पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/८४

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अंतरपाट अतरगति १३३ अतरगति -- संई ी (सेर हत] रित्तरि । भ न । उ--- मतदा-• संग पैर [म में वह 1 * तरं ६ FF ८ टुड। मानगिः | मदरगति ६ न्र्हः ८६२ यर । है भर उमपुर हिंगे हाप । १००-द६ जु ३ घः ‘यर म द रितु हैं - सत भ, रैदास --त २०, पृ० ६५ ।। यत नि ? ---र०, १८६ । 1 . 14 --,

  • अतर दिशा -स नीर | स प तर 1 दा दिमाग में में से दो।

दिशा । कौग। विदिमा । | जिससे खाई हुई वस्तु पचती है । इठराई न । | अतरदोटि- सह सी० {से हट टि, प्रा० भ्रतः दिद्वि ] प्रदर्टि। अतरचक्र - सः पुं० [सं० अरब ] १ दिशा र विदिशाप्रो ।। विवेक । वीच घे असर को चार चार भागों में बाँटने में बने हुए ३२ अतरद्वार-- सर पुं० [स. घर] छिपा हुआ या भीतरी दरवाजा। भाग। २. दिशा के ऊपर रहे हैंए भिन्न भिन्न विभागों में अत पुर का दरवाजा । ६०-अक्षर द्वार १६ भए यो सुनत चिडिपो की बोली सुनवार प्रभाशुभ फल बताने पर विच।। तिया की बातें -- सुरे०, १०।२६६.६ } जिस दिशा में पक्षी वैठघर वल उसका विचार करकै पाकुन अतरदृष्टि-- साध लीः [ सं घ टि ] ज्ञान । हिरा पी अखि । वहने की विद्या । ३ तत्र के अनुसार शरीर के भीतर माने । ३०--यह अतरदृष्टि से भली भाँति निगरि र नेता है कि मैं हुए मूलाधार मादि व मल के आकार के छह चक्र | पट्चक्र । अपने में म । प त नहीं !-- दीरमा ०,१० ६६७ ।। ४ मारमीय वर्ग 1 रवजन वगै । भाई ब६अ की मटली । । अतरदेशीय-- वि’ [ से अन्तर + देशीय ] १ दो या अधिक देशों से अंतरछाल--सज्ञा पुं० [सं० अन्तर+हि० छाल ] छाल के नीचे की सद्धि। २ ट्र ८ देगा ये भी ज्या या प्रश। गै सर्वाधिन, कोमल छाल या झिल्ली । वो ले के भीतर का कोमरा भाग। जैसे-.-'अतरदेशीय पन्न' । अतरजातीय--वि० दे० 'अतर्जातीय' ।' अतरधन-- संप पु० [ सु० अन्तर्धन ] छिपन - चचय हुआ धन । अतरजानी--वि० [ स० अन्तर् + ज्ञानी, प्रा० प्रतर+जाणि ] भीतर उ०--- वि छु अघन हृत जु साथ । रा दीना माना के हाय । की बात जाननेवाला । अ- यम । उ०- -नैन वने मुख । प्रधं०, पृ० ७ ।। नासिक। तुम अतरजानी हो -- के एव० समी०, पृ० ७ । अतरधान--वि' दे० अतद्धन' ९०--पनि पृनि श्रम प हि पृपाअतरजामी'-- वि० [ स० अतर्यामी ] १ भीतर ६ बीत जानने निघाना। प्रतध न भरा गया ।-- मानग, १५१५२। अंतरध्यान ७---वि० [सं० सन्तध्यान ] "तरि मन हा चितन । वाला । उ०--तुम उदार र अरज मी । --मानस ७१८४॥ उ० -अतर ध्यान नाम निज वे Gि न भ या तिन पःt :--- २ अत परण थित प्रेरक । उ०--अनजामि ते धड व हर घ वीर श०, भा० १, पृ० १७८ ।। जामी है राम जो नाम लिए तें !--[लसी ग्र०, २० २ । अतरध्यान G-- वि’ | सं० ‘शन्सन' फा बिपृत रूप ] अ- हित । मतरजमी --' पुं० दे० 'अत्यमा' । उ०---द न रा गुरु पूरन | लत । उ:--(क) पटमम निमानिसि नृत्य यि प । त्ध गोविंद स्वामी । मैं नहिं जाना अजामी --व वीर सा० ए० १०५४।। अतर ध्यान दृय |---पृ० रा०, २।३४५ । (४) शा न अतरजाल--सन्न पु० [हिं०] वे सरत व रने की t के लव डी । बीते पाटिल। निमि जाम । --रा० ल०, पृ० ११४। अंतरज्ञ- विः [ स० अन्तरन] १ ५ तर के बारे जान्दाला । अत - अतरपट-- सद्य पुं० [मै० अन्त पट] १ प्रदा। शट । अट ४०-~ करण को प्राशय जानने वाला | हृदय के वात जानने वाला। उपहें प्रत पटे रस्तुर ग्रेगने गुनः ह |-- घनान, १० अतर्यामी । २. भेद या फर्क जानने वाला। ५४७ । २ विवाहमटप में यम की प्रकृति में ममय अग्नि मौर अतरण-- सच्चा धुं० [सं० अन्तरग] व्यवहान डालना । अतरित वर मन्या में बीच में एक पन्दा दाल देते हैं जिसमें वे दोनो करना । निगूहन [को० ]। उस साहुति को न देखें । इस परदे का प्रतरपट पहुवे है । रि० प्र०-फरना 1--ठाना ।---देना । अंतरत --क्रि० वि० [ स० अन्तरत ] बीच में । मध्य में। बीचो बीच ।। महा०- --संसपट साना = fer६ - ६टना । म न हो नी । अतरत--वि० [सं० अन्तरस 1 दिन में अनद से नहुनेवाला । नाश अ ट में रहना । में अनद माननेवाला को०) । ३ पटा । छिपाये । दुग्ध । ३ | ४ घन्तु या मध का अतरतम--सम्रा पुं० [सं० घन्तरतम] सवसे भीतर के भाग या फंपने में पहले उफी लुगदी थे। मपट पर गीली मिट्टी में च हिस्सा । अतस्तल। उ०--छिपी रहेगी प्रतरतम में सव में तू ६ साथ कपडा लपेटने की क्रिया । परमिट । १२ । निगढ़ धन सी ।--कामायनी, पृ० ६।। फरोट ।। अंतरतर--वि० [सं० अन्तरतर] अति सर्मपि । प्रत्यत घनिष्ट (०) । त्रि० प्र०-फना --होना । अतरतर--सी पुं० १ अरुन्तल । उ०—-अपनी लय भलम ५. गेली मिटटी मा मैच देयः पेट पा । माभा से मम प्रतरतर भर दो ---अपले १२ ईश्वर (फो०) । अतरपतित शाय-- सं १० { ८० प्रन्पतित अयि ] मौदा पटाने में । १० १६ ।। दस्तूरी । दला। अतरदंद -सी पुं० [ १० अन्तर्द्वन्] १* प्रतईद । उ----अदद अतरपाट-“सार पुं० [ ५० तर4. पट] परः । में है। छ । | चंद मन मञ्जिय -पृ. रा०, ६७३१८ । -~-प्न असे : , ४ । 'द; ६ पट अतरद---वि० [सं० अन्तरद ] हुदय की कद पहुंचानेवाः। [फा०]। दिमाग .--६ वी १६, पृ० १३२। 1८।।