पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

टपका लेते हैं, जो ईयर कहलाता है । यह बहुत ध्र जनने- ईप्सु--वि० [सं०] चाहनेवाला । वाछा करनेवाला । वाला पदार्थ हैं । खुला रखा रहने से यह बहुत जल्द उड ईफाय-सज्ञा पुं० [अ० ईफाय] वचनपानन ! वचन पूरा फरना । जाता है और वहुत शीत पैदा करती है, इसलिये बुरफ जमाने ईफायडिगरी--सज्ञा स्त्री० [अ० ईफाय +झ ० दिगरी) हिंगरी में काम आता है। रामायनिक क्रियाओं में इससे धडे वडे कार्य रुपया अदा कर देना । जर हिंगरी वैवाक कर देना। होते हैं। सुवने से यह थोडी बेहोशी पैदा करता है तथा ईफायवादी-सज्ञा पुं० [अ०ईफाय + फा०ए० चादह] १५ । बलोरोफार्म की जगह भी काम में लाया जाता है । यह जरमनी वादे को निभाना [को०] । में बहुत ज्यादा बनता है। ईवीसीवी(५)--संज्ञा स्त्री० [अनुध्व०] मिसकारों का ब्दि । 'मी ईद- सझा स्त्री० [अ०] मुसलमानो का एक त्योहार । रमजान महीने शब्द जो मंभोग के अत्यंत अद के समय मुह मे निकन्नता मे तीस दिन रोजा ( व्रत ) रखने के बाद जिस दिन दूजे की ३०--गुजरी बजावै रव रसना सजाव कर चुरी छमकार्व चाँद दिखाई पड़ता है, उसके दूसरे दिन यह त्यौहार मनाया गहति गहकि कै । मुख मोरि त्योरी तोरि मौहें नामिका में जाता है । उ० - ईद और नौरोज हैं सव दल के साथ । दिल देव ईवीसीबी बोल बोलति चहकि के -देव (शब्द०) ।। नहीं हाजिरा तो दुनियाँ हैं उजाडे । -शेर ०, भा० १, पृ०७३१। ईमन-सनी पु० [फा० यमन ]सतूर्ण जाति की एक रागिनी । ऐ महा-ईद की चाँद = दुर्लभ । कमें दृष्टिगोचर वस्तु या व्यक्ति। उ०-सा क्ररि लागि पिय सो रटप वम सुर गा ईद फी चाँद होना= बहुत कम दीख पहना । ईद मनाना ईमन !-मारतेंदु ग्रं ०, भा॰ २, २८८ । प्रसन्नता व्यक्त करना । ईमनकल्यान - संज्ञा पु० [हिं० ईपन+संकल्याण] एक मि ईद --सज्ञा पुं० [सं० ईन्दु] चद्रमा। इदु । उ०---हौं दरोग जो | राग का नाम । कहाँ ईद उग्गमे कुहु निमि ।--पृ० रा०, ६४ । २०४४। । | ईम--संज्ञा पुं० [अ० ईमान] दे० 'ईमान' । उ०--माँ की ईदगा--सज्ञा स्त्री॰ [फा० ईदगाह दे० 'ईदगाह' । उ०---वडी । मसत ईदगवानी -१० रू०, पृ० २८४ । | दुश्मने जानी हैं हमारा ।-मारतेंदु अ ०, ३१० १, पृ० ५, | ईमा--सज्ञा पुं० [अ०]१ इशारा । मकेत । देश । हुक्म । २ । ईदगाह सच्ची सी० [अ० ईद + फा० गाह] वह स्थान जहाँ मुसलमान | ईद के दिन इकट्ठे होकर नमाज पढते हैं ।। | तात्पर्य (को०] । ईदिया- सज्ञा पुं० [अ० ईदियह ] दे॰ 'ईदी' [को० ।। ईमान--संज्ञा पुं० [अ०] १ विश्वास । अम्थिा । ग्रास्तिक बु" उ०-दादू दिन अरवाह का सो अपना ईमान । सोई स। ईदी - सच्चा स्त्री० [अ०] १ त्यौहार के दिन दी हूई सौगात या राखिए जहें देखइ रहिमान 1-दादू (शब्द०) । तोहफा । २ किसी त्योहार की प्रशंसा से बनाई हुई कविता क्रि० प्र०-लानः = विश्वास या अास्था रखना । जैसे--- जो मौलवी लोग उस त्यौहार के दिन अपने शिष्यो को देते हैं। ३ वह बेलबूटेदार कागज जिसपर यह कविता लिखकर दी कहते हैं कि ईसा पर ईमान लामो । जाती है । ४ वह दक्षिणा जो इस कविता के उपलक्ष्य में २. चित्त की सद्वृत्ति । अच्छी नीयत । घमें मत्य । जैसे मौलवियो को शिघ्य देते हैं। ५ न किरो या लडको को त्यौहार | (क) ईमान से कहना, झूठ मत बोलना । () ईमान ही। के खर्च के लिये दिया हुआ रुपया पैसा ! (मुसलमान) । कुछ है, उसे चार पैसे के लिये मत छोडो । (ग) यह तो ईभ ईदुज्जुहा----सज्ञा स्त्री० [अ० ईदुज्जुहह, मुसलमानो का एक मुख्य की बात नहीं है । क्रि० प्र०-खोना। --छो इना। -- दिगनई । --इन त्यौहार जिसमे मॅड, वकरी अादि की कुर्बानी होती है। --डोलना।–डोलाना। देकरीद (को॰] । ईदुलफितर--सझा स्त्री० [अ० ईदुलफित्र] ३० ईद' ।। मुहा०--ईमान को कहना= सच कहना । न्याय की बात ५८ ईदश- क्रि० वि० [सं०] [जी० ईदृशी] इस प्रकार । इस तरह । ईमान जाना = नीयत बिगड़ना । 20-उधर है जेल की है इस भाँति । ऐसे ।। इधर है कौम की लानत । उधर शाराम जाता है इधर ६ । जाता है ।-कविता कौ०, भा० ४, पृ० ६५५ । ईमान , ईदश-वि० इस प्रकार का । ऐमा ।। न होना = धर्म मात्र दृढ न रहना । ईमान देना= ३त्य छोइन ईद्रीजीत -वि० [हिं० इंद्रजीत दे० 'इद्रियजित्' । उ०—मुज़ धर्म विरुद्ध कार्य करना । ईमान में फर्क ना = धर्म भार | को ग्राडबै दबजर कोपिन। ईस विध जोगी इंद्रजीत ।---- ह्रास होना । नीयत बिगडना । ईमान लाना = दृढ़ विश्व | रामानंद०, पृ० ४६ ।। करना । ईमान से कहना= सच सच कहना। ईप्सन-मज्ञा पुं॰ [सं०] प्राप्त करने की अभिनाफा करना [को०) ।। ईप्सा-मंज्ञा स्त्री० [सं०] [वि॰ ईप्सित, ईप्सु] १ इच्छा ! बाछो । अE ईमानदार---वि० [अ० ईमान +फा० दार] १. पिरान करने २ विश्वासपात्र । जैसे---ईमानदार नोकर । ३ सरु । । लाप । १०-मान कर भी, सभी ईस्सा, सभी कक्षा, जगते की उपलव्धियाँ सच हैं लुभानी भ्राति ।-हरीधाम, पृ० १३ । दियानतदार । जो लेनदेन या व्यवहार में सच्चा हो । ५ ।। २ प्राप्ति की इच्छा ।। का पक्षपाती ।। ईप्सित-- वि० [स०] चाहा हु। अमिलपित । ३०--(क) अब . ईमानदारी–संज्ञा स्त्री० [अ० ईमान +फ दारी] १ ईमान अपनी नौका ईप्सित घाट पर आई !---प्रेमघन॰, भा० २, स्विति । ईमानदार होने का भाव । २ न्यनिष्ठ । दिम् । १० ११८ ! (३) सारे श्रम उसको फूलों के हार से लगते हैं। दारी कौ० ।। जो पाता ईप्मित वस्तु को |--करुणा, पृ० १४ । ईर--सज्ञा पौ० [हिं०] दे॰ 'ई' ।