पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५९५

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५२८ ईशानी ईर--संज्ञा पुं० [सं०] वायु (को०] । ईष्र्य--वि० [भं०] ईपलु कि०] । ईरखा-संज्ञा स्त्री० [ स० ईर्षा ] दे० 'ई' । उ०—कर ईरखा। ईष्र्य्यक-~-सज्ञा पुं॰ [सं०] वैद्य क के अनुसार एक प्रकार के नपुसक सो जु तिय मनभावन सो मान -मतिराम ग्र०, पृ० २९४ ।। जिन्हें उस समय कामोत्तेजना होती है जिम में पय ये किमी ईरज-सज्ञा पुं॰ [सं०] वायुपुत्र हनूमान् को]।। दूसरे को मैथुन करते हुए देखते हैं । ईरण'--वि० [सं०] विक्षुब्ध करनेवाला। उत्तेजित करनेवाला (को०)। ईर्थ्यक--वि० ईपलु । डाह करनेवाला (को॰] । ईरेण-सज्ञा पुं० १ हवा । पदन । २ जाना । गमन । ३ भेजना। ईष्र्या--सज्ञा स्त्री० [म० दे० 'ई' । उ० -६०ff हमारे बिन मे क्षण प्रेपित करना । प्रेषण । ४ कष्ट से मल का निकलना । ५ मात्र भी हटती नहीं ।—मारत०, पृ० १४६ । कहना । कयने [को०] । ईष्र्यालु-वि० [सं०] दे॰ 'ईपलु' (को०] । ईरपाद--संज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का सर्प [को०] । ईष्र्ण्य–वि० [सं०] दे० 'ई' [को०] । ईरपुत्र--सज्ञा पुं० [सं०] हनूमान् [को॰] । ईल-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक वनेला जनु । ईरमदपु–संज्ञा पुं० [सं० इम्मद ] दे० 'इरम्भद' । ईल-संझा स्त्री० [अ०] एक प्रकार की मछन । बौग । ईरान-सज्ञा पुं॰ [ फा०] [वि० ईरानी ] फारस देश । ईलि - सज्ञा स्त्री० [सं०] १ यष्टि 1 लाठी । गुट । २ एक शस्त्र ।। ईरानी'--वि० [फा०] ईरान में सर्वाधित । ईरान का को०] । छोटी असि या कटार [को०) । ईरानी--पक्षी पु० ईरान का निवामी (को०)।। ईली--सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'ईलि' (को०] । ईरानी-सच्चा स्त्री॰ ईरान देश की भापा [को०] । ईश---सज्ञा पुं॰ [स०] [स्त्री० ईशा, ईशी] १ स्वामी । मानिक । ईरिण--सज्ञा पुं० [सं०] वलुप्रा मैदान । ऊसर जमीन । उ०-- जो सवते हित मोकहे की ज १, ईश देवा करिके वरु ईरिण-वि० [सं०] ऊमर [को०]। दीजत ।-राम वद्र०, पृ० १६१ । २. राजा । ३ ईश्वर । ईरत -वि० [म०] प्रेपित्र | प्रेरित । उ०-ऊधौ विधि ईरित भई परमेश्वर । ४ महादेव । शिव ! रुद्र । उ०--वई वैदर हैं है मग कीरति, लही रति जसोदा सुत पाय नि परस की 1 मव' केशव ईश ते वदन वा अति पाई |--रामच, पृ० १६१ घनानद, पृ० २०२ । २ कहा हुअा (को०)। ३ काँपता हुमा । यौ०--ईशकोण । हिलता हुनता हु प्रा (को०] । ४ गया हुआ । गत [को०)। | ५ ग्यारह की मTI । ६ श्राद्र नन। ७ एक वनिपद् ईर्म-वि० [सं०] १ क्षुब्ध । २ निर तर गतिशील । ३ उत्तेजित जो शुक् न यजुर्वेद की वाजपनधि शाखा के अंतर्गत है । इ १ का | करनेवाला (को०]। पहला मत्र ‘ईश' शब्द से प्रारंभ होना है। ईशावाम्म उनि । ईर्म-संज्ञा पुं० १ वाहु । २ व्रण ! फोडा (को०] । यौ० - देवेश । नरेश । वागीश । सुरेश । ईर्या--सज्ञा स्त्री॰ [मं०] यनियो की भाँति भ्रमण करना (को०] । | ६ पारद । पारा । ईयसमिति-सज्ञा पु० [म०] जैन मतानुसार साढ़े तीन हाथ तक अगे। ईश--वि० १ ऐश्वर्यशाली 1 २ मामर्थ्यवान् [को०] । देखकर चलने का नियम । यह नियम इम कारण रखा गया है। ईशकोण -सज्ञा पुं० [सं०] उत्तर और पूर्व का कोनी [को०] । कि जिसमे आगे पडनेवाले कीड़े फतिगे दिखाई पड़े। ईशता--सद्मा जी० [सं०] म्वामित्व । प्रभुत्व ।। ईशत्व--संज्ञा पुं० [म०] ईश्वरत्वे । स्वामित्व । प्रभुत्व । उ०-- ईर्वारु-सज्ञा पुं० [सं०] ककडी को ।। उस सृस्टिकर्ता ईश का ईशत्व क्या हममे नही --मारत, ईर्षणा--संज्ञा स्त्री० [सं० इयण] ईष्य । हसद । डहि । उ०--- पृ० १५५ । पर की पुण्य अधिक लखि सोई । तब ईर्षणा मन मे होई ।--- ईशदगरी---मज्ञा स्त्री॰ [सं०] काशी (को०] । विधाम ( शब्द०)। ईशपुरी---सच्चा स्त्री० [सं०] दे॰ 'ईशन गरी' (को०] । ईष--संज्ञा स्त्री० [सं०] [ वि० ईर्षालु, ईषित, ईषु 1 दूसरे की बढती । ईशवल-सज्ञा पुं० [म०] पाशुपत नामक प्रस्न [को०] । देखकर होनेवाली जलन । डाह । हुसद । उ0--तजि द्वेष ईर्षा । द्रोह निंदा देश उन्नति सव चहैं।--भारतेंदु ग्र०, भा० १, ईशसख–सच्चा पु० [१०] कुवेर (को०] । पृ० ५१४ । ईशा-सझा स्त्री॰ [सं०] १ ऐश्वर्य । २ ऐश्वर्यसपन्न स्त्री । ३ दु । ईर्षारति--संज्ञा पुं० [सं०] प्रर्धनपु सक व्यक्ति [को०] । ईशान-सच्चा पु० [सं०] [स्त्री॰ ईशानी] १ स्वामी । अधिाति । ईर्षालु---वि० [सं०] ईर्षा करनेवाला। दूसरे की वढती देखकर जलने प्रभु । २ शिव । महादेव । रुद्र । ३ ग्यारह की सखया । ४. वाला। दूसरे के उत्कर्ष से दुखी होनेवाला । ग्यारह रुद्रो मे से एक । ५ शिव की माठ मूतियों में से एक । ईर्षापड-सच्चा पु० [सं० ईर्षापण्ड] एक प्रकार का अर्ध वपु सक व्यक्ति । सूर्य । ६ पूरव और उत्तर के बीच का होना । ७ प्रार्द्रा नक्षत्र | हिरसी टट्टू । । (को०)। ८ प्रकाश । ज्योति (को०)। ६ शमी वृक्ष (को॰) । पत- वि० [सं०] जिससे ईष की गई हो। ईशनि'-वि० १ शास्ता। शामक । २ ऐश्वर्यशानी । ३. सपन्न (को॰] । ई-वि० [सं०] टाह करनेवाला । ईपलु । ईशान-सच्ची स्त्री० [सं० ]१ दुर्गा। २ सेमल का वृक्ष [को०] ।