पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/६४

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अंकित ३ अकुस' अकित--वि० [सं० अङ्कित ] १ निशान किया हुअा। दागदार। अकुरितयौवना--वि० [सं० अङ्क रितयौवना] वह बालिका जिसके चिह्नित । ३०० -भूमि विलोकु राम पद अकित वन विलोकु रघुवर यौवनावस्था के कुच आदि चिह्न प्रकट हो गए हो । किशोरी । बिहार थनु ।-तुलसी ग्र०, पृ० ४६६ । २ लिखित । खचित । अकुरी--सन्ना जी० [हिं० अकुर-+ई 1 चने की भिगोई हुई उ०---तब देखी मुद्रिका मनोहर । राम नाम अकित अति मुदर। घुघनी । --मानस, ५१३ । ३ वणित । उ०---सब गुन रहित कुकवि अकुले--सज्ञा पुं० [स० अ र] दे० 'अकुर'-१ । उ०- •अकुल वीज कृत बानी। राम नाम जस अकित जानी ।---मनिस, ११० | नसाय के भए विदेही थान |--कवीर बी०, पृ० १३ । (ख) ४ गिना हुअ ( को०)। बीज विन अकुल पेड विनु तरिवर, विनु फूले फल फरिया। क्रि० प्र०—करना ।—होना । -कवीर वी०, पृ० ३५।। |अकिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० अड्निी ] १ चिह्नो का समूह । चिह्न अकुश--सज्ञा पुं० [सं० अङ्क श] १. एक प्रकार का छोटा शस्त्रे या टेढ़ा । २rशि । २. चिह्नयुक्त स्त्री का०] । कौटा जिसे हाथी के मस्तक में गोदकर महावत उसे चलाती या अकिनी--वि० अव न करनेवाली। उ०----होकर भी बहू चित्र अकिनी हाँकता है। हाथी को हांकने का दोमुहाँ कांटा या माला जिसका एक फल झुका होता है। अकुस । गजवाग । शृण । अाप रकिनी अशा है ।--साकेत, पृ०, ३६६ । क्रि० प्र०—देना ।--मारना ।——लगाना । 'अकिल-- सच्चा १०[ सः अङ्क+हिं० इल (प्रत्य॰)] धडा जिसे हिंदू २. प्रतिवध | रोक । दवाव । नियत्रण । जैसे, अकुश मे रखना वृपोत्सर्ग में दागकर छोड़ देते हैं। दाग हुअा सह । साँड। = प्रतिबध में रखना। ३. अकुश के प्रकार की हाथ पैर की अकी--संज्ञा पुं० [मै० अङ्की] एक प्रकार का मृदग [को०] । रेखा। च०---अकुश बरछी शक्ति पचि गदा धनुष असि तीर । अकुट-सा पुं० [सं० अङ्कट] कुनी । ताली [को०]। अाठ शस्त्र को चिह्न यह धारत पद वलवीर ---भारतेंदु ग्र०, ' अकुडक-समी पुं० [सं० अङ,डक] १ कुजी । ताली । २. नागदत । ना० २, पृ० २१ । । खूटी [को॰] । अकुशग्रह--सज्ञा पुं० [सं० अङ्श ग्रहों महावत ! हायीवान । निषादी । | अंकुर-सझा पुं० [सं० अङ्कर ] [वि॰ अडकुरित, हिं० अंकुरना] १. फीलवान ।। अँखुमा । गाम 1 अंगुस । ३०--पाइ कपट जल अकुर जामा । अकुशदता--माझा पु० [सं० अशदन्त] एक प्रकार का हाथी जिसका —मानस, २३ । २. डीभ । कल्ला । कनखा। कोपल । श्रीख। एक दाँत सीधा और दूसरा पृथिवी की अोर झुका रहता है । ३ यव का नया नया अँखा जो मागलिक होता है । उ०— यह अन्य हाथियो से बलवान् और क्रोधी होता है तथा झुड अच्छत अकुर रोचन लाजा । मजुले मजरि तुलसि विराज। में नहीं रहता । इसे गुडी भी कहते हैं। --मानस, १३४६। अकुशदुर्धर--सधा पुं० [सं० अङ्श दुर्धर] अकुश से भी जल्दी वश में क्रि० प्र०--धानी । उगना |-जमना 1--निकलना --फूटना। न थानेवाला मतवाला हाथ । मत्त हाथ ।। -फोडना ।-फेंकना ।—लेना । अकृशधारी--संक्षा पुं० [सं० अङ्क शधारी] महावत 1 फीलवान [को०]। ४. कली । ५ सतति । सतन । उ०---(क) 'हमारे नष्ट कुल में अकुशमुद्रा--सच्चा स्त्री॰ [मु. अडकुशमुद्रा ] तन्ने शास्त्र में अगुलियो को ये एक प्रकृर बचा है, इससे हमारा वश चलेगा 1'–श्रीनिवास अकुश के प्रकार की धनाई प्राकृति [को॰] । अ० १० १४६ । (ख) थे अकुर हितकर कलश पयोधर पावन । अकुशा--सा जी० [ मै० अङकुणा] २४ जैन देवियों में एक । चौदहवें --सा घेत, पृ० २०३ । ६. नोक । ७ जुल । पानी। ८ रुधिर । तीर्थंकर श्री अनंतनाथ की शासनदेवी का नाम [को॰] । अकशित--वि० [सं० अङ,कुशित] अकुश के प्रयोग द्वारा आगे बढाया रक्त । खून। ९ रोम । रो।। हूआ (को॰] । ।। अकुर--सा पुं० [फा० अगर ] मास के बहुत छोटे लाल लाल दाने अकुशी--वि० [सं० अङकुशी] १. अकुशवाला । अकुश से युक्त । २. । जो घाव भरते समय उत्पन्न होते हैं। मराव । अगूर । । अकुश में वश में करनेवाला [को०] । | अकुरक--संज्ञा पुं० [सं० अङ्क रक] घोसला । खोता [को॰] । अकुशी--सच्चा स्त्री० दे० 'अकुश'। अकुरण--- संवा पुं० [ सं अङ्क,रण ] अकूर निकलना 1 बीज आदि को । अकुस'-सा पुं० [सं० अकुश, प्रा० अकुस ] १ दे० 'अकुश'। । अकुयुक्त होना [को॰] । उ० ---महामत्त गजराज कहूँ बस कर अकुस खर्ब ।——मानस, ।। अकुरना--कि० अ० [सं० अरण, अकुर फ हैन । उगना । जमना। १।२५६ । निव लन्। पैदा हुन् । उत्पन्न होना। उ०—उर भकुरेउ गर्व महा०-अकुस देना = ठेलना । जबरदस्ती करना। उ०क्रोध | तरु भारी ।-मानस, १॥२१६। गजपाल के ठठकि हाथी रह्यो देत अकुस मसकि कह सकन्यो । अकुराना--क्रि० अ० दे० 'अकुरना' । --सूर०, १०१३०५४ ।। अंकुरित--वि० [सं० अङ,रित] १ जिस मे अकुर हो गया हो। अँखु २. दे० 'अकुश'-२ । ३०-कुल अकुश आरजे पथ तजि के लाज आया हुअ । उगा हुअए । जमी हुई। उ०—सृष्टि बीज अंकुरित सकुच दई हेरे । सूर स्याम के रूप लुभाने कैसे फिरत ने प्रफुल्लित सफल हो रहा हरा भरा।--कामायनी, पृ० १८२ । फेरे ।-सूर०, (परि०) २, पृ० १४।। २. उत्पन्न। निकली हुयी। उ०---अकुरित तरु पात उकठि रहे ३. दे० 'अकुश' ३.। उ०—याको सेवक चतुरतर गननायक सम जे गात, बनबेली प्रफुलित कलिनी कहर के --सूर०, १०।३० । होइ । या हित मकुस चिह्न हरि चरनन् सोहुत सोइ । वि० प्र०करना। भारतेंदुग्न०, भा॰ २, पृ० ६ । - - - -