-सा १० मन । जी । हृदय। चित्त । ---(क) एवम किया हुआ (को०) । ७ नष्ट किया है। रिसाइ पिता सो कह्यो । सुनि सानो भतर्गत दह्यो ।--सूर। अतरित–सच्चा पुं॰ १ प । डाकी । २ स्थापत्य कला का एक { शब्द०)। (ख) तुलसिदास उद्यपि निसि बासर छिन छिन पारिभाषिक शब्द [को०)। प्रभु मूरतिहि निहाति । मिटत न दूसई ताप तड तन की यह अतरिम-वि० [अ० इटेरिम] १. मध्यवर्ती । दो समय के बीच बिचारि अतर्गत हारति ।---तुलसी (शब्द०)। का । २ अम्यायो । अतर्गति-प्रज्ञा स्त्री० [सं० अन्तर्गति मन का भाव । चित्तवृत्ति । यौ---अत्तरिम सरकार = मध्यवर्ती वो अस्थायी सरकार [अ० भावना। चित्त की अभिलापा । हादिक इच्छा। मनकामना । इटेरिम गवनमेट । उ०—(क) रही अनि चहुँ विधि भगतने की जनु अनुराग भरी