पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५७५

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ईज्जतदार हैत विगाह देते हैं ।--रखना = मर्यादा स्थिर रखना। बेइज्जती इठे-क्रि० वि० [म० इथे, प्रा० इढ, इर] यहाँ । इम शोर । इधर । न होने देना । जैसे,—इस समय १००) देकर अपने हमारी उ०—सरचे इठे इठे ।—भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० ५५ । इज्जत रख ली ।—लेना = इज्जत विगाडना ।—होना= इड- सवा पुं० [मं०] अग्नि [को०] ।। अादर होना । जैसे,—उनकी चारो तरफ इज्जत होती है । इहरहर--सी पुं० [हिं०] दे० 'इडहर'। ३०---वने अनेक अन्न यौ०—इज्जतदार । पकवाना । बरिन इडरहर म्वादु महाना 1-7घुराज (शब्द०)। इज्जतदार-वि० [अ० इज्जत +फto दार (प्रत्य) ] प्रतिष्ठित । इडविडा--सज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार की च करी। २ बकरी की | माननीय ।। तरह मेमियाने की क्रिया [को०)। इज्जल-संज्ञा पुं॰ [सं०] हिज्जल नामक वृक्ष जो जलाशय के समीप इडा-सा स्त्री० [सं०] १ पृथिवी। भूमि । २. गाय । ३. वाणी । अधिक होता है किो] । ४ अनवरत प्रार्थना । *तुति । ५. एफ यज्ञपात्र । ६. इज्तिराब-सज्ञा स्त्री० [अ० इज्तिराव] दे० 'इजतिराव' [को०] । अाहुति, जो प्रयाजा और अनुयाजों के बीच दी जाती है । ७ इज्या--सझा ० [सं०] १. यज्ञ । २ देवपूजा ! एक प्रकार का अप्रिय देवता जो अमोमपा है । ८ अन्न । इट--सच्चा पु० [सं०] १ वैत । २, तृण । ३ तृण या वैत का बना। हवि । ६ नमदेवता । १० दुग। अधिक। ११ पार्वती । | स्तरण । चटाई (को०] । १२ कश्यप ऋषि की एक पत्नी जो दष्ट, की पुत्री थी। इटली–संज्ञा पुं० [अ०] यूरोप के दक्षिण का एक देश । १३ वसुदेव की एक स्त्री । १४ मनु या इक्ष्वाकु की पुत्री, इटसून--सज्ञा पुं० [सं०] घटाई । अास्तरण (को०] । जो बुध की स्त्री थी, जिसमें पुरुवा उत्पन्न हुआ था। इसे इटालिक-संज्ञा पुं॰ [अं०] दे॰ 'इटैलिक' ।। मैत्रावरुणी भी कहा जाता है । १५ ऋतध्वज रुद्र की स्त्री । इटालियन--सच्ची पु० [अ०] १ एक प्रकार का कपड़ा। १६ स्वर्ग । १७. एक नाडी जो बाई ओर है ।। विशेष—यह पहले पहल इटली से अाया था। यह किसी वृक्ष की विशेष---यह नाड़ी पीठ की रीढ़ से होकर नाक तक है। बाई छाल से बनता है और बहुत चमकीला होता है । इसका रग । साँस इसी से होकर आती जाती है । स्वरोदय मे चद्रमा प्राय काला होता है । इसका प्रधान देवता माना गया है। प्राचीनी के अनुसार यह २ इटली देशवासी व्यक्ति । प्रधान नाडी है । इटैलिक-सज्ञा पु० [अ०] एक प्रकार का छापा या टाइप जिसमे इडाचिका-~-सझा स्त्री॰ [म०] वरें। भिढ को०] । अक्षर तिरछे होते हैं। इडाजात--सा पुं० [सं०] एक सुगधित द्रव [को०] । इट्चर--सज्ञा पुं॰ [सं०] निद्वंद्व घूमनेवाला सोड या बैल [को०] । इडावान सज्ञा पु० [सं०] १ यज्ञान्न को खाने का अधिकारी । २ इठलाना-क्रि० अ० [ देश०] १ इतराना । ठसक दिखाना । उपाहार। जलपान (को०] । गर्वसत्रक चेष्टा करना । जैसे,—-क्षुद मनुष्य थोडे में ही इडिका--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] पृथिबी । धरती (को०] । इठलाने लगते हैं । २ मटकना । नखरा करना। उ०- पाइ इडिक्क-सज्ञा पुं० [सं०] जगली बकरा (को॰] । परि तव पाई है न कैसे हूँ, थोर इठलात वे तो अति इडुरसज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'इट्चर' (को०] । इठलात हैं ।--केशव ( शब्द० ) ३. छकाने के दिये जान इडहरसंज्ञा पुं० [देश॰] दे० 'इंडहर' । बुझकर अनजान वन ना । छकाने के लिये जान बूझकर किसी इडा—संज्ञा स्त्री॰ [सं० इडा] दे॰ 'इडा' । काम को देर में करना । जैसे,—(क) इठलाग्रो मत, वताप्रो । इण -सर्व० [सं० एनत, प्रा० एण, इण] ३० इम'। उ०—(क) किताब कहाँ छिपाई है । (ख) इठलामो मत जैसा कहते हैं, इण रुति साहिब ना चलइ, चलिइ तिके गिमार ।–ढोला०, वैसा करो। दू० २४६ । (ख) अावे इण भापा अमल, वयण सगाई इठलाहट-संज्ञा स्त्री० [हिं० इठलाना] इठलाने का भाव । ठसक । वेस ।—रघु० रु०, पृ० १२।। इठलाहटी--वि० [हिं० इठलाहट+ई (प्रत्य०)] इठलानेवाली। उसके। | इत–क्रि० वि०[म०] १ अत । इसलिये। २. यहाँ । ३ इन स्यान वाली । उ०—खरे अदब इठलाहटी, उर उपजीवति त्रासु । से । यहाँ से। ४ इधर । इस ओर । ५ इस समय से । दुसह सक विस को करे जैसे सोठि मिठामु -विहारी र०, अव से मो०] । | दो० ३६० । इठाई-सज्ञा स्त्री० [सं० इप्ट, पाइ+हि० प्राई(प्रत्य॰)] १ रुचि ।। इत पर—क्रि० वि० [सं०] १ इसके उपरात । इसके बाद । २ इतते पर। इस पर । चाह । प्रति । उ०--खारिक खात न दारी उदाखन माखन इत'७---क्रि० वि० [सं० इत] इधर । यहाँ । उ०—इतते उत टन हु' सह भेटि इठाई ।-केशव (शब्द०)। २ मित्रता । प्रेम । उतते इत रहु यम की साँट सवारी ----कबीर (शब्द०)। इठाना -क्रि० से. [ स० एपण या इषणि ] भेजना। पठाना । | यौ०–इत उत्त= इधर उधर । उ०—'भोजन करत चपल चित, उ०----चाह जीयै मिलन की सो तौ कहा जात रही, ग्यान ही इत उत अवसर पाई ।—मानस १।२०३ । (ख) इत उत वित इठावत है लॉयौ तु धिगानौ रे ।-- ज० ग्र0, पृ० १३२ । धेस्यौ मदिर मैं हरि को दरसन पायौ । —सूर०, १०॥४२२७ । इठिमिका--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] यजुर्वेद से संबद्ध काठक का एक विभाग इत+q---सभा स्त्री० [सं० इंति दे० 'ईति' । उ०—सातू इत से नई या अरा [को०] । सोक लगर, सुखी सगला लोक ।---रघु० ६०, पृ० १२२ ।