पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/८६

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अतरिक्ष अतरहीन २५ | अतरहीन--वि० सं० [अन्तर+हीन ] जिसमें फासला न हो। व्यय सिद्धि के विघ्न जो नौ प्रकार के है, यथा--(क) व्याधि । (ख) । धान रहित । उ०--उस अतरहीन सामीप्य में किसी न्यूनती स्त्यान = संकोच ! (ग) सणय । (घ) प्रमाद । (च) अनस्य और अवसाद की अनुभूति के लिये स्यान नहीं रह गयी ।---वो (छ) अविरति = विषयों में प्रवृत्ति । (ज) भ्रातिदर्णत = उलटा दुनिया, पु० १३ ।। ज्ञान, जैसे जड़ में चेतन श्रीर चेतन में जड बुद्धि । (झ) अतरहेत(-वि० दे० 'अर्ताहत' । उ--तुम त एता सिरजा आपके अलव्ध भूमिकत्व = समाधि की अप्राप्ति। (ट) अनवस्थितत्व = अतरहेत जायसो ग्र०, पृ० ३५७ । समाधि होने पर भी चित्त का स्थिर न होना। ५ जैन दर्शन में अतरासे--सञ्ज्ञा पुं० [स० अन्तरास] स्कध और वक्षस्थल के बीच का दर्शनावरणीय नामक मूल कर्म के नौ भेदों में से एक, जिसका भाग [को०] ।। उदय होने पर दानादि करने में अंतरराय चा विध्न होते हैं। ये अतरा--क्रि० वि० [सं० अन्तरा] १. मध्य । वीच । २ इसी बीच अतरीय कर्म पाँच प्रकार के माने गए हैं---दानातराय, लाभात(को०) । ३ समीप । निकट । ४ अतिरिक्त । सिवा । ५ रॉय, भोगात राग, उपभोगातरराय और वीयतिथि ।। पृथक् । ६ विना। ७ मार्ग में (को०)। ८. लगभग । प्रायः ऋतरायाम--सच्चा पुं० [ सं० अन्तरयिाम ] एक रोग जिसमें वायुकोप से (को०) । ६ यदातदा । जव तव (को०)। १० कुछ काल के मनुप्य की अत्रे ठुड्ढी र पसलो स्तब्ध हो जाती है और मुंह लिये (को०)। से झाप ही आप कफ गिरता है तयः दृष्टिभ्रम से तरह तरह अतरा’----सभा पुं० १. विसी गीत में स्थायी या टेक के बाद का दूसरा के आकार दिखाई पड़ते हैं। चरण । २ किसी गीत में स्थायी या टेक के अतिरिक्त पातराराम | अतराराम--- वि० [ म० अतराराम ] हृदय में आनद का अनुभव करनेबाकी और पद या चरण 1 f३ प्रात काल र सध्या के बीच वाला (को॰) । का समय । दिन । अता --[सं० अन्तर] मध्यवर्ती । बीच का । उ॰—जव लगि न ऋतराल--सा पुं० [सं० अन्तराल] १ घिरा हुआ स्थान। आवृत निमेष अतरा युग समान पल जात ।--सूर० (राधा०), १३४७ । स्थान । घेरा । मल। उ०—तुम कनक किरण के अताल में ग्रता -संवा पुं॰ [ सै• अन्तर ] फर्क । मेद । अर व--सन्द लुक छिपकर चलते हो पा । --चूद्र०, पृ० ६३ । २ मध्य । बीच । उ०-वह देखो वन के अंतर से निकले, मानो दो । सब्द बहु अतरा सार सब्द मन लीजै |--कवीर वी०, पृ० ६२ । तारै क्षितिज पटी से निकले ---साकेत, पृ० २२१ । ३ । अतराइ( सच्चा पुं० [सं० अन्तराय, प्रा० अतराइ] विघ्न । अतराय । भीतर 1 अोट । ३०--‘कुल पुत्रों को चुप देखकर किसी ने सलि वाघो । उ:--'तब श्री चे द्रादलं जी कह्यो, जो तेने श्री ठ कुर जी के मिलन में अतराई वि य ।--दो सौ वाचन०, भा० १, के अंतराल से सुकोमल कठ से कहा' ।--इद्र, पृ० १३२ । पु० १०६ । अतरालक--संज्ञा पुं॰ [सं० अन्तरालक ] दे० 'अतराल' [को०] । । अतराकाश-सच्चा पुं० [सं० अन्तराफाश | १ मध्य भाग या स्थान । अतरालदिक्---सल्ला [ स० अन्तरालदि ] दो दिशाम्रो के बीच की २ हृदय में स्यित ग्रह्म (को॰) । दिशा । विदिशा ! कोण । कोनी ।। अतराकूत--सझा पुं० [सं० अन्तराकूत] गुप्त उद्देश्य। गुप्त भाशय अत ऋतरालदिशा--संज्ञा स्त्री॰ [ मं० अन्तरालदिशा ] दे० 'अतरालदिव' । । अभिप्राय [को०] । अतरावेदी--सच्चा स्त्री॰ [ स० अन्तरावेदी ] खभो पर बनी हुई सारी अतरागार-मन्ना पुं० [सं० अन्तरागार] भीतरी गृह ) घर का भीतरी | या मदिर [को०]।। हिस्ता [को०] । अतरिद्रिय--सज्ञा स्त्री० [सं० अन्तरिन्द्रिय ] अतरिक इद्रि०f, मन अतरात्मा--सच्चा स्त्री० [सं० अन्तरात्मा] १ जीवात्मा। जीव । | बुद्धि दि [को०]। २ अात्मा । प्राण । उ०—'वह मेरी स्त्री जिसके अभावो का । | अतरिका–संह सी० [सं० अन्तरिका ] दो घरों के मध्य को गली । कोप कभी खाली नहीं, उससे मेरी अतरात्मा काँप उठती | अतरिक्ख'-- संज्ञा पुं० [सं० अन्तरिक्ष, प्रा० अतरिक्ख] दे॰ 'अत रिक्ष' । ज मुई उहि अतरिख मृतमहा। खड खड धरती है’ --कद०, पृ० ३२ । ३ प्रत.करण । मन ।। वरम्हडा । ---जायसी ग्र०, पृ० २।। अतरादिक्-सद्या स्त्री० [सं॰ अन्तरादिङ् ] दो दिशात्री के बीच की अतरिक्ष'--मह्या पुं० [ सै० अन्तरिक्ष 1 १ पृथिवी और सूयदि लौको दिशा । विदिशा [को॰] । के बीच का स्यान । कोई दो ग्रहो वा तारों के बीच का अन्य अंतरापण-संज्ञा पुं० [सं० अन्तरापण ] नगर के मध्य भाग में स्थित बाजीर । उ०—'श्रेणियो का माल अतरपण में विकता स्थान । प्रकाश । अधर । रोदसी। शून्य । उ०—-सौरभ से था' ५–वै० न०, पृ० २।। दिगत पूरित था अतरिय लोक अधीर । ---कामायनी, पृ० ११ । २ स्वर्ग लोक । ३ मार्च में सिद्धात के अन्अतरांपत्या-ज्ञा स्त्री० [सं० अन्तरापत्या} गर्भिणी । गर्भवती । हामिला ।। सार तीन प्रकार के केतु में से एक जिसके घोडे, हाथी, ध्वज, वृक्ष प्रादि के समान रूप हो। ४ एक ऋपि का नाम । अतराभवदेश--सहा पुं० [सं० अन्तराभवदेश] दे॰ 'अतरामवदेह' को०] । ५ पृथिवो की झार्षण शक्ति की परिधि से बाहर का प्रकाश अतराभवदेहू-सक्षा पुं० [सं० अन्तरामवदेह ] मृत्यु और पुनर्जन्म के | मध्य स्थित अात्मा [को०) । में स्थान।। अतराय-सझा पुं० [सं० अन्तराय ] १ विघ्न । वाघा। अड वन। २ यो०---अतरिक्षयान = हवाई जहाज । वायुयान । एयर प्लेन (अ०) अट । भाइ (को॰] । ३, ज्ञान का वाधक। ४ योग की अतरिक्ष’---वि० अराधन । गुप्त । अत्रकट । उ०---(क) म ते अतरिक्ष रिक्ष लक्ष लक्ष जात हीं । --केशव (शब्द॰) । (ख) फ्लोडो • - - - - - - -