पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

"इलेक्ट्रो ५१६ इलेक्ट्रो-सज्ञा पु० तसवीर अादि का वह ठप्पा या ब्लाक जो विज नी इल्ला---अव्य० [अ० इल्लह] किनु । लेकिन । पर। उ०—-इन, की सहायता से तैयार किया गया हो । अब जब कि हम दोनों एक तीसरे की रिअाया है। प्रेमघन॰, यौ०-इलेक्ट्रो टाइप == बिजली द्वारा किया जानेवाला अंकन या भा० २, पृ० ८६ ।। खुदाई की कायं । इलैयट्रोपेथी = विजली के तर गस चार द्वार। इल्लिश, इल्लिस-मज्ञा पुं० [सं०] इली । हिलमा मछ। को॰) । | किसी रोग की चिकित्सा करने की प्रक्रिया । इल्ली--सज्ञा स्त्री॰ [स० इल्लिका नोट आदि के बच्चो का वह इलेक्ट्रोन-- संज्ञा पुं० [अ०] परमाणु (ऐटम) का अवयव जो उसके | पहला हप जो अडे में निकलने के उपर तुरत होता है । नाभिक (न्यूक्लियस) का चक्कर लगाता रहता है और जिसमें इल्वल-मज्ञा पुं० [म०] १ एक दैत्य या प्रमुर का नाम । विद्युत को ऋणावेश होता है । विशेष--इसका एक नाम अनादि भी था । यह अपने छोटे भाई इल्जाम--सज्ञा पुं० [अ० इल्जाम] अारोप । दोषारोपण ! उ०-: वातापि को भेडा बनाकर ब्राह्मणों को खिला देता प्रौर फिर इल्जामें यह रखा है खिलवत में कहीं होता।-- मोर०, भा० उसका नाम लेकर बुलाता था। तव बहू ब्राह्मण का पेट १, पृ० ६६५ । फाड़कर निकल पाता था । इन दोनों को अगस्त्य मुनि पाकर क्रि० प्र०---देना |---लगाना । पच गए थे। इल्तजा--- सज्ञा स्त्री० [अ० इल्तिजह] दे० 'इल्तिजा' । उ०--कहीं वह २ ईल या वाम मछली । के मिटा दे न इन्तजार का लुत्फ । कहीं कब न न हो जाय इल्वला--मज्ञा पुं० [सं०] मृगशिरा नक्षत्र के सिर पर रहने वाले पाँच इल्तजा मेरी ।--शेर ०, भा० १, पृ० ५४५ । तारो कः ममूह ।। इल्तमाम--संज्ञा स्त्री० [अ० इल्तिमास ] अनुरोध । प्रार्थना । उ०- इवे--अव्य० [सं०] उपमावाचक शब्द । समान । नाई। तर है। (क) मुबह तक शमा मर को धुनती रही । क्या पलगे ने सदृश । तुल्य । जैसे । उ0- निज अघ ममुझि न कछु कहि इल्तमाम किया।--कविता कौ०, भ१० ४, पृ० १७२ । (ख) जाई । तपै अवा इव उर अघिकाई ।--- मानस १ । ५८ । मेरी प्राप से यही इल्तमास है कि आप उसकी वजारत इवापार इवापोरेशन--संज्ञा पुं० [अ० इवेपोरेशन] गर मी पाकर किमी पदार्थ का भाप के रूप में परिवतित होना । माप वनकर उद भने । व वूल करें।-मान०, भा० १, पृ० १८७ । इल्तिजा-- संज्ञा स्त्री० [अ० इतिजह, । १ निवेदन । प्रार्थना ।। बाप्पन । वाष्पीभवन । वाष्पीकरण । उच्छोपण ।। २ मिन्नत । खुशामद । इशरत--सज्ञा स्त्री॰ [अ॰] सुख । चैन । अाराम । भोग वि 'म । क्रि० प्र०—करना । उ०---फिर वह चचे हो फिर वही वाते । दिन हो इशरत के, इल्तिफात -संज्ञा स्त्री० [अ० इल्तिफात १ कृपा। दया । २ घ्यान । ऐश की रातें ।:-शेर०, भ० १ पृ० ३७७ ।। देना [को०] । यौ०-ऐश व इशरत । इल्तिवास---मैज्ञा पुं० [अ०] समानता । सादृश्य [को०] । इशरती--वि० [ अ० इशरत+ई ( प्रत्य० ) ] ग्रामन्च । इल्तिवा--सज्ञा पुं० [अ०] [वि० मुल्तवी किसी कार्य के लिये स्यिर विलासी । ---इशरती घर की मुब्त्रत का मज़ों मून समय का देल जाना। तारीख टलना । गए |--कविता कौ०, भा० ४, पृ० ६३३ । विशेप- -इम शब्द का प्रयोग अदालती कार्रवाइयों में अधिक । इशा-सजा जी० [अ०]१ सध्या । २ रात । ३ रात की नमाज [को०)। होता है। इशारत–संज्ञा स्त्री० [अ०] इशारसकेत । उ०—ने मुझसे बोला इल्म-- ज्ञा पुं० [अ० ] [वि० इल्मी] विद्या । ज्ञान । जानकारी । न की इमारत ने दी तसल्ली में कुछ समाला -कविता को०, उ.-इत्म और दौलत जहाँ से मिले हासिल करनी भा० ४, पृ० ३२५ । चाहिए ! --श्रीनिवाम ग्र०, पृ० १२४ । इशारा----संज्ञा पुं० [अ० इशारह] १ सैन । सुकैत । चेष्ट्री । उ०---- यी० --इल्मेदव= साहित्यशास्त्र। इल्मेइलाही = ब्रह्मविद्या, अध्या यू* अखि उनकी करके इशारा पलट गई। गोया कि लव से म । इल्मे गैब = परोक्ष विज्ञान । इल्मेनुजम = ज्योतिष विज्ञान । होके कुछ इर्शाद रह गया |--कविता कौ०, भा० ४, १० इल्लत---संज्ञा स्त्री० [अ०] १ रोग । बीमारी। २ बाधा। झझट । ५४८ । २. संक्षिप्त कथन । उ०--जो इशारे मैं वाम हो गक्ता जैसे,--बुरी इल्लत पीछे लगी । ३ लत । व्यसन । उ०— तो मुझको इतने बढ़ाकर कहने में क्या नाम !•••श्रीनिवास पाप के बढ़ते दिल टूटे इन्लत की महज लत छुटे ।---बेला, | अ ०, १० २७२ । ३ बारीक महारा। सूदम अम्रिरि । जैसे, १० ७६ । ४ दोप। अपराध । जैसे,---वह किस इल्लत मे एक लकड़ी के इशारे पर यह नदूक ऊपर टिका है । ४ गुप्त गिरफ्तार हुआ था । प्रेरणा । जैसे,-- -इन्ही के इशारे ने इसने यह काम किया । महा० -इल्लत पालना = बुरी आदत डाल लेना। यी० - इशारेबाजी = इशारा करना । यौ० --इल्लत साफताव = कमल रोग । इल्लत फाइती = निमित्त इशारात--+-सज्ञा पु० इशारा का बहुवचन दे ईशा'। ३००-.-या कारण । इल्लत माह = उपादान कारण । वात कोई उस बुते ऐयार की ममझे । वाले है जो इमने तो इल्लल -सज्ञा पुं॰ [ स०] एक पक्षी को॰] । इगात कहीं ग्रौर •-- कविता को भा० १, पृ० २२३ । इल्ला'---संज्ञा पुं० [सं० कोल] छोटी कडी फुमी जो चमडे के ऊपर इशिका, इशीका --सज्ञा सी० [१०] ३० पोका' । निकलती है। मई मसे के समान होती है। इश्क-संज्ञा पुं० [अ० इश्क][वि० अाशिक, माक] मयत । चा ।