पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/६२

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हिंदी शब्दसागर प्र-- मस्कृत और हिंदी वर्णमाला का पहला अक्षर । इसका उच्चारण नल फेर कर सकता है। इसके रसयुक्त आख्यान में प्रधान रस कठ से होता है इससे यह कम्घ वर्ण छहलाता है । व्यजनो करण और एक ही अक होता है। इसकी भाषा सरल श्रौर पद का इन्चारर इस अक्षर की सहायता के दिन] अलग नहीं हो छ टा होना चाहिए । १३. किसी पत्र यो पत्रिका की कोई सकता इसी से वर्णमाला में क, ख, ग अादि वर्ण अकार मामयिव प्रति । १४ नौ की सख्या (क्योकि अक नी ही तक होते सयुक्त लिखे अौर वले जाते है । हैं)। १५. एके की सख्या ( को० } । १६ एक सख्या । शून्य विशेप--अक्षरों में यह बसे श्रेष्ठ माना जाता है। उपनिषद में ( को० ) ! १७ प । दु ख । १८, शरीर । अग । देह । इसकी वडी महिम। निखी है। गता में श्रीकृष्ण ने वहा जैसे--‘अव धारिणी' में 'अक' । १६. दगल। पाश्वं । जैसे--- है--'अक्षराणामकारोस्मि' । वास्तव में कठ खुलते ही बच्चो ‘अब रिटर्तन' में 'अक' । २०, केटि । कमर । उ०-~-सह सूर के मख से यह अक्षर निकलता है। ए सी से प्राय सव वण स्म त वर्धति अक ।--१० २०, ५१।१२० । २१ व २ खा । मालाओं में इसे पहला स्थान दिया गया है। वैया •णो नै ४०----‘मृकुटि अक व कुरिय (--पृ० रा०, ६१।२४५७ । २२ हुक मात्राभेद से इसे तीन प्रकार का माना है, हस्व जैर-अ, या हुव जैसा ढ। अंजीर ( क ० ) । २३ मोड । झुकाव दीर्घ जैसे--अ, लत जैसे- ३१ इन तीनो में से प्रत्येक के (को०)। २४ फटे। गली। गर्दन । उ०- वरमाला इवक अर्क दो दो भेद माने गए हैं, सानुनासिक और निरनृनसिक। सान् पहिराइ व ह्या इह --पृ० रा०, ७।२६ । ६५ विभूपण (को०)। नासिक का चिह्न चद्रबिंदु है । तत्रशास्त्र के अनुसार यह वर्ण २६ स्थान (को०) २७ चिन्न युद्ध । नवली लडाई (को॰) । मान्ना का पहला अक्षर इसलिये है कि यह सृष्टि उत्पन्न मरने २८ प्रकरण १ को०)। २६ पर्वत (को०)। ३० रथ का के पहले मृप्टिव र्ता की अबुल अवस्था को सूचित करता है। एक अश या भाग (को०) । २१ पशु को दागने का चिह्न अक- सच्चा मुं० [ सं० अङ्क) | वि० अङ्कित, प्रड्नीय, अङ्घ ] | (को०) । ३२ सहस्थिति (को॰) । १ सस्यो । अदद । २ सरया व चिह, जैसे १, २, ३, ४, ५, महा ०-- अफ देना = २ ले लगाना । अलि न देना । अक भरना E ६, ७, ८, ६ । उ०-रामनाम को अक है सच कधिन है सून । हृदय से लगाना । लिपटना | ले लगना । द नो हाथो से घेर--तुलस ग्र०, पृ० १०४ । ३ चिह्न । निशान । छाप । श्रीक । वर प्यार से दबाना। परिभण वरना। प्रालि न करना। ६०--सीय राम १ अ६ वराए । लपन च हि मग दाहिने लाए। ३०--इठी पर जय ते मय व वदनी को लखि, अक भरिबे को फेरि - मानस, २२१३ । ४ दग। धव्व। उ०- जहाँ यह मयामती लाल मन ललकै [-भिखारी० ग्र०, भ6 १ पृ० २४५ । अफ को अंक हैं मयंक मे १-भिखारी ग्र०, भ० १, पृ० ४६ । मिलाना= दे० 'अक भरना' । उ०• नारी नाम वहिन जो शाही । ५ बाउ ल की दिदी जिसे नजर से बचाने के लिये धरचो के माथे तासो कैसे अफ मिलाही ।-- घ वर स०, पृ० १०१० | अफ पर लगा देते हैं । रिठौना । अनखी। ६. अक्षर । उ०-अद्भत रूगना = दे० 'अक देना' । अक लगाना = दे० 'झक भरना।' 'रामनाम के अक ।--सूर०, १।६०। ७ लेख । लिखावट । उ०-दादरी जो १ व लक लग्य तो निस क ६ वयो उ० --खडित अरने को भाग्य अक । देखा मविष्य के प्रति नहि अक लगादती ---इरि ०, पृ० ६६३ । अझ मे समाना= अशक ।---अनामिका, १२३ । ६ भाग्य । लिखन । वि स्मत । लीन होना । सायुष्य मृत्ति प्राप्त करना । उ०-- जैसे व निका ज०- जो विधना ने लिखि दियो छठी रात को अक् । राई घटे वोटि के प्रा है राई । ऐसे हरिजन अकि समाई --प्राण०, न तिल व २६ २ जीव न्सि ।-विरसी०, पृ० ६०। ६ गोद । पृ० १५८ । क्राड । क ली। उ०—जिस पृथिवी से निव ली सदीप वह सीता- अवक-सा पुं० [सं० अङ्क ] [ झी• अड्किा ] १. गिनती करने अक में उसी आज लीन 1--तुलसी ०, पृ० ४४ । १०. चार । वाला। २. हिसाब रखने वाला । ३. चिह्न करनेवाला । फा । मर्तबा । ४०--एवह अक न हरि 'मजे सि रे सठे सूर अककरण--सच्चा पुं० [सं० अङ्करण ] चिह्न या छाप लगाने का गवार ।-सूर ( रा ० ) ११ नाटक छ। एक अश जिस की कार्य । अकन [को० 1।। सम् 1प्ति पर जवनिका गिरा दी जाती है । १२ दस प्रकार के अव कार--संज्ञा पुं॰ [सं॰ अकार] वई योद्धा जिसकी हार या रूपकों में से एक जिसकी इतिहासप्रसिद्ध कथा में नाटककार जीत उसके पक्ष की हार जीत का निर्णय कराए।