पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५५८

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में त्रिप अहिर अस्रिप'-.-वि० [सं०] रक्तपायी । खून चूसने या पीनेवाला (को०) । देकर कलपाना । किसी को राताने का फन अपने ऊपर लेना । अस्रिप--सच्चा पुं० १. राक्षम । २ मूल नक्षत्र (को॰] । जैसे,--नाहक किमी की अाहू क्या लेने हो । आम्नम--सज्ञा पुं० [सं० श्राश्रम] दे० 'ग्राम' । उ०—तुम्हरे ग्राह -संज्ञा पुं० [राज० ग्राहस = बल] नाहन । हियाय । वन । अन्नम अवह ईस तप माघहि ।-सुलमी ग्र०, पृ० ३१ ।। । उ०—गई के निकट प्रवीन की, नहीं न छ अाह । चतुराई अविव--सज्ञा पु० [भ०] १ उबलते हुए चावल का फेन । २ पनाना। | ढिग अघ के, करै चिनेरी चाह ---दीनदयाल (पाद) । ३ इद्रियद्वार। उ०-- प्रसव इंद्रिय द्वार पहावे । जीवहिं श्राहक--संज्ञा पुं० [सं०] १ एक रोग जो ना में होता है । २० विपयन अोर वहावे ।- (शब्द०)। ४ क्लेश । कष्ट । गीर्वाण [को०] । ५ जैन मतानुसार औदरिक और कामादि द्वारा आत्मा की अाहचर्ज---संज्ञा पुं० [देश॰] १० प्रश्वर्य' । उ०—नदा ममपिनि गति जो दो प्रकार की है--शुम और अशुभ ।। सवितु' लखति प्रति अाहचर्ज गीं ।--रत्नाकर, पृ० ६ । शास्राव----सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ वहाव । २ घाव ! ३ पीडा । ४ एक आहट—सा नी० [हिं० = प्राना +हट (प्रत्य॰), जैसे-बुलाहट रोग । ५ थूक को०] । घबराहट] १ शब्द जो चनने मे पैर तया और दूपरे गो से अस्विनित--वि० [म०] पूर्णतया ध्वनि करता हुआ । शब्दित [को॰] । होता है । अाने का शब्द 1 पाँव की चार । डा । जैसे,आस्वात--वि० [म० ग्रास्वान्त] ६० अास्वनित' ।। (क) किमी के आने की प्राहट मिल रही है। उ०—होत न प्रास्वाद--संज्ञा पुं० [सं०] र म । स्वाद । जायका । मजा । ३०० अहिट भो पग धारे । बिनु घटन ज्या गज मेतबारे ।-लाल सस्कार ने मुक्त सहृदय पुरुप रस का स्वाद लेते हैं ।--- (शब्द॰) । (ग) अहिट पाये गोपाल की ग्वालि गनी महें रम क0, पृ० १८ ।। जाय के घाय लिया है । (शब्द॰) । प्रास्वादन--संज्ञा पुं० [म०] [वि० ग्रास्वादनीय अवादित] चखना । क्रि० प्र०--पाना ।---मिलना ।—लेना । स्वाद लेना । रस लेना। मजा लेना । २. आवाज जिनमें किसी के रहने का अनुमान हो । जैसे, प्रास्वादनोय-वि० [म०] चखने योग्य । स्वाद लेने योग्य । रस लेने कोठरी में किमी अादमी की आहट मिल रही है। योग्य । मजा लेने योग्य ।। । क्रि० प्र०--पाना |--मिलना --लेना। मास्वादित—वि० [सं०] चखा हुआ । स्वाद लिया हुआ । रस लिया ३ पता ! मुराग । टोह । निमान । हुआ। मजा लिया हुआ । क्रि० प्र०---लगना ।—लगाना । स्वाद्य---वि० [म०] अास्वादन करने योग्य । जायकेदार । खाने में अहत'-वि० [सं०] [मझा हति] १. जिम्पर प्रपाते इसी मधुर । मीठा [को०] ।। हो । चोट खायी हुअा। घायल। जमी । जैसे,—उस युद्ध प्रह'-अ५० [सं० अहह ] पीडा, शोक, दु ख, वेद और ग्लानिमूचक में ४०० मिपाही हज हुए। २. जिम नया को गुणित अव्यय । उ०--पीडा-ग्राह 1 वडामारी काँटा पैर में धैसा । करें । गुण्य । ३. व्याघात दोष मे युत (वाप) । परस्पर दु ख शोक-हि । अन्न के बिना उसकी क्या दशा हो रही है। विरुद्ध (वाक्य) । प्रमभव (वाक्य) । ४ तुरन धोया थोडे। क्रोध और खेद--अाह ! तुमने तो हमे हैरान कर डाला। हुअा (वस्त्र)। (वत्र) जो अभी धुनकर अाय हो 1 ५. माह -सझा स्त्री० कराहना । दु ख या क्लेपासूचक शब्द । ठढी सम् ि । पुराना । जीणं । गनी हुा । ६ चन्तित । यति । धरना उसास । उ०—तुल भी अाह गरीब की, हरि सो सही न जाय । हुआ । हिलता हुआ { ७, हुन । मृन [को०] । ६ प्रपात किया मुई खाल की फक मो, लोह मसभ होइ जाय ।--तुलसी हुआ। बजाया हुआ (को०] । कुन' या दा हुने (को०] । (घाब्द०)। यौ-हताहत = मारे हुए अौर जखमी । मुहा०—प्राह करना = हाय करना । कलपना । ठही साँस लेना । अाहत-सज्ञा पुं० [म०] १ ढोन । २. नया प्रयदा पुराना उम्प्र[को०]। तमन्ना यं० [म०1१ टोल । २ उ0--(क) माह करो तो जग जले, जगल भी जल जाय । प्राति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ भोट पापी जियरा ना जले, जिसमे अहि समाय । (शब्द॰) । (ख) ३ मार डालना । वध (को०] । 'भरपारि विल्लरी पिंगला अाह करत जिउ दीन्ह ।--जायमी अाहन--संज्ञा पुं० [फा०] लोहा । ग्र ९, १० २७२ । अरह खींचना = ठढी मॉम मरना । उमास अाहूनन-सा ५० [सं०] १ गट । ४ ।। २ मारना । टन। [४०1। बींचना । जैसे,—उमने तो शाह खीचकर कहा कि तेरे जी में हनी-वि० [फा०] लोहे का । जो अवेि, मो चर। माह पडना = गप पडना । विमी यो प्रार' -भज्ञा पुं० [{० महू ] ग म । नान । दिन । ३०--न दु ख पहुंचाने का फल मिलना । जैसे,—तुम पर उसी दु प्रिया तप कीन्ह छह है ज । याहूर ग न जा गिध के । जाप मी (शब्द॰) । की ग्राह पड़ी है 1 माह भरना= ठूढी माँस खीचना । उ०— ५० [सं० प्राहरण] नुः । । । चितहि जो चित्र कीन्ह, धन रो रो अग ममीप । महा सन्न प्रहर-- ग्राहर’---सद्मा १० [सं० प्राहुर7] [ग्र T० घार र म दुख अहि 'मर, मूर छ पूरी कामी |---जायसी (शब्द॰) । - जो मारी बिरह पोयरे में छोटा हो, पर तन प्रौद माम् में य: । श की, आग उठि तेहि लागे । इस जो रहा शरीर महू पख जरे हर-सी पुं० [में०] १ म्बीनार । प्रहरी । नेना । २ द र • ३. ३ घायु दो २१ रे 57 दे दी जा ३ :०)। व भाग ।-जाप्पी (शब्द०)। मह लेना= सताना । दुप