पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५६७

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इंद्रियगोचर ५०० ईंटकौहरी यौ०--इद्रियघात । इद्रियजन्य । इंद्रियजित् । इद्रियदमन । इ द्रियासंग--सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियाशङ्क] इद्रियों और उनके इद्रियनिग्रह । इद्रियसयम । इद्रियार्थ । इद्रियामक्त । विपयो के प्रति ग्रासक्ति का अभाव । अनासक्ति । सन्यास । ३ लिगेंद्रिय । ४ पाँच की सख्या । ५ वीर्य । ६ कुश्ती के | वैराग्य (को॰] । एक पेंच का नाम ।। इद्रियासक्त--वि०[स० इन्द्रियासक्त ]इंद्रियाराम । इद्रियेलोलुप (को०)। इद्रियगोचर--वि० [सं० इन्द्रियगोचर] इद्रियो के ग्रहण के योग्य या इ द्रो)-.-संज्ञा स्त्री० [सं० इन्द्रिय] दे० 'इद्रिय' । ३०--इद्री मव न्यारी ज्ञेय । इद्रियो का विषय होने योग्य । परी, मुख लूटति अखि । सुरदाम जे मृग हैं, तेऊ मरे इद्रियगोचर-सबा पु० इद्रियों का विपय [को०] ।। झखि ।--सुर०, १०२४०७ । इद्रियग्राम--सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियग्राम] इद्रियो का समूह [को॰] । इद्रीजीत -वि० [० इन्द्रियजित्] दे॰ 'इद्रियजित् । उ०--प्रति इद्रियज--वि० [सं० इन्द्रियज] इद्रियो के संयोग से होनेवाला 1 इद्रिा अनन्य गति इद्रीजीता है जाको हरि विनु कतहु न चीता। जन्य । उ०--प्रारम में मनुष्य की चेतन सत्ता अधिकतर । -तुन्नमी ग्र०, पृ० १० । इद्रियज ज्ञान की समष्टि के रूप में रही ।--रस०, पृ॰ २० । इद्रीजुलाव--संज्ञा पुं० [म० इन्द्रिय+फा० जुलाव] वे झोपवियाँ इद्रियजित-वि० [म० इन्द्रियजित्] जिसने इद्रियो को जीत लिया जिनसे पेशाव अधिक अाता है। इसके लिये पानी मिला हुआ हो । जो इद्रियो को वश मे किए हो । जो विपयासयत न हो । दूध, शोरा, भिलखडी अादि वस्तुएँ दी जाती हैं । उ०--नीतिनिपुण मश्रणाकुशल थे वे रहस्रक्षे क इद्रिय िजत् । इद्रया —ाज्ञा स्त्री० [सं० इन्द्रियो १० ‘इद्रिय' । -- स्वप्न, पृ० ३६ । इद्र ज्य--ज्ञा पुं० [अ० इन्द्रज्य देवगुरु वृहस्पति (को०] । इद्रियनिग्रह---सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियनिग्रह] इद्रियो को दबाना । इद्रिये इव---वि० [म० इन्ध] प्रकाशक । दीपक । के वेग को रोकने का नियम है इध--सजा पु० १. जन्नावने । ईंधन । २ परमात्मा [को०] । इद्रियवोधन-वि० [सं० इन्द्रियदोशन] इद्रिय को जाग्रन या क्रिया- इधर--माज्ञा पुं० [सं० इन्चन] १ ज नाने की लकड़ी। जलावन । शील करनेवाला (को०] । उ०- पान के सए सोना क टका, चंदन के मूल इधन विका!-- इंद्रियलोलुप--वि० [सं० इन्द्रियलोलुप] इद्रिय की तुष्टि के लिये कीति०, पृ० ६८ 1 ३ वासना (को०) । व्याकुन्न [को॰) । इशा--संज्ञा स्त्री० [अ० इशा] १. इबारन । बयान । २. पत्र लिख़ने इ द्रियवज्जी--संज्ञा स्त्री० [सं० इन्द्रिय+वत्र] वाजीकरण क्रिया का | की कला मिखानेवानी पुस्तक । चिट्ठियों की किताव [को०] । | एक भेद ।। इसाफ- सज्ञा पुं० [अ० इन्साफ] [वि॰ मुसिफ १ न्याय । अदल । इद्रियवध- -सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियवध] इद्रियो का अपने अपने विपय । | यौ०--इसाफएसद--न्याय चाहनेवाला । मे असवत न होना [को०] । क्रि० प्र०--करना --होना । इद्रियवृत्ति-सज्ञा स्त्री० [R० इन्द्रियवृत्ति] इ द्रियो का कार्य (को०]।। २ फैसला । निर्णय ।। इद्रियसनिकर्प-सज्ञा पुं० [म० इन्द्रियसन्निकर्ष] ज्ञानेंद्रियो का अपने इस्टिट्यूट--संज्ञा स्त्री० [अ० इन्स्टिट्यूट] तम्या 1 से मा । समाज ! अपने विपयो या मन से संपर्क । इस्ट मैट---ज्ञा पु० [अ० इन्स्ट्रमेन्ट] १ौजारे। यत्र । २ साधन । इद्रियसुख-मज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियसुख] विषयानद । विपयमुख [को०)। इस्पेक्टर--सज्ञा पुं० [अ० इन्स्पेदटर] १ देख मान करनेवाला । इद्रियस्वाप-सज्ञा पुं० [स० इद्रियस्वाप] इद्रियो को अपने विपयो का निरीक्षक । | ज्ञान न होना। २ जडता । ३ प्रलय [को०] 1 इँगरेज)--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अँगरेज' । उ०---यो अंगरेज इद्रियगोचर-वि० [सं० इन्द्रियगोचर] इद्रियो द्वारा अग्राह्य या | मुलक र ऊपर ---वांकी० ग्र० भ०, ३, पृ० १०४।। इद्रियो का अविषय । अज्ञेय [को॰] । अँगरेजी- -ज्ञा स्त्री० [हिं०]दे० 'अँगरेजी' । उ०—-फारमी की छार सी इद्रियातीत--वि० [सं० इन्द्रियातीत १ इ द्रियो से परे । इद्रिया | उडाय अँगरेजी पढ मानो देवनागरी का नाम ही मिटावेंगे - | गोचर । अज्ञेय (को०] । कविता कौ०, भा॰ २, पृ० १०३ । इद्रियायतन- सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियायतन] इद्रियो का अायतन या इँगुरौटी---संज्ञा स्त्री० [हिं० इगुर +ौटा (प्रत्य॰] वह डिविया | निवास । शरीर । देह। २ आत्मा (को॰] । जिसमें सौभाग्यवती स्त्रियों ई गुर या सिंदूर रखती हैं। सिंधोरा। इद्रियाराम--वि० [सं० इन्द्रियाराम] इद्रियलोलुप । विपयासक्त(को०)। ईंगुवा----ज्ञा पु० [स० इडगुद} हिंगोट का पढ र फल । गोदी । इद्रियार्थ—-सज्ञा पु० [सं० इन्द्रियार्थ] इद्रियो का विपय । वे विपय ईंचना)---क्रि० प्र० [हिं० fखचना] किमी ओर आकर्षित होना जिनका ज्ञान इद्रियों द्वारा होता है, जैसे--रूप । खिचना । उ०—(क) महनु शासति मुहै नटति अखिनु सौं इद्रियार्थवाद-सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रियार्य+वाद] वह मत जिसके लपटातु । ऐचि छुडावति कर ईची प्रागै प्रावति जाति !-- अनुसार बुद्धि-व्यापार-चजित इ द्रियज मुख ही सब कुछ है और विहारी र०, दो० ६८३ । (ख) अवनि आँख इची खिची इसी की निष्पत्ति काव्य का प्रधान गुण है । उ०—कोट्स भौंह भयो भ्रम अवतु है मति यापै ।---रघुनाथ (शब्द॰) । की कल्पना बहुत ही तत्पर थी ‘वे अपने इद्रियार्थवाद के लिये इँटकोहरा----संज्ञा पुं० [हिं० ईंट +ोहरा (प्रत्य॰) 1 ईंटे का फूटा प्रसिद्ध हैं।—चिंतामणि, भा॰ २, पृ० १३८ । टुकडा । ईंट की गिट्टी । ||६ । ।