पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५८८

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इष्टदेव ५२१ इसमाईल इष्टदेव-संज्ञा पुं० [सं०] अराध्यदेव । पूज्यदेवा । वह देवता जिनको इसकदर–संज्ञा पुं० [यू० इस्कंदर ] सिकदर वादशाह । अलेजेंडर । पूजा से कामना सिद्ध होती हो । कुलदेवता । उ०-लहै बडाई उ०-नगे अमोल असे पाँचो मान समुद वह दीन्ह । इपकदर देवता इष्टदेव जव होइ । —तुलसी ग्र०, पृ० १२९ । नहिं पाई जोरे समुद जय लीन [--जायसी (शब्द॰) । इष्टदेवता--संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'इष्टदेव' ।। इसकपु-संज्ञा पुं० [अ० इश्क ] ३० 'इश्क' । ३०-याकी करि करि इष्टा- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] प्रिया । प्रेमिका [को॰] । जतन अति अतन तपन अति ताप । गजय हियै समझ्यौ न तव इष्टापत्ति—संज्ञा स्त्री० [सं०] वादो के कयन में प्रतिवादी की दिखाई। अजव इसक संताप [--स० सप्तक, पृ० ३७७ ।। हुई ऐसी शरत्ति जो उक्त कथन में किसी प्रकार का व्याघात इसतरीय-सज्ञा स्त्री॰ [सं० स्रो, हिं० इली] दे॰ 'स्त्री' । उ०-नारि या अतर न डाल सके और जिसे अनुकून होने से वादी स्वीकार पुरुप की इमतरी पुरुप नारि का पूत । --सत्राणी०, भा० १, कर ले । जैसे, वादी ने कहा-जीव ब्रह्म है । प्रतिवादी ने पृ० ५९ । कहा—तो ब्रह्म भी जगत की झूठी कल्पना करके झा हुआ। इसनान -सज्ञा पु० [सं० स्नान, हि० असतान] २० 'स्नान' । उ०वादी–हो, इससे क्या हानि ।। बार वार स्वान जेऊ गगा इसनान करे न कृव देव होन में इष्टापूर्त--सज्ञा पुं० [स०] अग्निहोत्र करना, कुप्राँ, ना नाव खुदाना, प्रज्ञान है ।-सुदर ० (जी०) भा० १, पृ० १० १ ।। बगीची लगवाना अादि शु म कर्म । इसपज-सज्ञा पुं० [अ० स्पज] समुद्र में एक प्रकार के अत्यंत छोटे विशेप-वेद का पठन Tठन, अनियिमत्कार और अग्निहोत्र इष्ट कीड) के योग में बना हुग्री मुलायम रुई की तरह का में जीव कहनाते हैं, और कुम, तालाब खुदाना, देव मंदिर बनाना, पिंड जिल ने बहुत से छेद होते हैं, जिनमें से होकर पानी वगीचा लगाना अादि कई इटान कराते हैं । बडे बडे प्राता है । मुर्दा बादल । अत्र मुर्दा । यज्ञों के वद होने पर इटाउत का प्रचार अधिकता से हुआ है ।। विशेष---इसपज भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं । इन की सृष्टि दो इष्टापूत्ति-मज्ञा पुं० [सं०] १ 'इष्टापूर्त' । २ काम्य या वाछिने की प्रकार से होती है-एक तो सरि माग द्वारा और दूसरे रज कीट मिद्धि या उपनधि ।। और वीर्य कीट के संयोग से । इसकी वादामी रंग की, रुई के । समान मुलायम ठठरी जिसमे वहुत से छेद होते हैं, बाजारों में इष्टि--मज्ञा स्त्री० [स०] १ इच्छा । अमिलापा । २ व्याकरण मे इमपज के नाम से विक्री है । इसमे पानी सोखने की वडो भाष्कार की ब3 में प्रति जिपके विषय मे सूत्रकार ने कुछ न शक्ति होती है, इसी से लड के इसमे स्लेट पोछने और डाक्टर निखा हो। व्याकरण का वह नियम जो मूत्र और वातक में लोग घाव पर का खून ग्रादि सुखाते हैं । पानी सोखने पर यह न हो । ३ यज्ञ ।४ हवि । ५ प्राप्ति तथा मिद्धि के निमित्त | होनेवाला प्रयत्न । ६ निवेदन ! ७ निमश्रण (को॰) । खूब मुलायम होकर फूल जाता है । इष्टिका सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'इष्टको' [को०] ।। इसपात--सज्ञा पुं० [सं० प्रयत्पत्र अथवा पुर्त० स्पेड] एक प्रकार का इष्टिपच–संज्ञा पुं० [म०] १ कृण । कजूम। र असुर [को॰] । कार्वन मिश्रित कडा लोहा । फौलाद । इष्टिपशु-सज्ञा पुं० [नं०] यज्ञ में बन दिया जानेवाला पशु [को०]। इसपिरिट --संज्ञा स्त्री० [अ० स्पिरिट] १ किसी प्रकार का सन । इष्टी-वि० [सं० इष्टिन्] इष्टसिद्धि करनेवाला । उ०-इष्टी स्वाँगी २. एक प्रकार का खालिस शराब । वहु मिने हिरमी मिने अनत ।मतवाणी०, ०१, पृ०१२४। इसपेशल?--वि० [अ० स्पेशल] विशेर । खास । इप्टु-सज्ञा स्त्री० [मु०] इच्छा । अभिलाषा (को०] । | इसपेशल-मी० नियत समयो पर चलनेवा नी मबारी गाडो (रेन, इष्म-वि० [सं०] इच्छुक कौ] । मोटर आदि ) के अतिरिक्त विशेष गाडी जो हनी विशेष इम’---सज्ञा पुं० १. कामदेव । २ बमत ऋतु । ३ गमन [को०] । अबसर पर या किसी विशेष व्यक्ति की यात्रा के लिये छोड़ी इष्य–सज्ञा पुं० [सं०] वमत ऋतु।। जाती हैं। इष्व-सज्ञा पुं॰ [म०] अध्यात्म की शिक्षा देने वाला गुरु (को॰] । इसवगोल--संज्ञा पुं० [फा० इस्पगगोल, इस्पगोल] चिकित्सा कार्य में इष्वनोक--सज्ञा पुं० [सं०] वाण की अनी । तीर की नोक (को०)। प्रयुक्त एक झाडी या पौधा । इष्वसन-सज्ञा पुं० [सं०] धनुप को० । विशेप-यह फारस मै व इत होता है। पजाव और मि में भी इष्वस्त्र-मैज्ञा पुं० [भ] दे॰ 'इन्वसन' [को॰] । इमकी झाडि । लगाई जाती हैं । इममे तिन के आकार के इवास-मज्ञा पुं० [म०] १. वणि बुलाना । २ घनुप । ३ धनुर्धर । वीज लगते हैं जो भूरे और गु नदी होते हैं। यूनानी चिकित्सा | ४ योद्धा [को०]। में इसका व्यवहार अधिक है। यह शीतन, बद्ध कारक प्रौर इस- मर्व० [ ई० एप 1 सर्वनाम 'यह' शब्द का विभक्ति के पहले रक्तातिमारनाशक है । यह ववागीर, नकसीर ग्रादि रक्तस्राव ग्रादिष्ट रूप जो समय, स्थान प्रादि के अनुपार समोर, की बीमारियों में बहुत फापदा करता है। प्रति शेर और नू नाक प्रसग के अनुसार प्रस्तुत अौर उल्लेख के अनुसार कुछ ही पहले में भी दिया जाता है । प्रयुक्त होता है ।। विशेप --जव 'वह' शब्द में विभक्ति लगानी होती है, तब उसे इसम ---मज्ञा पुं॰ [ग्रे० इम्म २० ‘इन’ ! --पु म । नप इनम अँगाली हमेशा [--दक्खिनी०, पृ० १११ । | ‘इस' कर देते है । जैसे,—इमने, इसको, इससे, इममे ।। इसमाईल-सज्ञा पुं० [इव०] १. इब्राहीम का बेटा जो हाजिरी ६६