पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५६५

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इंद्रज इंद्रवज्रा इंद्रज-सज्ञा पुं॰ [ म० इन्द्रज ] बालि नामक बानर जो इंद्र का इद्रधनुष----सज्ञा पुं॰ [स० इन्द्रधनुष ] १. सात रगो का बना हुआ। एक | पुत्र था [को०]। अर्धवृत्त जो बपकान में सूर्य के विरुद्ध दिशा में प्रकाश में इंद्रजतु-सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रजतु] शिलाजीत [को०)। देख पडता है। जव मूर्य की किरणें वरमते हुए जल से पार इद्रजवसज्ञा पुं० [सं० इन्द्रयव] कुडा । कौरैया का वृक्ष । होती हैं, तब उनकी प्रतिच्छाया से इंद्रधनुप बनता है । विशेष--ये बीज लवे-लवे जब के प्रकार के होते हैं और दवा के इंद्रध्वज--संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रध्वज] १ इद्र की पताका । २ भाद्रपद काम में आते हैं। एक एक सीके मे हाथ हाथ भर की लवी शुक्ला द्वादशी को वर्षा और पेढी की वृद्धि के लिये होनेवाला दो दो फलियाँ लगती है, जिनके दोनों छोर आपस में जुड़े रहते एक पूजन जिसमे राजा नोग इद्र को ध्वजा चढ़ाते और उत्सव हैं । फन्नियो के अदर रुई या घूवा होता है जिसमें बीज रहते करते हैं । ३ प्राचीन भारत में प्रचलित एक उमई जिममै हैं। इसके पेट में कटे भी होते हैं। यह मलरोधक, पाचक वैदिक देव इंद्र की आराधना होती थी । और गरम है तथा सग्रहणी और खूनी बवासीर मे फायदा इंद्रनील- संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रनोल] नीलमणि । नीलम् । उ०- :करता है । त्वचा के रोगो पर भी यह चलता है। नील मणि प्रहाचपक या मोमरहित उलटा लटका -- इंद्रजाल—सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रजाल ] १ मायाकर्म । जादूगरी । कामायनी पृ० २४ । तिलस्म । उ०—सो नर इद्रजाल नहि भूला - मानम, भला ।- मानम, इद्रनेत्र-सज्ञा पुं० [सः इन्द्रनेत्र] १ १००० की संख्या । २ इंद्र की अखि [को०] । विशेष—यह तत्र का भी अग है । इद्रपर्णी--सच्चा सौ० [सं० इन्द्रप] ६० 'इद्रपुरपा' (को०] । २ एक प्रकार का रणचातुर्य । ३ अर्जुन का एक शस्त्र (को०)। इद्रपर्वत - मशा पुं० [सं० इन्द्रपर्वत] १ महेद्र पर्वत। २ एक काना इद्रजालिक-वि० [म० इन्द्रजालिक] इद्रजाल करनेवाला । जादूगर । पहाड (को०)। इंद्रजाली--वि० [म० इन्द्रजालिन् ] [ वि० बी० इंद्रजालिनी ] इद्र जाल । इद्रपुरोहिता--संज्ञा स्त्री॰ [म० इन्द्रपुरोहिता] पुष्य नधान । करनेवाला । मायावी । जादूगर । उ०-यौ न कहो कटि नाहि इंद्रपुष्पा--सक्षा नी० [म० इन्द्रपुष्पा] करियारी । कलिहारी । तौ कुच हैं कि हि अाधार। परम इजाली मदन विधि को। इंद्रप्रस्थ--सझा पु० [सं० इन्द्रप्रस्थ] एक नगर जिसे पाडवो ने खाडव चरित अपार ।-भिखारी ग्र०, भा॰ २, पृ० १६१ । | वन जाकर बसाया था। यह अघुिनिक दिल्जी के निकट है । इंद्रजितु-वि० [भ० इन्द्रजितु] इट्स को जीतनेवाला। इद्रप्रहरण-सा पु० [सं० इन्द्रप्रहरn] वज्र (को०)। इंद्रजित्-सज्ञा पु० रावण की पुत्र, मेघनाद । इंद्रफन मा पु० [सं० इन्द्रे फल] इद्रजव । इंद्रजीत -संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रजित्] दे॰ 'इंद्रजित्' । उ०—इंद्रजीत इद्रभगिनी-सज्ञा स्त्री० [सं० इन्द्रभगिनी] पार्वती [को०] । अादिक बलवाना --मानस, ६ । ३३ ।। इद्रभापसमा पु०[सं० इन्द्रभाव ]मगीत में इद्रताल के छ भेदों में से एक। इंद्रजी -सज्ञा पुं० [हिं० इन्द्रजव दे० 'इद्रजव' । इद्रभेषज--ससा पु० [सं० इन्द्र भेषज] सोठ [को॰] । इद्रतरु-संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रतरु] १ अर्जुन नाम का वृक्ष । २ कुटज इंद्रमंडल-सला पु० [सं० इन्द्रमण्डल] अभिजित से अनुरोध तक के का पौधा [को०] । सात नक्षत्रों का समूह । इद्रतापन--सज्ञा पुं॰ [ स० इन्द्रतापन ] १. मेघगर्जन। बादलों का इंद्रमख- सच्चा पु० [सं० इन्द्रमख] इद्र को प्रसन्नता के निमित्त किया | गरजना । २. एक दानव का नाम [को०] । जानेवाला एक यज्ञ [को०] । इंद्रनूल, इद्रतूलक--संज्ञा पुं० [ सं० इन्द्रतूल, -तूलक ] वह सूत जो इद्रमद---संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रमद] पहनी वर्षा के जन में उत्पन्न विप जिसके कारण जोक और मछलियां मर जाती हैं। | वायु में उड़ जाय । २. रुई की ढेरी या नमूह [को॰] । इद्रमह-मज्ञा पुं० [सं० इन्द्र मह] १ दे० इद्रमख' । २. वर्षा ऋतु । इद्रदमन--सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रदमन] १ वाढ के समय नदी के जल का यौ०-ईद्महकामुक = श्वान । कुता। किसी निश्चित कुड, तान अथवा वट या पीपल के वृक्ष तक इद्रलुप्त-सञ्ज्ञा पुं० [सं० इन्द्रलुप्त] खल्वाट होने की रोग । गाज रोग । पहुचना । यह एक पर्व समझा जाता है । २ वाणासुर का इंद्रलुप्तक--संज्ञा पुं० [म० इन्द्रलुप्तक] दे॰ 'इद्रलुप्न' । एक पुत्र । ३ मेघनाद का एक नाम । इद्रलोक--सच्चा पुं० [सं० इंद्रलोक] स्वर्ग । उ०—चढे अस्त्र ले कृष्ण इंद्रदरुि–सझा पु० [सं० इन्द्रदा] देवदारु । | मुरारी । इद्रलोक सब लोग गोहारी ।-जायसी ग्र०, पृ०११३ । इद्रद्युति-सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रद्युति] श्वेतचदन [को॰] । इद्राशा-संज्ञा पुं० [सं० इन्द्रशा] १२ वर्गों का एक वृत्त जिसमे इद्रद्म --सक्षा पु० [म० इन्दुम] १ अर्जुन वृक्ष । २ फुटज [को०] । दो तगण, एक जगण और एक रगण होते हैं । उ०—ताता जरा इद्रद्वीप--सझा पु० [सं० इन्द्रद्वीप] भारतवर्ष के नौ खडो मे एक का देख विचार कै मनै । को मार को देत सुखै दुखें जनं । सग्राम नाम [को०)। 'भारी करु अाज बन सौ ।रे इद्राशः । लर कौरवान सो। इंद्रधनु-सज्ञा यु० [ स० इन्द्रधनुष, प्रा० इंद्रघणु ] दे॰ 'इंद्रधनुष' । --छद), पृ० १७२। उ०-भरी धमनियों सरिताग्रो सी, रोष इंद्रधनु उदय हुआ ।- इद्रवज्रा--सज्ञा पुं० [सं० इन्द्रवज्रा] एक वर्णवृत्त का नाम जिसमें दो नागयज्ञ, पृ० ६५ । | तगण, एक जगण और गुरु होते हैं। उ०—ताता जगो गोकुल