पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/६८

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अंगरक्षक अंगसेवक अगरक्षक--सझा पुं० [स० अङ्गरक्षक] [स्त्री० अङ्गरक्षिा ] शासक या अंगविकृति-सक्षा स्त्री० [सं० अङ्गविकृति अपस्मार । मृगी या मिरगी विशेप अधिकारी की रक्षा के लिये नियुक्ति सैनिकः । वाडीगार्ड । रोग । मूछ रोग । । शरीर रक्षक [को॰] । अगविक्षेप-सज्ञा पुं० [सं० अङ्गविक्षेप १ प्रग हिलाना । चमकाना । अगरक्षणी--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गरक्षिण] शरीर की रक्षा के लिये मटकाना 1 बोलते, वक्तृता देते वा गाते समय हाथ पैर, सिर लोहे की वनी पोशाक । वर्म। कवच [को० ]! श्रादि को हिलाना । २ नृत्य । नाच । ३ नृत्यकालीन अगअग्रक्षा-सा स्त्री॰ [मे० अङ्गरक्षा] शरीर की रक्षा । देह का बचाव । सचालन । कलवाजी ।। बदन की हिफाजत । । अगविद्या---सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गविद्या] १ शरीर के लक्षणों और अगरक्षिणी--सञ्ज्ञा स्त्री० दे० 'अगरणी' । रेखा को देखकर जीवन की घटनाग्रो को बताने की विद्या । अगरस---मज्ञा पुं० [सं० अङ्ग+रम) किमी पत्ती या फल का कूटकर। शरीर की रेखा से मनुष्य के शुभाशुभ फल कने को कला । निचोड़ा हुआ रम् । स्वरस । रोग ।। अगराग--सं० पु० [सं० अङ्गराग] १. चदन, केसर, कपूर, कम्तरी सामुद्रिक विद्या । २ छह वेदाग। आदि सुगधित द्रव्यों का मिला हुआ लेप जो अग में लगाया अगविभ्रम-सझी पु० [ से अङ्ग विप्रम ] १ रोग जिसमे रोगी जाता हैं। उबटन | वटना । २ वस्त्र और अभृिपण । ३ अगौ को और का शोर समझता है । अग भ्राति । २ शृगार शर, २ को जो भा के लिये महावर आदि रंगने की सामग्री । 'रस मे नायिका की बिभ्रम नामक चैप्टा ।। ४ स्त्रियों के मरीर में पांच अगों को सजावट--माँग मे अगवैकृत -संझ पुं० [स० अङ्गवैकृत] हृदय या मन के भाव को अगो सिंदूर, माथे थे ली, गाल पर तिर की रचना, केमर का के चेप्टा से व्यक्त करना । अाकार [को०] । नेर, और हाथ पैर में मेहँदी वा महावर । ५ एक प्रकार की | अगश --कि० वि० [सं० अङ्गश} अग या विभाग के अनुसार [को०] । सुगधित देस बुकनी जिसे मुंह पर लगाते हैं। चौंसठ अगशुद्धि - संज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गशुद्धि] स्ननादि द्वारा शरीर स्वच्छ कलाशो में से एक ।--वर्ग० ।। कन्ना [को०] । । अंगराज-सज्ञा पुं० [स० अङ्गराज] १ अग देश का राजा कर्ण । अगशैथिल्य--- सझा पुं० [सं० अङ्ग शैथिल्य] वदन की सुस्ती । अग का २ राजा सोमपाद जो दशरथ के परम मित्र थे । इनकी कन्या ढीलापन । थकावट । शाता प्यशृग को व्याही गई थी। इसी नाते ऋष्यशृग ने अगशोष--सा पुं० [स० अङ्ग शोष] एक रोग जिसमें शरीर क्षीण होता | दशरथ में पुत्रेष्टि यन कराया था। या सूखता है। सुख ही रोग। अगरु--सझा पुं० [सं० अङ्गह] १ शरीर के रोएँ, केश आदि । अगसग-सज्ञा पुं० [सं० अङ्ग + सङ्ग ] रति । संयोग । मैथुन । २ ऊन [को०] ।। सभोग ।। अगरेजी-सच्चा स्त्री॰ [फा० पुर्त० श्राग्लेज, इगलेज] अँगरेज लोगो अगसधि---सच्चा स्त्री० दे० 'सध्यग की भाषा । इलैंड और अमेरिका के निवासियों की भापा । अगसपेख --सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्ग+सम्प्रेक्ष ] अग नामक देश अगरेजी--वि० अँगरेजो की । विलायती । ( हिं० )। अगरेजीवाज--वि० [हिं० अगरेजी+फा०वाज] कुछ कुछ अँगरेजी अगसवाहन--सी पुं० [सं० अङ्ग सवाहन] अगभर्दन । मालिश । देह जाननेवाला। उ०—-बहुतेरे अगरेजीवाज साँवले साहित्य दबाना । उ०—'चार सेवक श्रावनेस के वेलन से उसका अग| लोग' ।---प्रेमघन ०, भु० २, पृ० २५२ ।। सवाहन करते थे' ।—चद्र ० (५०), पृ० २२ ।। अंगलिपि--सच्चा स्त्री० [सं० अङ्गलिपि अग देश मे लिखी जानेवाली अगसस्कार–सझा पुं० [ अङ्गसस्कार ] अगो का संवारना । देह का लिपि (को०)। बनाव सजावे । उघटन, स्नान या सुगधित द्रव्यो श्रादि से शरीर की सजावट । अगलेप--सज्ञा पुं० [सं० अङ्गलेप दे० 'अगराग'--१ [को०] । अगलोचसहा पुं० सं० [अङ्गलोय १ एक प्रकार की घास । चिचिडी।। अगसस्क्रिया-सट ली० दे० 'अगसस्कार' (को॰] । २ अदरक या उसकी जड (को॰] । अंगसहति--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गसहति अगो का गठन । श्रगो की अगवना--क्रि० सं० दे० 'अँगना'-३। उ०—-एक कोटि अगवन | रचना या बनावट । अगौ का सुढारपन (को०)। घरत हर उर सु ध्यान वर --पृ० रा०, ६१।१६० । अगसहिता--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गसहिता] विसी शब्द में व्यजन और । ऋगवस्त्र--सज्ञा पुं० [सं० अङ्ग-वस्त्र पहनने का वस्त्र । पोशाक। स्वर के मध्य का ध्वनिसबध (को०] । उ०---जो जो अग ऊपर अगवस्त्र पहिरे ते सो तो रहे 1--दो अगसख्य–सच्ची पुं० [सं० अङ्गसख्य] अभिन्न मैत्री । गाढी मित्रता । सौ वाचन०, भा० १, पृ० ११३ ॥ | गहरी दोस्ती । । अगवारा--सझा पुं० [सं० अङ्ग = मारी, सहायता + फार १ गाँव के अगसिहरा---संघ) जी० [सं० अङ्ग= शरीर + हर्ष = कप १ ज्वर माने एक छोटे भाग का मालिक । २ खेत की जोताई में एक दूसरे के पहले देह की कैंपकपी । कप । केपी । २ जुडी । की सहायता। अगसुप्ति--सच्चा स्त्री० [सं० अङ्गसुप्ति) शरीर का सुन्न होना (को०] ।। अगविकल--वि० [सं० अङ्गविकल] १ मयुक्त । मू छित। २ अगसेवक-सा ५० [सं० अङ्ग सेवक शरीर की रक्षा करने वाली विकलाग (को० । निजी सेवक । झगरक्षक (को०)।