पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५७३

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इजति इचरज मिचि इचत ना ऐचि खेंची खिचत न तसबीर तसबीरगर घट या बीज के बिना वृक्ष इत्यादि का योगियो की इच्छा से उत्पन्न १।–पजनेस०, पृ० ७ ।। होना । इचरज-सज्ञा पुं० [हिं०] ६० अाश्चर्य' । उ०:--शिवसू उमग पूछे इच्छान्वित---वि० [सं०] लिप्सायुक्त [को०] । मगत, इचरज अत आदत यहै ।—२घु० रू०, पृ० ४५ । इच्छाफल—संज्ञा पुं॰ [सं०] किसी प्रश्न या समस्या का इच्छानुकूल इचिकिल—सच्चा पुं० [सं०] १ कीचड़े । २ तालावे या बावडी । ३. समाधान [को०] ।। दलदल [को॰] । इच्छाभेदी-वि० [सं०] इच्छानुसार विरेचन करानेवाला (ौषध) । इच्छुक--वि० [सं०] कामना या इच्छा करनेवाला । प्रक्रिया भेद से जिसके खाने से उतने ही दस्त ग्राएँ जितने इच्छक संज्ञा पुं० १ नारगी का वृक्ष । २ गणित मे जोडी हुई राशि की इच्छा हो । या सख्या । जोह (को०] । यौ ०.–इच्छाभेदी वटिका, इच्छाभेटी रस = दे० 'इच्छाभेदी' । इच्छाभोजन-मज्ञा पुं० [सं०] १ जिन जिन वस्तुओं की इच्छा हो, इच्छ इच्छ विनती जस जानी। पुनि कर जोरि ठाढ भइ रानी। उनको खाना ! रुचि के अनुसार भोजन । जैसे, आज हमें —जायसी (शब्द) । इच्छा भोजन कराग्रो । १ भोजन की वह सामग्री जिमे खाने इच्छा—सज्ञा स्त्री॰ [सं॰] १. एक मनोवृत्ति जो किसी ऐसी वस्तु की की इच्छा हो । रुचि के अनुसार खाद्य पदार्थ जैसे, इतने प्राप्ति की ओर ध्यान ले जाती है जिससे किसी प्रकार के सुख दिनो पर अाज हमे इच्छाभोजन मिला है । की संभावना होती है। कामना । लालसा । अमिलोपा । इच्छामय-वि० मि] रुचि के अनुकूल । जैमा चाहे वैसा । उ0-- चाह । ख्वाहिश ।। विशेष--वेदात और साक्ष्य में इच्छा को मन का धर्म माना है ।। इच्छामय नरवेप सँवारे ।----मानस, १५१५२। पर न्याय और वैशेपिक में इसे अात्मा (गुण) धर्म या । इच्छामरन--वि० [सं० इच्छा+मरण ] अपनी इच्छा के अनुकूल व्यापार माना गया है। जब चाहे तव मृत्यु प्राप्त करनेवाला । उ०—कामरूप इच्छा पर्या०—-आकाक्षा। वांछा । दोहद। स्पृहा । ईहा। लिप्सा ।। मरन ज्ञान विराग निधान !-मानस, ७॥११३ । | तृष्णा । रुचि । मनोरथ । कामना । अभिलाषा । इषा । छ। इच्छारूप-वि० [सं०] अपनी इच्छा के अनुकून जैसा चाहे रूप धारण यौ०-इच्छाघात । इच्छाचार। इच्छाचारी। इच्छानुकूल । इच्छा- करनेवाला । कामरूपे । उ०—चेहरे बदलने के कारण ही नुसार। इच्छापूर्वक । इच्छाधोधक । इच्छाभेदी । इच्छाभोजन । से गवत इन्हें इच्छारूप और कामचोरी कहा गया है ।—प्रा० इच्छावान्। इच्छावाचक । इच्छावसु । स्वेच्छा । ईश्वरेच्छा ।। भा० १०, पृ॰ ६ । २. माल की माँग ।। इच्छावसु-संज्ञा पुं० [सं०] कुवेर । विशेष—ाधुनिक अर्थशास्त्र में माँग या ‘डिभाड' शब्द का व्यव- । इच्छावसु-वि० अपनी आकाक्षा के अनुकूल जव चाहे जितना घने हार जिस अर्थ में होता है, उसी अर्थ में कौटिल्य ने 'इच्छा'का प्राप्त करनेवाला (को०] । प्रयोग किया है। उसने 'आयुधागाध्यक्ष अधिकरण में इच्छित–वि० [सं०] चाहा हु । वाछित [ अभिप्रेत । अभीष्ट । उ० लिखा है कि श्रायुधेश्वर अस्त्रो की इच्छा और बनाने के व्यय इच्छित फल की चाह दिलाती वल तुम्हे ।—करुणा, पृ० १४ । को सदा समझता रहे । इच्छु' –संज्ञा पुं० [सं० इक्षु] ईख । उ०-इच्छु रसहू ते है सरम ३. गणित में राशिक की दूसरी शक्ति। ४. तितिक्षा या चरनामृत औ लवण समुद्र है लोनाई निरबधि के --चरण इच्छा शक्ति के प्रकट होने की पूर्वावस्था । उ०——वह एक वृत्ति (शब्द०)। चक्र है जिसके अंतर्गत प्रत्यय, अनुभूति, इच्छा, गति या प्रवृत्ति, | इच्छु-वि० [सं०] चाहनेवाला । शरीरधर्म सबका योग रहता है ।—चिंतामणि, मा०, २, विशेष—इसका प्रयोग यौगिक शब्द बनाने में ही होता है, जैसे- पृ० ८८ । शुभेच्छु, हितेच्छु ।। इच्छाकृत-वि० [म०] अपनी इच्छा के अनुसार किया हुआ [को०] । इच्छुक–वि० [सं०] चाहनेवाला । अभिलाषी। आकाक्षायुक्त । इच्छाचारी वि० [सं० इच्छा+चारिन्] [वि॰ स्त्री० इच्छाचारिणी] इछना --क्रि०स० [हिं०] दे० 'इच्छना' । उ॰--छेल इछहि छोडह अपनी इच्छा के अनुकूल गति या मेमन करनेवाला । ३०-चले मोर भीर --विद्यापति, पृ० २०२।। गगन महि इच्छाचारी ।—मानस, ५॥३५ । इछापु—सज्ञा स्त्री० दिश०] दे० 'इच्छा' । उ०—शीतल जल के इछा इच्छादान-सज्ञा पुं० [सं०] किसी याचक की आकाक्षा परिपूर्ण भूमि (क) कक्कैशवा –वर्ण, पृ० १९ । | करना [को०] ।

  • इक्षु-वि० [सं० इच्छु] दे॰ 'इच्छुक' । उ०——धर्म तप्पन पार। न

इच्छानिवृत्ति-सज्ञा स्त्री० [म०] भोग-तृष्णा से विरक्ति। विराग [को०)। कोऊ दास रहै इछु ।—पृ० ०, २५1१७३ । इच्छानुसारिणो क्रियाशक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनशास्त्रानुसार योग इजति-संज्ञा स्त्री० [अ० इज्जत] दे० 'इज्जत'। उ०-ति पातमाह द्वारा प्राप्त एक शक्ति जिससे योगियो के इच्छानुसार कारण की इजति उमरावन की राखी रैया राव भावसिंह की रहति { । के विना कार्य की सिद्धि हो जाती है। जैसे,--मिट्टी के बिना है । मति राम अ ०, पृ० ३८६ ।