पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७४

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अंजन अंचल | १३ में हैं खोज रहा अपना विकासे ।----कामायनी पृ० १५८ ।,४ अछ---सच्चा स्त्री० [ मं० अक्ष ] अखि ।--उ० इछिनि अछ वखानि किनारी । तट । ५ छोर। किनारा । ६ कोर, जसे ‘नयना- कै मोहि सुनावह ए है । -- पृ० रा ०, १४१३७ ।। पाल' में प्रचल। ७ तलहटी। घाटी। उ०----उसकी बह जलन अछर--सूझा मुं० [सं० अक्षर 1 १ मुंह के भीतर का एक रोग जिसमें भयानक फैला गिरि अचल में फिर |--कामायनी, पृ० २८१ । कांटे से उमर आते हैं। २ अक्षर । ३. मन्ने । टोना । जादू । मुहा०—अचल जोरना = दीनता व्यक्त १ रना उ०-अचल जारे मुहा०—अछर मारना = जादू वरना । टोना करना। मनप्रयोग करत बीनता मिलिबे को सब दासी ।—सूर (शब्द०)। अचल करना । उ०--मेरे अछर मारि परान लिए, सुध लाग रही देना = अचल की अट करना। लज्जा व्यक्त करना। परदा भइ वावरिया। --गीत { शब्द०)। करना । उ०--पीतावर वह सिर से अोढत अचल दै मुसकात । अछिq--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० अक्षि, प्रा० अच्छि ] अाँख । नेत्र । उ०--- -- सूर०, १०॥३३८ । अचल पसारना = दे० 'अँचरा पसर ना' । इच्छइ जु अछि बकै करन, सका लज्ज घसकरी ।--पृ० रा०, ५८१२३ । उ०-- पुर नारि सकल पारि अचल विधिहि वचन सुनावही । --मानस, १।३११ । अचल (में) गाँठ देना = याद रखने के प्रयासमा पुं० [ खे• इच्छा, गु० इण] लोभ । लालचे । इच्छा 1 कामना। लालमों ।--डि ० ।। लिये श्रींचल में ग्रथि देना । बरोबर स्मरण रखना। कभी अज'—सा पुं० [सं० अब्ज, प्रा० * अज्ज, > अप० % अज] कमल। न भूलना। उ० ----अचल गठि दई दुख भाज्यौ, सुख जु अनि बमल का फूल ।--अनेकार्थ ० ।। उर पैठधा |-- सूर०, ६११६४ 1 अचल रोपना = दीनता श्रीर विनय प्रदर्शन के साथ प्रार्थना वरना । अँचरा पसारवर अजसमा १० ! स० अञ्जस) क्रोध । उ०-- मजु कमि सव रूप, अज गजवध महावल |---पृ० ०, १२३० । याचना करना। निहोरा करना । उ०--चरन ना सिर अचल अजन--सच्चा पुं० [सं० अञ्जन] [क्रि० ग्रॅजवाना, अंजाना] १ श्यामत रोपा |--मानस, ६।६। अचल लेना = दे० 'अचल देना' । लाने या रोग दूर करने के निमित्त अाँख की पलको के किनारे उ0--रुद्र कौं देखि कै मोहिनी लाज करि लियौ अचल रुद्र है। पर लगाने की वस्तु । काजल । अजिन । उ०-~-मजन रजन अधिक मोह्यो ।--सूर०, ८११० । अचल भरना= (१) भगला हूँ बिना खजन भजन नैन ।---विहारी ० २०, ४६ । २. सुरमा । शसा के साथ वधू या पुत्री के अचल में अन्न, दूब, हल्दी अादि ८०--अजन अाड तिलक श्राभूपण सचि अायुधि बर छाट |-- डालना। एक मगल कृत्य । (२) कामना पूरी होने का स० लहरी, (उ०, १६) । आशीर्वाद । (३) गोद भरना । क्रि० प्र०—करना ।—देना ।—लगाना ।---सारना । अचलाएं --सझा स्त्री० दे० 'अँचरा'। उ०---मन वधे अचला मिसि । ३, सोलह शृगारी में एक । ४. स्याही । रोशनाई। ५ रात । । --बेलि, दू० १५८ । । रात्रि । ०--उदित अजन १ अनोखी देव अगिन जराय !-- अचितG---वि० [सं० अचिन्त्य, प्रा० अचित चिंतन मे परे। अचित्य । सी० लहरी, ३२ । ६ सिद्धाजन जिसके लगाने से कहा उ०-अचित रुप को मंगल हसा गाबै हो ।--धर्म ० ०, जाता है कि जमीन में गडे खजाने श्रादि दीख पड़ते हैं। पृ० ५४ उ०-~-यथा सुअजन अजि दृग साधक सिद्ध सुजान |-- अचित--वि० [सं० अञ्चित] १ पूजिते । राधित । समानित । मानस, १ ।१।७ लेप । उ०--निरजन बने नयन अजन |-- ३ विमिटे । प्रघ्न । ३ झुका हुआ । घुमावदार । ४ परिमल, पृ० १५८ | ८ माया। 6 अलकारों में प्रयुक्त व्यजना धनुषाकार । ५ सुदर । ६ गत । गया हुआ। ७ ग्रथित । वृत्ति को एक भेद जिसमें कई अथवाले वि स शब्द का प्रयोग गूंथा हुमा | को॰] । पिसी विशेष अर्थ के हो और वह अर्थ दूसरे शब्द य| पद के अर्य अचितपत्र–स पुं० [सं० प्रञ्चितपत्र] टेढ़ दल वाला व मल [फ' ०]। से स्पष्ट हो । अभिधामूलक व्यजना वृत्ति । १० पश्चिम अचित पत्राक्ष---वि० [सं० अञ्चितपन्नाक्ष कमल की तरह नैन दिशा का दिग्गज । ११ एक पर्वत का नाम । कृष्णाजगिरि । | वाला [को०]। अचितभु----वि॰ स्त्री० [सं० अञ्चितघू] वक्र भौहोवाली या धनुषाकार सुलेमान पवत शृखला । १२. कद्र से उत्पन्न एव सर्प का नाम । १३ छिपकली । विस्तुइया । १४ भौहोवाली [को०] । अग्नि (को०) । १५. अचितलागूल---वि० [सं० अञ्चितलांगूल] टेढी दुमवाली ( जैसे पश्चिम दिशा (को०) । १६. एकः देश का नाम । १७ एक वदर ) [को॰] । जाति का बगल। जिसे नटी भी कहते हैं । अजिन । १८. एक अचीख-सज्ञा स्त्री० दे० 'अच' । ३० --जिने लोहची लमिंग अची न पेड जो मध्य प्रदेश, बुदेलखड, मद्रास, मैसूर आदि में बहुत | |--पृ० रा०, २४५२६१ ।। होता है। इसकी लडकी श्यामता लिए हुए लाल रंग की और अचुताएं-'वर [सं० अच्युत] जो विचलित न हो। अडिग । उ०— थई। मजबूत होती है। यह पुलो र मवानो में लगता है । इससे अन्य सामान भी बनते हैं। १९ एक पार्थिव खनिज द्रव्य पारब्रह्म बारे एह लटका अचूत चूत मे लूटा।--सत दरिया, पु. ११३ । जिसका सुरमा धनता है (को०)। २० अांख में अजन लगाने अचुर--सा मुं० [सं० अनुचर] सेवक । दास । ३०--फुलवारी मो का कार्य (को०)। | )जे वासा । अचर में देहि ते हि पासा ।द्रा०, पृ० १२७ । अजन’---वि० काला । सुरमई। उ०---उडत फूल उगन नभ अतर अच्ख्या --मक्षा झी० [सं० इच्छा] वामना। इच्छा। उ०-मन भजन घटा घनी !--सूर० २।२८ । अच्छया पुरन भई सबको मिट्यो री मदन दुख दद ।-अज यौ०---अजनकेश । अजनकेशी । अजनशलाका । जनसार। निधि प्र०, पृ० १६६। अजनहारी ।