पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/८१

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अंत स्वंद अंतक्रिया अत स्वेद-शा पुं० [सं० अन्त स्वेद ! वह जी जिसके भीतर स्वेद मुहा०—-प्रत पाना = भेद पाना। पता पाना । अत लेना= भेद लेना । मन का भाव जनना। मन छुन11 उ०--है द्विज या भदजल हौ । मदस्रावी हाथी । में ही धर्म लेन आयो तद अता ।--विश्र भ० (शब्द॰) । अत'-सज्ञा पुं० [सं० अन्त ] [वि० प्रतिम, अत्य] १ वह स्थान जह से पिसी वस्तु का अंत हो । समाप्ति। श्राखीर। अवसान । अत "-- सझा पुं० [सं० अन्त्र, प्र ० अत अति, अंतही। उ:-- (क) जिमि जिमि अत लत लष दल तिन गनि तिम तिम !--१००, इति । उ०-वन कर अत कतहुँ नहिं पावहिं ।--तुलसी ६१२२७३ । (ख) भ र शोन घा| पर पेट ते अत ।--सुजान ( पाब्द० ) । २ वह समय जहाँ से किसी वस्तु की समाप्ति हो । द०)। उ०- दिन के प्रत फिरी दोउ अन' ।—तुलसी (शब्द०)। अत(६.-क्रि० वि० [सं. अन्यन्न, प्रा० अण्णते, अन्नत, हिं० अनत-अत ] विशेप--इस भाव्द में 'मैं' और 'को' विभक्ति लगने से अाखिर और जगह । २ ठी। दूसरी जगह । श्रर वही। दूर । कार', 'निदान' अर्थ होता है । अलग । जुदा । उ०-{क) फुज कुज में क्रीड। वरि करि गपिन क्रि० प्र०--करना ।—होना । को सुख देहीं । गोप सखन सँग खेलते डोलौं व्रज तजि अत न ३ प भाग । अतिम भाग । पिछला प्रश। उ०-२जनी सु | जैही--सूर (शब्द०) । (ख) एक ठाँव यहि थिर न रहाही । अंत महुरत्त बेभ' ।--पृ० ०, ६६।१६६२ । रस लै खेलि अत कहूँ जाह। --जायसी (शब्०) । (ग) मुहा०—-अत बनना= प्रतिम भाग का अच्छा होना। अत बिगड़ना। धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय । जियत =अतिम् वा पिछले भाग का बुरा होना] कज तजि अत बसि व हा भोर का भाय 1--हीम (शब्द०)। ४ पार । छोर । सीमा । हैद । अवधि । पराकाष्ठा। उ०-- अतक--सद्ध पुं० [सं० अन्तक ] १ मृत्यु जो प्राणियों के जीवन 'अस वेराउ सघन बन, बरनि न पायें अत' ।—जायसी (शब्द॰) । का अत करती है मौत । २ यमराज । काल । उ०- गिरा क्रि० प्र०- वरना= द वरना। उ०—तुमने तो हँसी का अत कर २हित वृक ग्रसिन अजा ल अतक प्रानि गह्यौ ।--सूर, दिया (शब्द०)।-पाना ।--होना। १॥२०१३ सन्निपात ज्वर का एक भेद जिसमें रोगो को खाँसी, ५ अतवाल । मरण । मृत्य । उ०---(क) 'जन्य से शत प्रथि दम। मौर हिचकी हे ती है और वह किसी वस्तु को नही पहराज नृप। घिन्नो गति द्रुग्गा सु जप्प' 1--पृ० ग०, ६७ । चानता। उ०-~-याकुल सखा गोप भए व्याकुल । अतक देसा ४५७ । (ख) 'अत राम कहि अवत नाही' ।—तुलसी (शब्द०)। भयो भय अाफुल' ---सूर ०, १०:३११५।४ ईपवर जो प्रलय में ६ नाश । विनाश । उ०--‘व है पदम)कर त्रिकूट ही की ढाहि सबका सहार करता है। ५ शिव । परमेश्वर ६ सीमा । डारी डारत करेई अातुधानन को अत हौं ।-पद्माकर (शब्द॰) । हद्द (को०) । वि० प्र०——करना ।--होनी। अतक--वि० अत करनेवाला । नामा ३रनेवाला । ७ परिणाम । फल । नतीजा। उ०—(क) अंत भले का भला। अतकर-वि० [सं० अन्तकर ] अत या नाश करनेवाला । सहार --चहावत (शब्द॰) । (ख) 'बुरे घाम का श्रत वर | करने वाला। होता है' (शब्द०)। ८ प्रलय (डि०) ६ सामीप्य । निकटता। अतकरण--वि० [ से अन्तकरण ] दे॰ 'अतर' (को॰] । ( को० ) १० प्रतिवेश । पडोस ( को० )। ११ निबटारा। अतकर्ता--वि० [सं० अन्तकर्ता ] दे॰ 'अतकर' । निवटाव (को० ) । १२ किसी समस्या का समाधान या अतकर्म--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्तकम् ] मरण । मृत्यु । (को०)। निर्णय (को०)। १३ निश्चय (को०)। १४ समास का अतिम अतकारी-वि० [सं० अन्तकारिन् ] सी० [अन्तकारिणी ] अत या शब्द (को०) । १५ शब्द का अतिम अक्षर (को०)। १६ | नाश करनेवाला। विनाश वरनेवाला । सहार करनेवाला । मार प्रकृति । अवस्था (को०) । १७ स्वभाव (को०)। १८ पूर्ण . हलनेवाला । उ०--भवत भय हेरन असुरऽतकारी । --सूर०, योग या राशि (को०)। १९. वह सख्या जिसे लिखने में १२ अक । १०१४१६४। । लिखने पडें । एक खग्ध यो सौ अरव की सस्या |-- भ० प्रा० अतकाल--सच्चा पुं० [सं० अन्तकाल ] १ अतिम समय। मरने की लि०, पृ० १२ । ३० भीतरी भ ग (को०)।। समय । अाखिरी वक्त । ३० -घर घर मतर देत फिरत है अत-- वि०१ समीप । निकट । २ बाहर। दूर। ३ अतिम (को०)। महिमा के अभिमना । गुरू सहित सीप सभ बूडे अतकाल पछि४ मुदर । प्यारा (को०)। ५ सबसे छोटा (को०)। ६ निम्न । । होना ।---कबीर बी०, पृ० ३०] ध्रप्ट (को०)। अतकृत--संधी पुं० [सं० अन्तकृत] यमराज । धर्मराज । कालं । उ०-- प्रत –क्रि० वि० अत में। आखिरकार । निदान । उ०---(क) उघरे भूमिज दु ख सजात रोषातकृत (रोष + अतकृत) यातनी ज अत ने होहि निवाहू ।--तुलसी (शब्द॰) । (ख) कोटि जतन कृत यातुधानी ।—तुलसी (शब्द० )। काऊ व १ न प्रतिहिं वीच । नल बल जल ऊँचौ च अतकृत-वि० अत या विनाश करने वाला । अत कर । । अत नीच फी नीच !-विहारी (शब्द०)। अतक्क--सच्ची पुं० [सं० अन्तक, प्रा० अपिफ ] यमराज । काल । शत) --सपा पुं० [सं० अन्तस् ] १. अत करण । हृदय । जी । मन । ३०--प्रथिराज सव्व देष्य सु अव । अतर्कक रूप सब गुन जे में तुम अपने अत की बात कहो', 'मैं तुम्हे अत से चाहता सहाव ।--पृ० रो०, ६७५४६० । । । हैं। (शब्द०)। २. भेद । रहस्य । छिपा हुम्रा भाव । मन की अतक्रिया--संझा स्त्री० [ ० अन्तक्रिया 1 अत्येष्टि कर्म । क्रिया कर्म । बात । उ०—'काहू को न देती इन बातन को अत ले इकत । मरने के पीछे मृतक की आत्मा की भलाई या सद्गति के लिये , फत मानि के अनत सुत्र ठानती' ।—भिखारी० अ०, भ० १, किए जानेवाले दाह और पिंडदान आदि कर्म । हिंदुओं के पोडश १० १५६ ! सस्कारों में अतिम ।