पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५७०

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फलस ५०३ इकोसे इकलसG-वि० [हिं०] १० इकरम'। उ०—'खड खड निज ना भया, इकसूत)---वि० [ म एकथति ( = लगातार ) या एकत्रित ] १। इकलस एक नूर ---दादू० वानी, पृ० १०३ ।। एक साथ । इकट्ठा । एकथे । उ०—देखि के निकसे दाऊ और इकला--वि० [हिं०] दे० 'अकेला'। जे सखियाँ हुती । ते सबै तुरत दौरी बाहरी ह्व इकभुती ।---- इकलाई १–मज्ञा स्त्री० [हिं० एक+लाई या लोई = पतं] एक पाट का गुमान (शब्द॰) । महीना दुपट्टा या चद्दर । उ०- क) अनिपाम आनन के फवन इकहरा- वि० [हिं०] [वि० सी० इकहरी] दे० 'एक हरा'। फवी है कैसी कु चित कुमुभी कोरदार इकलाई की --- | इकाइ, इकहाई-क्रि० वि० [हिं० एक+हाइ (प्रत्य॰)]१ एक पद्माकर ग्र०, पृ० ३१४ । (ख) दुपट्टा दुताई चादरें इकलाई साथ। फौरन। उ०—(क) यह सुनि रानिन के बदन भे कटिवद वर । कचुकी कुन हि ओढनी अगवस्त्र धोती प्रमन्न हरखाइ ज्यों सूरज के उदय ते खिलत कमन इकाइ । अवर }--सुदन (शब्द०)। -( शव्द०)। ( क ) सीत भीत हरपादि तें उठे रोम इकलाई?--सुना पु० [हिं० इफला+ई (प्रत्य॰)] अके नापने । इकाई । ताहि कहत रोमा है सुकविन के समुदाइ ।-- इकलोम-ज्ञा पुं० [अ० इकलोम] १ पृथिवी । भूखंड । २ राज्य । पद्माकर ग्रे २, पृ० १६८। २ एकदम । अचानक ! ३ सुमार की अावाद भूमि का सातवाँ हिम्मा [को०] । इकहाऊ- क्रि० वि० [हिं० एक+होऊ (प्रत्य॰)] दे० 'इकहाइ' । इकले -क्रि० वि० [हिं०] ४० 'अकेले' । उ०--इकले प्रान पियारे उ०---त्यो पदमाकर झोरी झमाइ स दौरी मवै हरि १ | पाए । देखि हुरप भरे नयन सिराए ।-नद ग्र ० पृ० १७२।। इकहाऊ !--पद्माकर ग्र०, पृ० १५५ । यौ०--इकले टुकले = अकेले दुने । इकात(--वि० [म० एकान्त] दे॰ 'एकात' ।। इकलो-वि० [हिं०] दे० 'इकना' या 'के ना' । उ०—तब यकी इकाई -मल्ला पु० [हिं०] दे० 'एकाई' । पिता मरयो । तत्र यह घर में इकलो रहे ।--दो मौ इकार--संज्ञा पुं० [सं०] स्वर वर्ण 'इ' । बावन, पृ० १९ । इकारात --संज्ञा पुं० [सं० इकारान्त] वह शव्द जिसके अंत मे इक्रार इकलोईकड़ाही-नंजा झी० [हिं० एक+लोई] बहू काही जो एक - हो । वह शब्द जिसका अत 'इ' से हो। इकोस--वि० [हिं॰] दे० 'इक्कीम'। उ०——तुलसी तेहि अवसर ही लोई या तवे की बनी हो, अर्थात् जिसके पैदे प जोइन हो। लावनिता दन, चारि नौ, तीनि, इक्रीस सव !-—तुलसी ग्र०, इकलौता-मज्ञा पु० [हिं० इमली +० पुत्र, प्रा० अत्र] [स्त्री० इकलौती] पृ० १ ५६ ।। १. वह लड़का जो अपने माँ बाप का अना हो। वह नई का इके नाG---- वि० [हिं०] दे० 'अकेला ।'। उ0-देहरी बैठी मेहरी जिसके और भाई बहिन न हो। २. एकमात्र । अकेला । रोव द्वारे लौ स ग माइ । मरहट लगि सब लोग कुटु वे मिलि च०--तो इन्हें इकलौता बुद्धिमान मान लेना पडता है । हस इकेला जाइ |- कबीर ग्र २, पृ० २८५ । प्रेमधन, भा॰ २, पृ० ८० । १ इकेले---क्रि० वि० [हिं०] दे० 'अकेले'। उ०--भोजन करि के इंकल्ला-वि[स० एकल = एकाकी, प्रा० एगल्ल, एकल्ल, इक्कल)। इकेले ही गादि तकियान के ऊपर विराजे हृते ।--दो सौ १ अकेला । एकाकी । उ०—रणधीर इकर ली है और अपने बावन०, भा॰ २, पृ० १५ । पास इतनी देना है !--श्रीनिवास ग्र०, पृ० १०७ । । इकठ -वि० [सं० एकस्थ, प्रा० इकट्ठा] इकट्ठा । एकत्र । ईकवाई--सज्ञा स्त्री० [हिं० एफ + वाह] १ एक प्रकार की निहाई इक्रोतर)---वि० [हिं०] दे॰ एकोत्तर' । ३०-अौर इकोतर नाम जो मदान या अरन के प्रकार की होती है । भेद इतना ही । म क जीत में घर धावै ।—कबीर भra.gr होता है कि सदान में दोनों शोर हाथे या कोर निकने रहते इकोतरस - वि० [हिं०] दे० 'एकोतर सो' । उ०—इकोतर से हैं अौर इसमें एक ही योर । भारतबालो की इकवाई की एक पुरिपा नरकहि जाई । सति सति भापत थी गोरखराई । कोर लवी नोक होती है और दूसरी कोर सपाट चोदी गोरख० पृ० ५६। । होती है जिसके किनारे तीखे होते हैं । २ जो मया में तान इकौज--- संज्ञा पुं० [ स० एक+वव्या, प्रा० बज्झा, हि० वाँझ, या स० हो । तीन (दलाल) ।। एक+जा, या सं० फाऊवध्या फाकवज्क्ष> कफज्ला> इकस --संज्ञा स्त्री० [हिं० दे० 'अकम' ।। इकजा ] वह स्त्री जिसको एक ही पुत्र या एक ही कन्या इकसठ-वि० [मु० एकपप्ठि, पा० एकस]ि माठ और एक । उत्पन्न हुई हो। वह स्त्री जो एक बार जनकर वांझ हो इकसठ-सज्ञा पुं॰ वह अक जिम्मे माठ और एक कावधि हो । ६१ । जाय । काकवंध्या। कसर -वि० [हिं० एक+सर (प्रत्य०) ] अकेला । एकाकी । इकोना--सज्ञा पुं० [हिं० एक+वना] विना छोटा हुआ ग्रन्न। वि इकसार -वि०म० एक, हिं० इक+में सदृश, प्रा० सारस, नारिस भुना हुआ अनाज । एक सा। समान । बराबर । उ०—उनयो मेध घटा चढ़ इकोसी)---वि० स्त्री० [सं० एक + वासी] [वि० पुं० इकौसा] एकात मे दिश तें वर्पन दग) खडित धार । बूडी मेक नदी सब मूवी झर रहनेवाली । अकेली। उ०—अबैली भुजान के कौतुक १ प्रति | झि इकोसी ढु लाज थके |--घनानद, पृ० ३३ । नागौ निसदिन इ कसार ।-सु दर ग्र०, भा॰ २, पृ० ५३१ । इकौसे)---क्रि० वि० [हिं०] पृथक् । जुदा । अलग । इसीर- संज्ञा स्त्री० [अ०1 दे० 'अकसोर ।