पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५६०

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अहितलक्षण ईकैटेवुलं अहितलक्षण---वि० [सं०] जो किसी विशेष चिह्न से पहचाना आहृत--वि० [सं०] १ जो हरण किया हो । जो निया गया हो । | जय (को॰] । २ जो लाया गया हो । अनीत । लाया हुप्रा । माहितस्वन--वि० [सं०] शोर मुन मचानेवाला कि०] ।। ग्राह्य-वि० [स०] अहि या सर्पस वध [को०] ।। आहिताक---वि० [म ० झाहिताङ्क चिह्नवाला । चिह्नित [को०]। है--क्रि० अ० [हिं०] असिना' क्रिया का वर्तमानकारिक रूप । साहिताग्नि-सज्ञा पुं० [सं०] अग्निहोत्री । शाहू-वि० [सं०] दिनसबंधी । दैनिक (को०] । हिति-मज्ञा स्त्री॰ [सं०] स्थापन । रखना [को०] । आह्निक-वि० [सं०] दिन का । दैनिक । रोजाना । जैसे,—ग्राह्निक आहिस्ता--क्रि० वि० [फा० आहिस्तह] धीरे से । धीरे धीरे । शनै कर्म । प्राज्ञिक कृत्य । न. । धीमे में । श्राह्निक-सज्ञा पुं० १ एक दिन का काम । २ सूत्रात्मक शास्त्र के यौ–माहिस्ता आहिस्ता । भाष्य का एक अश जो एक दिन में पढा जाय । ३. अध्यापक । आहु-सझा पु० [स० श्राव - ललकार, युद्ध, प्रा० अाह = बुलाना] ४ रोजाना मजदूरी । ५ एक दिन की मजदूरी । ललकार । युद्ध के लिये किसी को प्रचारना । उ०-माल लाल श्राह्लादे---सज्ञा पु० [से ०] [वि॰ अह्लादित] मानद । खुशी । हर्ष । वेदी छए छुढे बार छवि देत । गह्यो राहु अति अाहू करि, मनु उ०—जब उमडना चाहिए ग्राहू लाद, हो रहा है क्यो मुझे अव*ससि सुर समेत |--विहारी र०, दो० ३५५ । साद ।—साकेत, पृ० १६७ । आहुक--संज्ञा पुं॰ [सं०] एक यादव का नाम । यौ०-प्रह्लादप्रद = शानददायक । शाहूड- सुज्ञा पुं० [म० हब +हि० 'प्रत्य०) ] युद्ध । नड़ाई । प्रह्लादक--वि० [सं०] [स्त्री० श्राह्लादिका] अानंददायक । खुशी आहुत--संज्ञा पुं० [सं०] १ अतिथियज्ञ । नृयज्ञ 1 मनुष्यन्न । देनेवाला ।। अतिथिसत्कार । २ भूतयज्ञ । वलिवैश्वदेव ।। प्रह्लादन--सज्ञा पुं० [सं०] हर्प । अाहे,लाद [को०] । आह्नादन?--बि० नददायी । हर्ष प्रदान करनेवाली [को॰] । हुत-वि० वन किया हुप्रा । हुत [को०] ।। श्राह्लादित-वि० [सं०] ग्रानुदित । इपित । प्रसन्न । खुश । अहुति-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ मत्र पढ कर देवता के लिये द्रव्य को आह्लादी-वि० [स० श्राह्लादिन्] १ प्रमन्न । हर्षयुक्त 1 २ हर्पप्रद । अग्नि में डालनी । होम्। हवन । ३०----शिव शाहूति बेरा आनद देनेवाला (को०] । जव आई। विप्रनि दच्छहि पूछयौ जाई ।---सू०, ४।५।। आह्वय-सज्ञा पु० [स०] १ नाम । सज्ञा । २ हवन में डालने की सामग्री । ३ होमद्रव्य की वह मात्रा यौ०.--गजाह्वय । नागाह्वय । शताह्वय । जो एक बार में यज्ञकुड में डाली जाय । उ०—ाहुति जज्ञकु ड २ तीतर, बटेर, मेढ़े आदि जीवो की लड़ाई की वाजी । मे डारी । कह्यौ, पुरुप उपज्यो वल भारी -सूर०, ४१३६६ । प्राणिचूत ।। कि० प्रo---करना }---छोडना ।- डालना !-—देना ।—होना । विशेष---मनु के धर्म शास्त्र में इसका बहुत निषेध है । यो०-प्राज्याहुति । पूर्णाहुति ।। अाह्वयन - संज्ञा पुं० [सं०] १. नाम का उच्चारण । २ नाम [को०] । श्रीहुतो -सच्चा श्री० [सं०] दे० 'आहुति' ।। आह्वान--सज्ञा पुं० [सं०] १. बुलाना । चुनावी । पुकार । उ०— गहुल्य- सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पौधा या क्षुप [को०] । अतर का आह्वान वेग से बाहर आया ।-साकेत, पृ० ४१० ! शाहू- संज्ञा पुं० [फा०] हिरन । मृग । ३ राजा की ओर से बुलावे का पत्र | समन । तलबनाम।। ३ माहूत-वि० [सं०] बुलाया हग्रा । ग्राह्वान किया हुआ । निमंत्रित । यज्ञ में भत्र द्वारा देवता को बुलाना । यौ०-अनाहूत । क्रि० प्र०—करना ।--होना । आहूतसप्तर्व--सुज्ञा पुं० [सं० हूतसम्प्लव प्रलयकाल । प्रलय आह्वाय--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ नाम । २ ममन । तलनामा (को०)। | कालीन जलप्लावन । आह्वायक---वि० [स०] अाह्वान करनेवाला । पुकारनेवाला (को०] ग्राहूति--संज्ञा स्त्री० [सं०] अाह्वान । पुकार [को०] । आह्वायक-सज्ञा पु० सदेशहर। संदेश ले जानेवाला । दूत [को०] । fun इ-देवनागरी वर्णमाला में स्वर के अंतर्गत तीसरा वर्ण । इसका औटाकर बनती है और छापने की स्याही राल, तेन काजल उच्चारणस्थान तालु और प्रयत्न विवृत है । ई इसका दीर्घ इत्यादि को घोटकर बनाई जाती है । रूप है। यौ०---ईक पाट=म्याही रखने का वर्तन । मुसीपाय । दावात । इक-संज्ञा स्त्री० [अ०] स्याही । मयी । रोशनाई । इक पंड = स्याही लगी एक छोटी सी गद्दी जिनमे रबर की मुहर अदि पर स्याही लगाई जाती है । विशेप-- यह मुख्यत दो प्रकार की होती है-लिखने की शौर। छापने की । लिखने की स्याही कमीरा, हड, माजू आदि को इंकटेबल-संज्ञा पुं० [सं०] छापेवाने में ही देने की चौ: ।