पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५८३

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इमरतोदार ईरशाद इमरतीदार--- वि० [हिं० इमरती+फा० दार ( प्रत्य० )] जिसमें इमोशन--संज्ञा पुं० [अ० ] १. संवेग ( मनोवै०)। २ भाव । इमरती की मति गोल गोल घेरे या वल पडे हो। जैसे,-- मनोविकार । उ०—अँगरेजी मे भाव को इमोशन और फारसी इमरतीदार कंगन । मे जजवा कहते हैं !-रस क०, पृ० ३९ । इमरित--सक्षा पु० [स० अमृत दे० 'अमृत']। उ०—लडिका वाका इम्तहान--संज्ञा पुं० [अ०] परीक्षा । जाँच । ‘इम्तिहान' । उ०-~ महा हरामी इमरित में विप घोर ।---पलटू०, भा० ३,पृ०५४॥ साफ कव इम्तहान लेते हैं। वह तो दम दे के जान लेते हैं 1इमली-सी पुं० [अ० इमलाह,] १ वर्तनी। शुद्ध लिखावट । २ शेर०, भा० १, १ ० ६७२।। | वताई हुई इबारत को सही लिखना [को०] । इम्तिनाई- वि० [अ०] रोक लगानेवाला [को०] । यौ०--इमलानवीस = वर्तनी के अनुसार या शुद्ध लिखनेवाला। इम्तिनाय--सज्ञा पु० [अ०] निपेघ । रोग मनाही (को०] । इमलाक-संज्ञा स्त्री० [अ० मुल्क का बहु० ० सपत्ति । जायदाद इम्तियाज-सज्ञा पुं० [अ० इन्तियाज़] १, भेद । ऋतर । २ विवेक । को । - गुण दोष की पहचान । उ०—देख इकवार चश्म अपना करके इमली--सद्मा जी० [ स० अम्ल+हि० ई ( प्रत्य॰)] १. एक वडा वाज । गर तुजे किस बात का हैं इम्तियाज -दक्खिनीo, पेड़ जिसकी पत्तियाँ बहुत छोटी छोटी होती हैं और सदा हरी । पृ० २०४। रहती है। इसमें लदो लवी फलियाँ लगती हैं जिनके ऊपर इम्तिहान--सज्ञा पुं० [ga1 १ दे० 'Pr इम्तिहान--सज्ञा पुं० [अ०] १ दे० 'इम्तहान' । २ परख (को॰) । पता पर कटा छिलका होता है । छिलके के भीतर खुट्टा गूदा इम्पीरियल--वि० [अ०] साम्राज्य या सम्राट् सबंधी। राजकीय । होता है जो पकने पर लाल और कुछ मीठा हो जाता है। शाही । जैसे,--इम्पीरियल सविस = राजकीय नौकरी । २ इस पेड़ की फली ।। इम्पीरियलगवर्नमेट-~-सज्ञा स्त्री० [अ०] साम्राज्य सरकार । बडी महा०—-इमली घोंटना= विवाह के समय लडके या लड़की का सरकार । जैसे,—'भारत में अंग्रेजी सरकार को भी इपीरियल मामा उसको अाम्रपल्लव दांत से खोटाता है और ययाशक्ति गबर्नमेट अर्थात् वडी सरकार कहते थे । कछ दक्षिणा भी वाँटता है । इसी रीति को 'इमली घोटना इम्पीरियल फरेन्स-संज्ञा पुं० [अ० इम्पीरिल प्रफरेंस साम्राज्य की कहते हैं। वस्तुओं पर उसके अधीनस्थ देश में इप प्रकार अायात निर्यातकर इमसाक-सज्ञा पुं० [अ० इम्सक] १ रुकावट । २. कर्पण । वेठाने की नीति जिससे वह दूसरे देशो के मुकाबले मे सस्ता खिचाव । ३. कजूसी को०] । माल बेच सके । साम्राज्य की बनी वस्तु प्रो को प्रशस्तता देना। इमसाल--सज्ञा पुं० [फा० इम्साल] इस वर्षे [को०] । इम्पीरियल सर्विस टू प्स-सज्ञा स्त्री० [अ० ] अग्रेजी शासनकाल में इमाम--संज्ञा पुं० [अ०] [वि० इमामी] १ अगुअ । २. पुरोहित । वह सेना जो भारत के देशी रजवाड़े भारत सरकार के सहायमुसलमानों के धार्मिक कृत्य करानेवाला मनुष्य । ३ अली के तार्थ अपने यहाँ रखते थे और जिमकी देखभाल ब्रिटिश अफसर बेटो की उपाधि । ४ मुसलमानो की तसवीह या भाला का । करते थे । अपित्काल में सरकार इस सेना से काम लेती थी। मुमेर। इम्पोर्ट---सज्ञा पुं० [अ०] पुं० आयात' । जैसे,—इम्पोर्ट ड्यूटी = इमामजिस्ता--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'इमामदस्ता' । उ०--यह तन आयातकर । कीज इम। मजिस्ता खमीर सवै करि डारिया रे ।-स० दरिया), इम्रितG----सज्ञी पु० [स० अमृत] दे॰ 'अमृत' । । पृ० ६६ ।। इयत्----वि० [सं०] इतने विस्तारवाला । इतना वडा [को०]। । इमामत- सच्चा स्त्री० [अ०] इमाम का पद । पेशवाई (को०]।। इयत्ता---सज्ञा स्त्री० [सं०] सीमा । हृद। परिमिति । उ०—तूने अपने इमामदस्ता-सज्ञा पुं॰ [फा० हावन+दस्तह] एक प्रकार का लोहे या ज्ञान की इयत्ता का खूब अच्छा प्रमाण दिया • कालिदास, पीतल का स्वल वेट्टी । पृ० ६७ ।। इमामा--सद्मा पु० [अ० अम्मामह] एक प्रकार की वही पगडी।। इयारपु¥----सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'यार' । उ०—जग मे जीवन थोरा अमामा । योरा वो इयार जी ।-स० दरिया, पृ० १६८ । इमामवाडा-- सझा पु० [अ० इमाम +फto बारह, हि० वाडा ] वह इरखा -संज्ञा स्त्री० [हिं०]३० ‘इप' । उ०-सौतिन्ह कर इरखा हाता जिसमें शीया लोग ताजिया रखते और उसे दफन करते है। नहि करना । साई सग मदा जिय हरना । -चित्रा०, पृ०२२४॥ इमारत--सद्धवा स्त्री० [अ०] १ वडा और पक्की मकान । २ । | इरखाना-- -क्रि० प्र० [सं० ईर्ष्या] ईर्ष्या करना । डाह करना। उ०वैभव । शानशौकत । उ०—आप मे हिंदोस्तानी इमारत पूरे उनीदति अलसाति सोवत सुधीर चौंकि चाहिं चित श्रमित सगर्व तौर पर मौजूद है --प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ६१ । इरखानि है ।--भिखारी० ग्र0, मा० १, पृ० १४१ । इमारती- वि० [फा०] मकान का मकान से सबधित । जैसे,-- इण----सज्ञा पुं० [सं०] मरुभूमि । मरुस्यन (को॰] । | इमारती मामान । इरम्मद-वि० [म०] १ पीने में रुचि रखनेवाला । २ अग्नि का इमि (-क्रि० वि० [स० एवम्] इस प्रकार । इस तरह । ऐसे । उ० विशेपण (को०] । हाहि प्रेम वम लोग इमि राम जहाँ जहँ जाहि ।—मानस, इरम्मद --संज्ञा पुं० १. मेघज्योति । विद्युत । २.वडवाग्नि (को॰] । २।१२१।। इरशाद-सृज्ञा पुं० [अ०इर्शाद] दे॰ 'इर्याद' । उ०-वेखते ही मुझे महफिल