पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५६९

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इकर्तरी ५०३ इकरारनामा इकतरा -संज्ञा पुं॰ [स० एकान्तर] वह ज्वर जो जादा देकर एक इकतीस - वि० [म० एकत्रशत्, पा० एकनीस] तीस प्रौर एक । दिन छोड दूसरे दिन प्राता है। अॅनरिया । उ०--वड दुख इकतीस- सच्चा पु० तीम शौर एक की संख्या । इकतीम का अक। होइ इकत आवे । तीन उपम ने वल तन खावे ।-जाल इकतृत --सज्ञा स्त्री० [सं० एकत्रिति] इकट्ठे रहने की स्थिति । (शब्द०) ।। जमाव । उ०--- मांति भाँति के मनुजन की निन रहति इकता ---संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'एकता' । नृO-इकता काग्ज इकतृत !-प्रेमघन, भा० १, पृ० ११ ।। हेतु की हेतु कहत सु कविद । परम पदारथ चारहू श्री राधा । इकत्र-क्रि० वि० [हिं०] दे॰ 'एकन' । उ०-मनहू सिनार इकत्र ह्व गोविद ।-पपाकर ग्र०, पृ० ६६ । । | वैयौ बार के वेम !---‘भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० ३८८ ।। इकताई--सज्ञा स्त्री॰ [k० एकता या फा० यकता + हि०ई (प्रत्य०)] १ एक होने का भाव । एकत्व । सिखे अपने दृगनसे इकदाम--सज्ञा पुं० [अ० इक्दाभ] १. किसी अपराध के करने की इकताई की बात । जूरी डीठ इक सँग रहै, जद्दरि जुदे दिखात । तैयारी या चेप्टा । २ सकल्प । इरादा । ३ कदम बढ़ाना | (को०) । ४ ऋगे बढना (को०)। –स० सप्तक, पृ० २१९ । २ अकेले रहने की इच्छा, स्वभाव यौ०---इझदाम ए जुर्म = अपराध करने की चेष्टा या कोशिश । या वान् ।एकातसेविता --ग्रली गई अव गवई इकाई मुकुताई । भली भई ही अमलई ज पी दई दिखाई ।--भ० । इकनो --संज्ञा स्त्री० [हिं०] २० ‘एकनी' । सप्तक, पृ० २८४ ।। इकपेचा -सज्ञा पुं० [हिं० एक+फा० पेचह] एक प्रकार की पगडी इकताना--वि० [सं० एकतान या हि० एक + तान= खिचाव] एक जिसकी चाल दिल्ली गरे में बहुत है । रस । एक सा। स्थिर । अनन्य । उ०--ऐसे ही देखते रहो, इकवारगी--क्रि० वि० [हिं०] २० 'एकबारगी'। उo--बहुत भए जन्म सफल करि मानो। प्यारे की भावती, भावती के प्यारे इकबारगी, तिनको गुफ जु हो । ताहि मे मुच्चय कहते हैं, कवि जुगल किमोर जानो । पलौ न टरौं छिन इत उन न होउ” रहीं। कोविद नब कोय ।—मतिराम ग्र ०, पृ० ४१८ । इफतानो !--हरिदाम (शब्द॰) । इकवाल--सज्ञा पुं० [अ० इकबाल] दे॰ 'एकवान’ | e--राजाम्रो की | इकतार --वि० [हिं० एक + तार] वराबर । एकर में। समान । रक्षा उन का इकवाल है ।—काया, पृ० १८६ ।। उ०—हरि के केसन सो सटी लखत खौर इकतार । मानहु रवि इकवाले दावा--मज्ञा पुं० [अ० इकवालदावा] मुद्दई के दावे को की किरन कछु छीन लई अँधियार ।---याम (शब्द०)। स्वीकरण । मुद्दई के दावे को अगीकार करना । इकतार--क्रि० वि० लगातार । उ०--प्राकिचन इद्रिदमन रमन इकबालमद--वि० [अ० इकबाल +फा० + मन्द | प्रताप शानी । राम इकतार । तुलसी ऐसे सत जन बिरले या म मार !-- भाग्यवान् (को०] । तुलसी ग्र०, पृ०, १२ ।। इकवालो गवाह-सज्ञा पुं० [अ० इकवाल +फ(० ई (प्रत्य॰)+ गयाह] इकतारा–सुझा पु० [हिं० एक-+ तार] १ एक बाजा । एक प्रकार का | किए हुए अपराध को स्वीकार करनेवाला । जुर्म मजूर तानपुरा या तवूरी ।। करनेवाला । विशेष--इसकी वनावट इस प्रकार होती है चमडे से मढ़ा हुआ इकवाली बयान-सज्ञा पु० [हिं० इकवाली +फा० बयान वह साक्षी एक तू दा वस के एक छोर पर लगा रहता है । तुवे के नीचे जो या गवाही जिसमें अपराध स्वीकार किया जाय । थोडा सा वम निकला रहता हैं उसमे एक तार तवे के चमड़े इकवीस---मैज्ञा पुं० [हिं०] ६० 'एक इम' । उ0-इकबी में बार नछत्री पर की घोडियाँ या ठिकरी पर मे होता हुआ बॉस के दूसरे अवनी कोन्ही पौइम घार करूर ।—रघु० छोर पर एक खूटी मे बँधा रहता है । इस खूटी को ऐ ठकर इकरग –वि० [हिं०] दे० 'एकरग' । उ०—छिरकि छिरकि घनस्याम तार को ढीला करते और कसते हैं । वजानेवाला इस तार को सव इकरग किया है ।---नैद ग्र ०, पृ० ३८६ । तर्जनी मे हिला हिलाकर वजाता है । प्राय साधु इसे वजा | इकरदन-सज्ञा पुं० [म० एक, प्रा० इक + म ०रदन] दे० 'एकदैन । वजकिर भीख माँगते हैं । इकरस-वि० [स० एक + रस] एक रग । समान । बराबर । उ०—२ एक प्रकार का हाथ से बुना, जानेवाला कपडा । जो कटु अव का प्रीति न हममे । रहृत न कोड इकरस हर दम विशेष—इसके प्रत्येक वर्ग इच मे २४ ताने के और अाठ वाने के मे ।--विश्राम (शब्द०) । तागे होते हैं । चुने जाने पर कपडा धोया जाता है और उस- इकराजा--वि० [सं० एक+राजा+हि° ई (प्रत्य॰)] एक शासक पर कु दी की जाती है । इसका थान ६ गज लबा और ११ वाला । एक राजा से युक्त । उ०-दादू नगरी चैन तब जब इच चौडा होता है । इकराजी हाइ ।--दादू० बानी, पृ० १२४ ! इकताला'--[हिं० एकताला] प्रथम ताल अर्थात प्रथम दिवस । इकराम-मज्ञा पुं० [अ० इकराम १ दान । पारितोपिक । २ इज्जत । वृ०-~-इकताला र चैत सुद । प्राद उदे नवरात ।--रा | माहात्म्य । अादर । प्रतिष्ठा । ३ अनुग्रह । कृ । (को०)। | रू०, पृ० २७६ । यी०- इनाम इकराम । इज्जत इकराम । इकताला--सज्ञा पुं० दे० 'एकताला' । इकरार--मज्ञा पुं० [अ० इकरार] १. प्रतिज्ञा । वादा । २ कोई इकतीयार--सज्ञा पुं० [अ० इख्तियार] अधिकार । अख्तियार । काम करने की स्वीकृति ।। ३०–वदे बदगी इकतीयार। साहिब रोप घरौ कि पियार !- इकरारनामा--संज्ञा पुं० [अ० इकरार+ फ़ा० नामह.] स्वीकृति पत्र । कबीर अ ०, पु० ३०७ । प्रतिज्ञापत्र ।