पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७६

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अंजलिकारिका १५ अंजुलि || मजलिकारिका-~-सझा स्त्री० [ मं० अञ्जलिकारिका] १ नमस्कार अजित--वि० [सं० अञ्जित ] १ अजन लगाए हुए । अजममार। करने की मुद्रावाली मिट्टी की छाटी मूति (को०)। २ सजे हुए । ३०--२ज रजित अजित नयन घूटन डालत ममि । नजाधुर लता । | --१० ०, ११७१८। | अजलिगत--वि० [सं० अञ्जलि + गत १ अजले में अग्रिी हुमा। अजित--वि० [सं० अञ्चित ] पूजित । प्राधित (डि०) । हाथ में पडा हुअा। दोनों हथेलियो पर रखा हुआ ! उ०-- अजिवार--संज्ञा पुं० दे० 'अजदार' अजलिगत मुभ सुमन जिमि सम सुगध- फर दोउ । अजिव--वि० [४० प्रञ्जिव] पिच्छिल । चिकना । फिसलाहट [को॰] । --मानम, १।३। । अजिष्ठ--मज्ञा पुं॰ [सं० अञ्जिष्ठ] सूर्य [को०)। | अज़लिपुट-सझा पुं० [सं० अञ्जलिपुट] दोनों हथेलियों को मिलाने अजिष्ण-संझा पुं० दे० अजिप्ट' ।। से बना हृा खाली स्थान जिसमें पानी का कोई मौर वस्तु और अजिसना-त्रि० प्र० [ सं० अञ्जसा ] मी व्रता करना। ३०-~सकते हैं। अँजली । अजिसिये हँसिय अतर गसिय मासिय सद्ध उद्धर धेमिय }--- | अजलिवधन--सज्ञा पुं० [ मुं० अञ्जलिवन्धन 1 माथे तक उठाई हुई । | पृ० रा०, ६७३५७ । अजलि से प्रणमन (को०] । अजिहिपा--संज्ञा स्त्री॰ [सं० अञ्जिस्पिा ] जाने की इच्छा [को०] । अजी--सामा सी० [ से० श्री ] १ पीसने का एक यत्र । ३ श्रानिप | अजलिवद्ध---वि० [सं० अञ्जलिबद्ध ] हाथ जोड़े हुए। प्राशीवदि [को॰] । | अजला--सई) ° 1 सै० अब्जला ! १ दोनों हथालया का मिलाकर अंजीर--सया पुं० [सं० अजीर, फा० अजीर ] एक प्रकार का पेड़ बनाया हुआ सपुट । दोनों हथेलियों का मिलाने से बना हुआ खाली स्थान वा गड्ढा जिसमें पानी वा श्रीर कोई वस्तु भर तया उसका फल ।। विशेप-यह गूलर के समान होना है अंदर खाने मे मीठा होता सकते हैं । उ०--निज विस्तार समेटि अजली अनि समानी । है। यह भ रतवर्ष मे बहुत जगह होता है । पर अफगा--रत्नाकर, भा० १, पृ० २१७ । २ उतने वस्तु जितनी एक निरतान, बिलूचिस्तान और यामीर इसके मुत्य रथान है। अजलि में अाए । प्रस्य । कुडके । दो प्रमृति। एक नाप जो वीस मागधी तौले या सोलह व्यावहारिक तोले अथवा एक पाव इसके लगाने के लिये कुछ चूना लगी हुई मिट्टी चाहिए। लष हो के बराबर होती है। दो पमर! ३ अन्न की राशि में से इसकी पीली हे ती है। इसके इलम फगुन में काटकर तते समय दोनों हथेलियो से दान के लिये निवाला हुअा श्रन्न ।। दूर दूर घयारियों में लग जाते हैं । क्यारियाँ पानी से खूब तर हनी चाहिए। लग ३ ३ दे ही तीन वर्ष में इसका पैड | अजस्--संझा पुं० [सं० अञ्जस्] मलहम [को०] ।। फलने लगता है अर १४ या १५ वर्ष दरावर फल देता रहता अजस-- वि० | सं० प्रज्स ] १. सीधा । सरल । २ निश्छल । ईमान है। यह वर्ष मे दो ६ र फलता है। एक बार जेट-प्रमाढ़ में दार [को॰] । मौर फिर फाल्गुन में । माला में गुथे हुए इसके सुखोए हुए फल अज सा--त्रि० वि० [सं० अञ्जस] १ श घ्रता से । तुरत । २ ठीक अफग निस्तान अादि से हिंदुग्तान में बहुत आते हैं। सुख ते ठीक । यथावत् । ३ सीघे में । सात् को०]।। समय रग चढाने और छिलके को नरम करने के लिये या तो अजसायन--वि० [सं० अञ्जसायन 1 सीर्घ गतिवाला । ऋजु गधव की धनी देते हैं अथवा नमक और गोरा मिले हुए गरम |गामी [को॰] । पानी में फलो को वाते हैं। भारतवर्ष में पूना के पास खेडअजहा+-- वि० [हिं० अनाज + हा ( प्रत्य० )] (जी० अजही) अनाज शिवापुर नामक गांव के अजीर सबसे अच्छे होते हैं । पर | को। अन्न के मेल में बना हुँ । अफगानिस्तान और फारस के अजीर हिंदुस्तानी अजीरो से अजही--सच्चा झी० [ देश० ] वह बाजार जहाँ अन्न बिकता है । क्षम होते हैं। सुखाया हुआ अजीर को फल स्निग्घ, पुटकर अनाज की मड़ी। और रेचक हैं'नी है। यह दो तरह का होता है, एक जो पकाने अजही----वि० अनाज की। अनाज से बनी हुई। पर लाल होता है और दूसरा कोला । अजाम-• सझा पुं० [फा०] १ समाप्ति । पूति । अन । अस्वीर । अजीर(५ ---संवा मुं० [सं० प्रजिर प्रगिन । उ०•--ऐन अजीर एक ३०--अजाम की मजिल है ६ ही देखिए क्या है। 4- -१ विता करु मेला ---सत ६रिया प० ३ । कौ०, भा ४, १० ५५५ । २ परिण म । फल । नतीजा ! अजू -वि० [सं० प्रज, प्र, ० अज] म ल । *पष्ट । उ०----पजलि क्रि० प्र०-- करना |--देना ।-• पर पहुँचना या पहुंचाना = पूरा भजु सुरग बन |--पृ० रा ०, २।३४४ । करना। समाप्त करना निपटाना । प्रचE करना । उ०--कमि अजुवार--सझा पुं० दे० 'अजवार' को०] } क्या प्रजाम देगा दुसरा । जव नहीं सकते हमी अजाम दे ।-- अजुमन--सहा पुं० [फा०] सभा । नमाज । मजलिस } मदली । चोखे०, पृ० ६६ ।। अजुल--सा पुं० दे० 'अजली'। इ०---मयि मध्य में करने अजारना७-क्रि० स० [ ६० प्रर्जन ] कमाना। सचित करना। त्रिभुवन तन अज़ल ।—पृ० रा ०, २।९२ अजि'.- सी q० [ मं० प्रञ्जि ] १ प्रेरक । भेजनेवाल।। २ प्रदेश* अजुलि--सपा नौ दे० 'मजनि' । उ०—म हुन अजुलि भरि भरि | दति। ३ त्रिपुड [को॰] । | पिय फf य जल मैलन ।--नई० प्र०, पृ० २४ } अजि-- सम औ० १ अगराग । ३ रग । ३ जननेंद्रिय [को॰] । महा--अजुलि परना = प्रणाम तरना। इ-ग्रत अलि करिय ऋजिक-- सइ पुं० [सं० प्रञ्जिक] सूर्य । रवि [को॰] । मन मानद सधीर 1--० २०, ६१३८ । अंजुलि जोरना= हाय