पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७२

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अंगुलिम्फोटन अंगुनिफोटन--क्षिा १० [सं० अतिर फटन] उँगलिय] यो फाइना अंग -सया • [re B] १ र ४ र ६ ६ मी | मी पटना [१०] । = गमः । मैन । ३, ४ । । ३५ है ; ? भगुली--- म्नी० [१० प्रश्न मी १. गती । उ००-१६ने पर ३२ ३' परामर मानी हो।। {7 , । अनुनी मनोह्र ।--तुः । ग्र०, १० । २. गा अगुप्टमान-- [५० ४.८मान्न मठ भी भ६11 में 5 अंगूठा (को०)। ३ च ६ चैनी (को०)। ४ पद भेगळा | इंश [ २० ।। (को०) ।। अरुन का परि भाग (पो०)। १. Eथी ये गये अगठमीने--14 { * अन्न,उमावि,7] ६० ' मम' [६] । [ऊ या गतीनमः २१ प भाग । ७. ए. नद। म नाम । अंगठा--पृ १९ ३० ३१' ! ३०-३५ दिए । १ । अमुलीक-- पुं० [भ पर लोक अँगूठी [ फो०] । | नागी अधिक अपार ।--यार ०,१० (६। । ऋगुलीपचवः--रामा मु० ३० प्रगतिपयर' [को०] । अगुटिना--- • [१० अझ रिटर] TF में 7 1 [३०] । अंगुलीपर्व-भा पु० दे० 'अलिपर्च' [को० ]। अगृरटप--६ १० [२० म.प] संग । नयन [को०] । अंगुलीमप-राया पुं० [सं० अङ्ग लोम] उगली सी मिरी या प्रगती अगूठी-- संय। पु० ६० 'अँगूठ।। -द६7 १३ ते १४, भाग (०] । | अग, ६ हुए हैं।--गात, १० ४१ ।। अगुलीय--रामा धु० { २१० अङ्ग,सीय] प्रेठी । ३०--जैसे अप्लोय में . नाम । * शगूर--सपा पु० [फा०] एए' मा पर इनके प; | । दावे ।। गरेकर ---बु म, पृ० ६४।। विगेप---यह भारत के उत्तरपपिम में पूजा पा मम्मर || अगुलीयक-राज्ञा पुं० दे० 'ग्रगुतीय' [फा०] । दि प्रमो में बहुत लगाया जाता है। हिमालय में परिषद अगुलीसमूत- ५० [धर अङ्गलिसम्भूत] नर । भान [१०] । नगो में यह अपने आप भी होती है। इस प्र अगुल्पग्र--सा पुं० [सं० अङ्ग,ल्यग्न उँगली मा मिरा या अगला गु गा, मनायर र दह्रन २.१ ११ पोर महाराष्ट्र प्रदेश | भाग [को॰] । वैः अहमदनगर मारवाद, पूनपोर 17 £दि । | गुरयादे--सा पुं० [सं० अन्न.लि + प्रादे] उँगली का इशारा । में भी दो पद हुई है। बगल में पानी पदिक दान उँगली से अभिप्राय प्रगट वरना। इगा। 1 समे त । में पारण इनाम देने वैमी नही मम ।। पि। प्र में रि० प्र०--पारना --होना । हिरहुत और दानापुर में इसकी कुछ ददिया पार छ। अंगुल्यानिर्देश---रामा पुं० [४० ४ङ्गल्यानम] घदनामी । परनन । जाता है। | लाछन । अमृतनुमाई। बुराई । दे,पारपण । | अगर की चैन होती है। जी टट्टियों पर पं उत। । इग क्रि० प्र०--करना ।--होना। पत्तिग। पुहि या नेनुए की रिपो में fठ ती हुई। अगुत--संध पु० [फा०] उँग ली । प्रमुख) । ३०--पने के राई पादत । ६ फ्त रे मोर वै। र के , दाटे, बड़े, | अगुवत्त माह मस है ।--कविता की, भा०, ४, पृ० १६ ।। गन भर सबै ५६ घर है । ६ ३ ६ ६. १ मा र सवारे घर ३६ मम | 5 में होते है और अगुइतनुमा--वि० [१०] निदनं । । वदमाग । गत [को०] । गुष्ट १ गते हैं। मगर ी मिठ त: प्रद्धि की है। क्रि० प्र०-मरना--निदा गरम |--हे ना = निरित छ । पद भारत) ३ '६५' पर '४ ' के न ३ १ २१ है! । नाम हुन । म मोर गुदुत में इस उरते हैं। प’ र ?में अगुइतनुमा-- ओर [फा०] बदनामः । ये न । छिन् । इसम ,त। 5 में है त, थी । प न प्रम पर 2 में दोपारोपण । ३ ६ । मुमन्मान धादा। ये दुमय पर अः १ क्रि० प्र०-~-परना --होना। ध्यान दिया गर । मनपस्न ftgरेर नि म । । ८५ प । ।। अगस्तरी--सा श्री० [फा०] बैग । मुंदरी । मुदिया। इ०--जय पहा मर ६ ६.ते हैं ! ३ मा ६ ई * ; १ । । । सुलेम य वो अगुप्त।--गिनी ०, १० १६४। इनर *दि पर्ने हो । मोर निर; ६ः १ । Erry प्रगुताना--सं पुं० [फा०] १ वैली पर पहनने को पी, दो धे में जो मग गई। ३३ ३ ६ ६६ -- सोहे पर एक छोटी पी जिगम छोटे छोटे गदहे वने ते है । ८।६, पक, ६ , ६ मा ६ः ८: । - इसे इरजी संग पहा ते रोमन 'ए' उनी में पहन लें। निशान, मिथिए। पर 3 * गुर : *६२ १ जिसे सूई न भ जाय। इसी से ये दुई को उनका पिछ। r; RTर ३ ----, हैदा, नि , ६३, । हिंस्रा ददार मागे । । ३ मोने या न हो एक ६८ । किमि में ६ ३ । । । ११:३१ प्रकार की मु“दरी जो है। * इन ती । ३ र म ग १ ५। ६ ६ राई ३ १४ १ ४सी पो रहा है कि उगम पर्ने मा धातु, गम, ईग 'म ३' ५ - १ ५१ १ १ f-f; धादि मा घर । परिवरा ६० ) | मेनुक्षेनर पुं० [फा०] संगठः [ *]। अगुप्ट -संभ ५० दे० 'गढ'। इ स दसे में 54 ---- हम्मीर रा०, १० ५।