पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७०

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ग्रंगार वल्लरी अंगीकरण अगारवल्लरी--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गारवल्लरी दे० 'अगरवल्ली' को०] । की अाग पर पकाई हुई रोटी । लिट्टी । वाटी । ४ अँगीठी । 'गारवल्ली-~-सफा स्त्री॰ [ मुं० अङ्गारचल्ली ] गुजा की लती । घुघची । वोरस। पी वैन् । मिटी की बेल । | अगारी--वि० [सं० अङ्गारिन्] सूर्य द्वारा प्रतप्त (दिशा) । अंगारवेम्म मा पुं० [सं० अङ्गारवेण] लाल रंग का बाँस । वाँस का अगरीय-वि० [सं० अङ्गारीय] अगर या कोयला बनाने के योग्य । एक भेद [को॰] । (काष्ठादि) [को०] ।। |अगारशकटी--पया स्त्री० [ मं० अङ्गारशकटी 1 अँगीठी । अगारपात्री ।। अगार्या--सका श्री० [सं० अङ्ग] कोयले की देरी [को॰] । गोरस । वोरसी [को०] । अगिका--सच्चा स्त्री० [सं० प्रङ्गि फा] १ स्त्रियो की कुरती । अंगिया । अगारा-हा पुं० [सं० अङ्गारक, प्रा० अगर दे० 'गार' । । चली। कचुकी । छोटा कपडा ।,२ सर्प की केंचुल (को०)। मुहा०—अगारा बनना = क्रोध के कारण मुंह लाल होना । गुस्से । अगित--सझी पु० दे० 'इगित'। उ०की कीरति अगित काजे । में होना । अगारा हो जाना= दे० 'आगारा बनना' । अगारा -विद्यापति०, पृ० ५३३ ।। होना = क्रोध से लाल होना । अगारे उगलना = कटु वचन अगिन्---दि० [सं० अङ्गिन् ] दे० 'प्रगी।' हिना । जली पडी सुनानी । अगारे फोकना = असह्य फन अगिनी--वि० [सं० प्रङ्गिनी] अगवाली । देनेवाग्ला बाम वरना। अगरे बरसना = (१) अत्यत अधिक विशप-इसका प्रयोग प्राय समस्तरूप में ही मिलता है, जैसे, अधगिनी ।। गर्मी पढना । आग बरमना । (२) दैवी कोप होना। अगारो अगिया (५----संसा जी० दे० 'अगिका'-~-१ ।। पर पैर रउना = (१) जान बूझकर हानिकारक कार्य करना अगिर--सहा पुं॰ [सं• अङ्गिर) १ दे० 'अगिरस'। २. तीतर पक्षी (को०]]। या अपने को मक्ट मे लना । (२) जमीन पर पैर न रखना। अगिरस--सझा पुं० [सं० अङ्गिरस १ एक प्राचीन श्रपि का नाम तराकर चदना । अंगारों पर लोटना = (१) अत्यत रोष प्रकट करना । आग बबूला होना । मनाना । (२) डाह से जलना । | जो दस प्रजापतियों में गिने जाते हैं। ६य से ध्यान हीना। इ०---'वह मेरे बच्चे को देखकर विशेप---ये अथर्ववेद के प्रादुभविकत कहे जाते हैं। इसी से इनका अगा पर लोट गई' (गट ०। । (३) तसपना व्याकुल होना। नाम अयव भी है। इनकी उत्पत्ति के विपय में कई कथाएँ ३०---शाम में ही लोटनी है मुम को अगा। प प्रा ।। है। वहीं इनके पिता को उरु और माता को अग्नेयी लिखा --२०, मा० १, पृ० ६५६ । अहोरो पर लोटाना = है और कहीं इनवी ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न बतलाया गया है । (१) इलावा । दाह करना । (२) पाना । दुखः द रना।' रमृति, स्वधा, सती और श्रद्धा इनकी स्त्रियाँ थीं जिनसे ऋचस नाम की कन्या और मानस् नामक पुत्र हुए। इनकी लाल अगारा = (१) बहुत लाल । खुब सुखं । उ---‘काटने बनाई एक स्मृति 'मी है। पर तरबूज जाते अगरा वि ला' (शब्द॰) । (२) त्यत २ वृहम्पनि का नाम । ३. ६० सवत्सरो में छठे सवत्सर' का ऋद्ध । ४०---‘यह सुनते ही वह लाल अगारा हो । नाम । ४, बटीला । क्टीला गोद । कतीरा । गई' (शब्द॰) । | अगिरस--सा पुं० [ सं० (अङ्गिरस् ] १ परशुराम का एक शत्रु " अगावक्षपण---सः पुं० [ से० प्राथिक्षेपण ] भंगार या जलती २ दे० 'अगिग्म-२ [को॰] । | हा वायला निकलने और बुझाने का एक पत्र । चिमटा अगिरसी---स। पुं० [सं० अङ्गिरसी] शरीर विज्ञान का ज्ञात [को०]। [को॰] । अगिरा---सज्ञा पुं० दे० 'अगिरस्' । अगरिसर मी' [सं० १ङ्गारि अँगे टी । वन्सी । अगिर्-- सद्मा पु० [ से अगिर ] एक ऋपि जिन्होंने अथर्वण ऋपि | अगारिका--सच्च मी [ सं• अङ्गारिका] १ अॅगठी २ इक्षु । ईस ।। से ब्रह्मविद्या प्राप्त की थी। अगिरस् के गुरु सत्यवाह इनके ३ ईन च ४ टा ट्रक डा । ४ १ली । ५. पलाश को चली शिष्य थे [को॰] । अगी--वि० [सं० अङ्गी १ शरीरी। देहधारी । शरीरबाला। २. । ऋगा --सद्ध . [ मृ० अङ्गारिणी ] १ अंगीठी । बारमी । अवयवी । उपकाये । अशी । समष्टि। ३ प्रधान । मुख्य। । श्रादिशदान । २ वह दिशा जिसपर डूबे हुए सूर्य की लाली गी?--वि॰ स्त्री० अरे वाली ( केवल समास में प्रयुक्त, जैने, तन्वगी, छाई हो । ३ एक लता (को०) । कोमन्नागी शादि)। गत -- वि स हरित १ भुना हुआ । २ द ध (एक प्रकार अगी'-.-सा पुं० १ नाक व प्रधान नायक, जैसे सत्यहरिश्चद्र या भोजन जो जैन मुनियों के लिये त्याज्य है) । ३ जला में हरिश्चंद्र । २. प्रधान रस। नाटको में शृगार और हुआ [को०]। वीर ये दो रम अंग ( प्रधान ) कहलाते हैं और शेप रस |' अगाति'.-सए पुं० पलाश की ताजी केली [को०]। अग ( अप्रधान ) ।। | अगाविता--सः स्त्री० [सं० अारिता] १ अँगीठी । २ ली । ३ ऋगी’--सा मी० [हिं०] चौदह विद्याएँ । पुग्नश की ताजी अली । ४ एक लहा। ५ एक नदी का । अगीG५––समा स्त्री० दे० 'अगिया' । नाम को॰] । अगीकति--सया स्त्री० [र्म० अगीकृत, प्रा० अगफत, हिं० अगीकति] | गारी'-सच्चा स्त्री० [सं० अङ्कारी] १ द्रव दे हुए कोयले का छोटा ६० 'गी कृति' । उ०-- जो चाचा जी मे श्रीनाथ जी गुसाई जी की । दुकढा । ३ चिनगारी । ३. अगार यी दहकती हुई चिना लपट अगीकति को सवध दृढ है।--दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ६५ । ऋगीकरण-समा पुं० [सं० अङ्गीकरण] १ दे० 'अगीकार' । उ०--