पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५६१

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ईंकैमैन ४१४ विशेष--यह दो पुँकार की होती है---(१) सिंपुल (सादी)= यह नने से एबम निकालना और बाहर करना है। यह शब्द इस सिर्फ एक चिकनी और साफ लोहे की ढली हुई चौकी होती नाडी के साथ की ही दूसरी नाई। 'पिंगा' की भमन्यात्मकना है । (२) सिलिड़िकल (बेलनदार)= लोहे की एक साफ शौर पर बना है। इसे नाही को 'बद्र नाड़ी' कहते हैं । हठयोग के चिकनी चौकी होती है जिसके एक ग्रोर लोहे का एक वेलन | स्वरोदय में इनका विवरण है ।। लगा होता है । वेलन के पीछे एक प्रकार की नाली सो बनी इगलिग'---वि० [अ०] १ गइ देण संबधी । अँगरेजी । २ पेंशन रहती है जिसमें कुछ पेंच लगे होते हैं और स्याही भरी रहती | (सिपाहियों की भापः) । है। उन पेंचों को कसने शोर ढीला करने मे स्याही आवश्यकता- इगलिश-सन्ना नौ० अंगरेजी मापा । नुसार कम वा अधिक आती है अौर पिरो कर बराबर हो जाती इंगलिशमेन- म पुं० [अ०] इग ने इ निवानी व्यक्ति । अँगरेन । हैं । वेलनवाली चौकी में स्याही देनेवाले को अधिक म नने का इगलिस्तान-मज्ञा पुं० [अ० इगलिश +फा० स्तन=जगहू, तुन ० म० परिश्रम नहीं करना पडता । स्थान] अँगरेजो को देश । इगई । इकमैन--सज्ञा पु० [अं०] छापेखाने में मशीनपर स्याही देने वाला इगलिस्तानी-वि० [ग्रं० इगलिश + फी० मतानो अँगरेजी । इंगलैंड | मनुष्य । स्याहीवाने ।। देने का । उ०-गनिम्नानी और दरियाई कुत्री प्रोलदेजी । इकरोलर-- -सज्ञा पुं० [अ०] छापेखाने में स्याही देने का वेतन ।। | औरहु विविध जाति के बाज नन पवन की तेजी :विशेष -यह तीन प्रकार का होता है---(१) लकडी का मोटा । रघुराज (शब्द॰) । वेलन जिसनर केवल, बनत वगैरह लपेटकर ऊपर से चमडा | इगलैइ--मज्ञा पुं० [अ०] ग्रेगरज़ो का दे | :गनिम्नान । मढ़ते हैं । यह वेलन पत्यर के छापे में काम देता है । (२) । लकडी का वेलन जिसपर वह ढालकर चढ़ाते हैं। यह इगीर -मन: पु० [न० इड्गाल] १० 'अगार' । ३० --बैही फण वहुत कम काम में आता है । (३) तीसरे प्रकार का वेलन इगर जू तप, जर माय भयर उगत३ भाण |---बी० गराडीदार लकडी पर गला हुआ गुड और सरेम चढाकर। | रागो, नृ० २१ । । बनाते हैं । यही अधिक काम में आता है। ' इगोलकर्म-संज्ञा पुं० [सं० अङ्गारकर्म] जैन मतानुगार वह व्यापार जो इग' -सज्ञा पुं० [सं० इङ्ग= इशारा, चिह्न १ चलना । हिलना । अग्नि से हो । जैन,-जोहा, मोना, ६ ट बनाना, हुलना । २ इशारा । ३ निशान । चिह्न । ४ हाथी का कोयला बनाना ।। दाँत । ३०-वक लगे कुच बीच नखक्षत देखि मई दृग दूनी इगित–पुं० [म ०ईगित]१ हृदय के अभिप्राय को व्यक्त करनेलजारी । मानो वियोग वराह हुन्यो युग मैल की नधिन । वाली क्रागिक चेप्दा १२ सुकेत चिह्न । इशारा । उ०--तगण इंगवे हारी |--केशव (शब्द०)। अग द्वारा 'भावो की । अपनी शास्त्रों में इंगित करके उसे दिमाते मागं ।-कानन०, अभिव्यक्ति । भावो की अगिक अभिव्यक्ति (को०) । ६ ज्ञान पृ० ५७ । ३ अभिप्राय । मन का विचार या भाव (को०) ।४. (को०) { ७ पृथिवी । भूमि (को०) । हिल ना डोल ना ! चलन (को॰) । इम-वि० १ गतिशील । हिलता हुआ । चल । २ विस्मय- इगित-वि० १. हिनता हु । २ चलिन । कपित । कारक । अाश्चर्यजनक [को०) । इगितकोविद-वि० [स इङ्गितकोविद] आगिक चेष्टा द्वारा अतिरिक इंगन--संज्ञा पुं० [स ० इङ्गन][वि० इगत] चलना । कपना । २. भावों को जानने में उनकी अभिव्यक्ति में इन [को०) । हिलना । डोलना । ३ इशारा । मकेत । ४ ज्ञान । जानकारी दृशितन-वि० [स, इमिगत] ३० मिन विट [al । (को०) । ५ चलाना (को०)। ६. हिलाना डुलाना (को॰) । इगु--संज्ञा पु० [सं० इडगु] एक रोग [को०] । इगनी---संज्ञा स्त्री० [अ० मैंगनीज] एक प्रकार का मोर्चा जो घातुम्रो रग -r Go TH० दगड] ६० गटी' । में आक्सीजन के मिलने से पैदा होताहै ।। इगुदो---सज्ञा स्त्री॰ [न इडगुदी] १ हिंगोट का पेड । उ०--विनमत विशेष—इगनी भारतवर्ष में राजस्थान, मैसूर, मध्यप्रति प्रौर निव विशाल इगुदी अरु आमलकी ।--श्यामा, पृ० ३६ । २. मद्रास की खानो से निकलती है। यह काँच के हरेपन को ज्योतिष्मती वृ । मलि गनी । ३ हिङ्गोट की गरी (को०)। दूर करने और फाँच का नुक करने के काम आती है । यह अध एक प्रकार का सफेद लोहा बनाने के काम में भी आती है जिसे इंगुर -मुज्ञा पुं० [हिं०] *० *गुर' ।। । अँगरेजी में 'फेरो मैंगनीज' कहते हैं । इगुरोटी--संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ई गुर+ौटी (प्रत्य॰)] वह डिबिया या इगल, इगलासचा जी० [सं० इडा] हठयोग के अनुसार इडा | पात्र जिममे मौनग्यिवती स्त्रियाँ ईगुर रखती हैं। सिंधौरा । नाम की एक नाडी । उ०-तीर चले जो इगल माँही । उत्तिम इगुल-सज्ञा पुं० [सं० इडगुल] दे॰ 'इनुदी' [को०) । से मत जो चलि जाहीं ।—स० दरिया, पृ० २७ । (ख) इगना इच-सज्ञा सी० ]अ०] १ एक फुट का बारहवां हिस्मा। तीन ग्राडे पिंगला नाता कर ले सुपमन के घर मेला 1--रामानद०, जब की लवाई । तस्मू । २ अत्यल्प । बहुत थोडा । उ०—पृ० ३६ । (ग) इगला पिंगला सुखमन नारी । शून्य सहज में इन महात्माग्रो के ध्यान में यह बात नहीं आती कि ऐसी दलीलो बसहि मुरारी ।—सूर (शब्द०) । से उनकी अभ्रातिशीलता एक इव भी कम नहीं होती ।विशेष - यह नी वाई और होती है । इस का काम बाईं नाक के सरस्वती (शब्द०) ।