पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७७

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अंजुली अडक जाना। 3-- अजुलि जरि रात इति। कहने लगे विप्रनि मुहा०-. अटी करना--किमी का माल उड़ा लेना। धोखा देवर मी बात |--नद० ग्र०, पृ० ३०१ ।। कोई वस्तु ले लेना। अटी चढाना = अपने मतलब पर लाना । अजूली--सृद्धा स्त्री० दे० अंजली' । उ०---अजुली जल घटत जैसे तैसे वश में करना । अपने दाँव पर लाना । अटी पर चढाना = अपने | है। तन यह नयी ।—सूर०, १०1३८६५ ।। दीव में लाना । अटी मारना = (१) जुवा खेलते समय कोही महा०--अजुली फरना = प्राचमन करना । उ०--हरि चरन अव को उगनियों के बीच में छिपा लेता (२) अखि बचाकर धीरे | ग्रेजुली सीन |--पृ० रा०, १४३ ६ ।। से दूसरे की वन्तु वि सका लेना। धोखा देकर कोई चीज उडा अजू--सहा पुं० [ १० अश्रु ] अमू । उ०---मम दर एक अखि ने अजू लेना । (३) तराजू की डांडी को इस ढंग से पकडना कि | मे ---दक्खिनी०, पृ० १६६ । तौल मे चीज कम चढे । कम तौलना। डाँड मारना। अटी अझा--म : [ मं० अनध्याय प्रा० अणज्झा, अणज्मा ] नागा । रखना = छिपा रखना। देवा रखना । प्रगट न हे ने देना। तातील । छुट्टी । काम न करने का दिन । उ०—(क) मत को ३ एक दूसरे पर चढ़ी हुई एक ही हाथ की दो उंगलियां । मभूमि भनेनावन सो सि सखी दासिन को दूसि रही र झुकि | तर्जनी के ऊपर मध्यमा को चढ़ाकर बनाई हुई मुद्र।। ईडयो । झझी सी । सोदे, सुख मोर्च, सुक सारिका लचावै चोचे न डडोइया । रुचिर बानि मानि रहै अझ सी ।--देव (शब्द॰) । (ब) विशेष---इसका चलन को में है। जब कोई लडका किसी प्रझा मी दिन की भई सझा सी सकल दिसि गगन गिन रही अपवित्र वस्तु वा अत्यज से छू जाता है तब उसके साथ गन्द छदाय है ।—भूपण ( शब्द० )। ( ग ) काम में चार के अौर लडके उगली पर उली चढ़ा लेते हैं जिसमें यदि दिन का अझा हो गया ( शब्द ०) ।। वह उन्हें छ ले तो छूत न लगे और वहते है कि दा वाले की अझ-सज्ञा पुं० दे० 'अजू' ।—दक्खिनी॰, पृ० ७९ ।। मटी काला वाला छू ले' ।। अटम-वि० ० 'ट्ट सट्ट। क्रि० प्र०—-चढाना |--वधिना । लगाना ।। अटा--सच्चा पुं० [सं० अण्ड, प्रा० अड्अ ] १ वडी गोली । ४ लच्छा । अट्टी। सूत वा ने शाम की लच्छी । विशेप---इसका प्रयोग अफ म र भग के सवध में अधिक होता क्रि० प्र०—करना = टेरना । लयिना। लपेटना। लच्छ वाँधन्। हैं। जैसे इफम को अटो चढ़ा रिया, अव बया है ? | ५ अटेरन । वह लव डे की रतु जिसपर सूत लपेटते हैं। २ सूत वा रे म को लच्छ । ३ बर्ड कीड । ४ एक खेल ६ विरं घ । विगाडे । डाई। रित । ७ ब न मे पहनने जिसे रेज लोग हाथीदाँत की गोलियों से मेज पर खेला करते हैं। विलियर्ड । की छ टी ३ ली जिसे घबी, के छी, वैद्दार श्रादि नीचे यी--अटागडगड गटाघर । अटाचित । अटाबघू। जाति के मर्द पनते हैं। मुरकी । छ ट ६ली । ६ जैव । खलीता (को०)। अटागुडगड--वि० [हिं० अटा + गुडगुड ] नशे में चूर। मज्ञाशून्य ।। बेहोश । बेसुध । अचेत । मटावाज--वि० [हिं० अटी +फॉ० वाज] घुर्त । चालक (को०)। क्रि० प्र०--होना। अठ-सच्चा स्त्री० [सं० अप्ठ = गमन] गति । चलि । उ०—-घवें अठ अटाघर-~-सद्या पुं० [हिं० अटा + घर ] वह कमरा जिसमें गोली का भारी ---पृ० ०, ३१॥ ११२।। 3 जी, इन ली ने 9 , अठी - सक्ष, स्त्री० [सं० प्रथि, प्र ० टि. अठ ] १ चीयाँ । गुर ली। अटाचित--क्रि० वि० [हिं० अटा+चित ] पीठ के बल। सीधा ।। | वीज। २ गाँठ। गिरह । ३ नवढा के निव लते हुए स्तन । अँठली । ४ गिलट । कड़ापन। | पीट जमीन पर किए हुए । पट र आधा का उलटा । अठुल--संइ स्त्री० [हिं० अठी ] खुर। सुम । ६० -३ अठ्ठल दन क्रि० प्र०--नरना। परना---होना। मुहा०—-प्रदाचित होना = (१) स्तभित होना । अवाक् होना । | पग वीर वरत्त हलाइस |--पृ० रा०, ६१३१४५ । (२) पीठ के इन गिर पड़ना, जैसे, इस खबर को सुनते ही वह अड-- सब पुं० [सं० अण्ड] १ अडा। उ०-- अल्लपाछ का अई अटाचित हो गया ( शब्द०)। ( ३ ) बेकाम होना) वरवाद ज्यो उलट चले अस्मान --रत्न०, १० ६१ । ३ 'कोश' । होना। किमी काम का न रह जाना, जैसे, व्यापार में उसे फोता । २ व्रह्मा । लोकपिड़े। ल' कमल । विश्व । ०" ऐसा घ ट्रा अाया कि वह अरचित हो गया (शब्द०)। ४ नशे जिअन मन फल दसरथ पावा। अह अनेक अमल जस में बेसुध होना। वेन्नवर होना । अचेत होना । चूर होना । छाव |--म नस, २।१५६ । ४ वीर्य । शक्र । ५ करने वा ३०--यह भग जीते हो अटोचित हो गया ( शब्द० )। नाफा । मृगनाभि । नाफा ! ६ गच्च आवरण । दे० कोश' । अटाधार---मज्ञा पुं० १० वटाघार' ३०--‘फैशन ने तो विल और टोटल ७. के मदव । उ०-- ति प्रच, यह भड़' महाभट ज हि सब के इतने गले में रे कि अदाधार कर दिया और सिर्फ रिण में जग जानत । सो महीन दीन है बपुरो कोपि धनुष शर तान्त |--सूर( शब्द०)। ६ मकानो को छ जन के ऊपर के भी जूव हो काया!--भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० ४७६ । गोल वलण जो भा में रि ये इनाए जाते हैं । इe---(क) अटाबघ----मक्षा पुं० [सं० प्रण्ट + इन्क 1 जुए में फेंक वा कडी अड टूक जाके भस्मति सी ऐसा राजा त्रिभुवनपति |-- जिसे जार। नच कुछ हारने पर दव पर रख देता है। - दविनी, पृ० ३० । (ख) व टे व पग व मद्ध निसार । तुटे अटी---मा पै० [ 4 अण्ड ] [ झि अँटियना] १ उगलियो के वर देवल अइ धार |--१० रा ०, २४२३९ । १० शिव का चीन र म्यान । अतए । घाई । २ धोती की वह लपेट जो एक नाम (ो०) । मर पर होते हैं और जिसमे पैसा भी रखते हैं । गठ। मु । अडक-संवा पुं० [सं० अप्द्धक 1१. अडकोश । २. छोट। मड़। (को०] " " !