पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/६६

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अई अगद मे अग ।----भिखारी० ग्र०, भा० १, पृ० ४ । ८ सहायक । अगज-वि० [सं० अङ्गज ] शरीर से उत्पन्न । तर से पैदा । उ॰-- सुहृद । पक्ष का। तरफदार। उ०--रे अग जग जग को कु अगजों की बहू कदायिता बता रही थी जन ने बवान को । है। --मानम, २२८४ । ६ एक सवोधन । प्रिय । प्रियवर । -प्रिये० प्र०, पृ० १०३ । ३०---यह निश्चय ज्ञानी को जाते कत दीख केरै नै अग। अगज --सज्ञा पुं० [ मी अगजा ] १ पुत्र । वेटा। लडेका । उ० --- --निश्चल (मन्दि०)। १० जन्मलग्न (ज्यो०) । ११. प्रत्यय कृष्ण गेह के काम, काम अगज जनु अनुरव । - १० रा०, युक्त माद का प्रत्यय रहित भाग । प्रकृति । ( व्या० ) । १।७२७ । २ पसीना । ३ बल ! केश । रोम । ४ काम, १२• छह की संख्या । ३०--वरसि अचल गुण अग ससी सवति, क्रोध आदि विकार । ५ साहित्य में स्त्रियों के यौवन सवधी तवियो जस करि श्रीभरतार ।-वेलि, ६० ३०५। १३ वेद के जो सात्विक विकार हैं उनमे हाव, भाव और हेला ये तीन ६ अग, यथा-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और 'अगज' कहलाते हैं । कायिक । ६ कामदेव । ७ मद । छद । दे० 'वेदाग' । १४. नाटक में शृगार और वीर रस ८ रोग । ६. रक्त 1 खून (को॰) । को छोडकर घोष रस जो प्रधान रहते हैं । १५ नाटक में अगजा-सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गजा ] कन्या । पुत्री । वेटी । नायक या अगी का कार्य साधक पात्र , जैसे--'वीरचरित' में अगजाई---सक्षा स्त्री० [सं० अङ्ग+ हिं० जाई } पुत्रो । बेटी । कन्यो। सुग्रीव, अगद विभपण अादि । १६ नाटक की ५ सघियो के अतर्गत एक उपविभाग । १७ मन । उ०—-सुनत राव इह अगजात---सा पुं० दे० 'अगज' । कथ्थ फुनि, उपजिय अचरज अग । सिथिल अग धीरज रहित, अगजाता---संज्ञा स्त्री० दे० 'गजा' ।। भयो दुमति मति पग |----१ ० ०, ३।१८ १८ साधन जिसके अगैज्वर--सेवा पुं० [सं० अङ्गज्वर ] राजयक्ष्मा । क्षय रोग (को॰] । द्वारा कोई कार्य सपादित किया जाय । १६ सेना के चार अगज्वर-वि० ज्वरोत्पादक (को०] । अग वा विभाग, यथा--हाथी, घोडे रथ और पैदल। दे० अगड खगड-वि० [ अन घ्व० 1 १ वचा खुचा । गिरा पडा । इधर 'चतुरगिणं' । २० राजनीति के सात अग, यथा--स्वामी, उधर का । २ टूटा फूटा । उ०--'अयोध्या की अगड खगड अमात्य, सुहृद्, कोप राष्ट्र, दुर्ग और सेना । २१ योग के आठ बीहड और वेढगी बरती । ---प्रेम धन०, भा॰ २, पृ० १७४ अग, यथा--यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, अगड खगड-सञ्ज्ञा पुं० काठकवाडे । टूटा फूटा सामान । धारणा और समाधि । दे० 'योग'। २१. वगाल में भागलपुर अगुडा(५)--सा मुं० [सं० अङ्ग+ हिं० डा (प्रत्य॰)] दे॰ 'आग' १ । के अासपास की प्राचीन जनपद जिसकी राजधानी चंपापुरी | उ० ---ते। अगडा पैखों रे, तेग मुखडा देखो रे । ---दादू०, थी। कहीं कही इसका विस्तार वैद्यनाथ से लेकर भुवनेश्वर पृ० ५०४ ।। ( उडीसा, उत्कल ) प्रदेश तक लिखा है । २३ ध्रुव के वश अगढग-संचा पुं० [सं० अङ्ग -+हि० हग ] प्रगो को बनावट या का एक राजा । २४, एक भक्त का नाम । २५. उपाय | २६. लक्षण । चिह्न (को०)। रचना । उ०--अग ढग औ रग भूरि भंवरी सुभ लच्छन । रत्नाकर, भा० १, पृ० ११३ ।। अग?--वि० १ अप्रधान । गौण । २ उलटा । प्रतीप । ३ प्रधान । | प्रधान । अगण----सम्रा पुं० [सं० अङ्गण ] १ घर के बीच का खुला हुश्री ४ निकट 1 समीप (को०) । ५ अगोंवला (को०' | भाग 1 अगन । सहने । चौक । अजिर । उ०---(क) स देसे ही अग” ७ सझे जी० [सं० प्रज्ञा ] अाज्ञा । प्रदेश । उ०--सो निज घर भयउ कई अणि कई वार |--ढोला०, ६०, ८०० । स्वामिनि प्रग सुनि मिय सुपथ्थह वव्व ।----पृ० रा०, ६१।७६६ । (ख) अबी द्वार तजे ग्रह अगण (---राज०, पृ० १८ । । अंगकर्म–सच्चा पुं० [सं० अङ्गकर्म 1 शरीर को संवारना या मालिश विशेष---शुभाशुभ निश्चय के लिये इमके दो भेद माने गए है, करना । एक 'सूर्यवेधी' जो पूर्व पश्चिम लबा हो, दूसरा चद्र वैधी' कि० प्र०—करना ।—होना । जिसकी लबाई उत्तर दक्षिण हो । चद्रवेधी अगन अच्छा अगक्रिया--संज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गक्रिया ] अगकर्म (को०] ।। समझ जाता है। अगग्रह-- सधा पुं० [सं० अङ्गग्रह ] १ एक रोग जिससे देह में पीडा २ यान । सवारी (को०)। ३ सचरण । गमन (को०)। होती हैं । २. स्थापत्य में पत्थरो के एक दूसरे के ऊपर फिसल अगति--सधा पुं० [सं० अङ्गति ] १ अग्निहोत्री । २. विष्णु । ३. न जाने अथवा उनके जोडो को अलग होने से रोकने के लिये । ब्रह्मा । ४. अग्नि । ५, जिसके द्वारा गमन किया जाय। उनके बीच बैठाया जानेवाला कवूनर की पूंछ के प्रकार का वाहन (को॰] । लोहे या ताँबे का एक टुकडा । पाहू। अगलाण-- सल्ला पुं० [सं० अङ्गवाण] १. शस्त्रास्त्रो से अग की रक्षा अगचालन--सभा पुं० [सं० अड्चालन ] हाथ पैर हिलाना ! अंग । के निमित पीतल या लौहे को पहिनावा। कवच । बेतर । डुलाना । वर्म । जिरह । २ अंगरखा 1 कुरता। अगच्छवि--सच्ची जी० [ अङ्ग + छवि ] अगों की शोभा । उ6--'अग- अगद-सज्ञा पुं० [सं० अङ्गद ] १, वालि नामक बदर की | छवि से होते थे स्वय अलकृत ! ---पार्वतो, पृ० २०० । पुत्र जो रामचंद्र की सेना में था। २. वाहू पर पहनने का एक गच्छेद----संज्ञा पुं० [सं० अङ्ग+छेद ] अग कटना । अगभग । गहना। विजयट । वाजूव दे। उ6--उर पर पदिक पुसुम उ०—शरीर छोटे से बड़ा होता है, उसका कभी कभी अगच्छेद घनमाला अगदसरे दिराजै ।-- सूर०, १०१४५१३ लक्ष्मण के हो जाता है।-चिदु०, पृ० २०७] दो पुत्रों में से एक।४, दुर्योधन के पक्ष का एक योद्धा ।