पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५५६

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| मासु आस्तिक प्रमु’ -क्रि० वि० [म० शु] ६० 'आशु' । उ०.--अनि के पाँ सेव--सज्ञा पुं० [म०] राजा की आज्ञा में वादी ( मुद्दई ) का परी देस नै, कोम ले प्रामु ही ईम सीता चले श्रोक को । प्रतिवादी (मुद्दालेह.) को हिरासत में रखना । रामच०, पृ० ११३ । प्रासेधक---वि० [सं०] दे० 'मेद्धा' [को०] । श्रामुग.-वि० संज्ञा पुं० [म० श्राशुग] दे० 'आशुग' ।। सेव--सज्ञा पुं० [फा०] [वि० अमेवी] १. भूत प्रेत को वाधा । प्रसूति- मन्ना झी० [अ०] १ प्रस्रवण । चुवाना । २ चुकर बनाई क्रि० प्र०-उतरना।--उतारना ।-नगना ।--होना । | जानेवाली ओपधिबिशेप । ३ प्रसव ! ४ स्थिरता [को॰] । २. कष्ट । दुम्ब (को०]। ३ अाघात । चोट [को०। ८. रोक । प्रसुतीवल-मज्ञा पुं० [अ०] १. कन्यापालक । वालिक का अमि वाघा [को०] । भावक । २. पुरोहित । ३. शराब उप्रानेचाना कलाल । ४. सेवन-संज्ञा पुं० [सं०] १ निरनर सेवन करना । २ मेलजो न । वलि देनेवाला व्यक्ति (को०] । | बराबर होने का भाव (को०] । आसुतोप'--सज्ञा पुं० वि० [म० आशुतोष] दे॰ 'आशुतोष' । । सेवा--सझा ली० [सं०] २० 'सेवन' (को०} । मुर–वि० [२०] १ अमुरमवधी । प्रासेवित--वि० [सं०] सतत किया हुअा । वहुत दिनों तक 57वहून[को०] यो०-- असुर विवाह = वह विवाह जो कन्या के मातापिता को प्रासेवी--वि० [सं० श्रावेविन् निरत र सेवन करनेवाला । अभ्यास द्रव्ये देकर हो । प्रासुरावेश = भूत लगना ।। [को०] । २ दैवी (को०)। ३. यज्ञादि न करनेवाला (को॰) । प्रासेव्य---वि० [म०] १ निरंतर मेवा के योग्य । ३ देखने योग्य [को॰] । प्रामुर--संज्ञा पुं० १,राक्षस १ अमुर। ३. विरिया । मोवर नमक । असेर --सच्चा पुं॰ [सं॰ श्रिय] किला |--(डि०) । कटीली । विड़े लवण । ३. रुधिर (को०)। सुरि--संज्ञा पुं० [म०] एक मुनि जो सारय योग के आचार्य कपिल । असोज, आसोजा+---सज्ञा पुं॰ [म० अश्रयुज्] आश्विन मास । | मुनि के शिष्य थे। ववार का महीना । उo-ग्राम रहीं ग्रामोज प्राइहैं पीव प्रामुरी'.-सज्ञा पुं० [म०] दे॰ 'मायुरि' । । | री ।—मुदर ग्र०, मा० १, पृ० ३६४ । मुरी --वि० वी० [म०] अगर गवधी । असुरो का । राक्षसी । साझ0 वि० म० भ्रास्मन् प्रा० अस्मि =इने+म० सम== वर्ष इस वर्ष । इस भाल । यौ० --सुदी चिकित्सा = गम्प्रविकित्सा । चौरफाड । असुरी | प्रास्कंद-सक्षा पुं० [म० भास्कन्द]१ नाग । ३. शोपण , ३ . माया = चक्कर में डाउनेवाली राक्षसी की चाल । असुरी सपत् १ अरसुरी सृष्टि । अाक्रमण । ४ ग्रारोहण । ५ युद्ध । ६ घोड़े की एक छान प्रासुरी-सच्चा स्त्री० १.राक्षम की स्त्री । ३०--कहू' किन्नरी किन्नरी ७ अपशब्द । तिरस्कार या अपमान ८. आक्रमण करने वाला ने वजावै । मुरी मुरी बाँसुरी गीत गावे ।—रामच, व्यक्ति को पृ० ९५ । ३ वैदिक छंदों का एक भेद । ३.राजिका । राई । स्कदन--सी पुं० [अ० स्कन्दन] दे॰ 'आम्कंद' । ४ मरमा । ५. शम्श्रचिकित्सा । चीरफाड (को०)। स्किदित-वि० [सं० स्कन्दित] १. भारग्नम्न । २. कुचना | गया [को०] । आसुरीस पत्-मुज्ञा स्त्री० [सं० प्रासुरीसम्पत्] १ राक्षसी वृत्ति । बुरे अस्किदित-भज्ञा पुं० घोडे की तेज मरपट वाल किो०] । कम की मचय । २ कूमार्ग में प्राई हुई सपत्ति 1 बुरी कमाई का धन । प्रास्कदी----वि० [सं० भास्कन्दिन्] १ अाक्रमणकारी । अक्राता । २. खर्च करनेवाला । ३ अपहर्ता (को॰] । मुसष्टि--मज्ञा स्त्री० [सं०] देवी अापति । जैसे,---आग लगना, पानी की वाइ, दुमक्ष अादि । | अस्तिर--संज्ञा पु० [सं०] १ बिछौना । बिछावन । २ हाथी की झन । मूत्रित-वि० [स०] १ मान बनानेवाला । मालाकार। २० माला ३ विछान ! फैलाना (को०] । | पहननेवाला । २ गुया हुअा [को०] । स्तरण-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ यज्ञवेदी पर बिछाए कुश । २ दरी । आसूदगी-मज्ञा झी० [फा०] तृप्ति । सुतोप । बिछौना । ३ फूल । ४, फैलाना । विछाना (को०] । सूदा--वि०[फा० श्रीदह ]१ सतुष्ट 1 तृप्न । २ सपन्न ! भरापूरा। अस्तरणिक--वि० [सं०] १ विम्तरे पर मोनेला । ३ फे या यो बिछाया जानेवान्ना [को॰] । यौ०--सूदा हाल = खाने पीने से खुश ! प्रासक-~मझा पु०[सं०]१. सिंगोना। अच्छी तरह भिगोना । २ मीचना । अस्तिार–सझा पुं० [सं०] छितराना या विघेरना [को०] । असेचन । जलसित करना । अच्छी तरह सींचना । [को०} } शास्तारपक्ति--सज्ञा पुं० [मे० प्रास्तार पद्धक्ति एक वैदिक छई की नाम जिसके पहले और चौथे चरण में १२ वर्ण और दूसरे सेक्य-वि० [अ० वैद्य क के अनुसार एक प्रकार का नमक। तथा तीसरे चरण में अाठ वर्ण होते हैं । यह मव मिनाकर ग्रामचन--मझा पुं० [सं०] १० 'मेक' । ४० वर्णो का छद है । । असिचन--वि० स०] म दर । लुभावना को०] 1 असेचनी-मझा खी० [१०] लघु पात्र [को०] । प्रस्तावे---सज्ञा पुं० [सं०] १ स्तुतिपाठ । स्तवन । २ यज्ञ में वह आमा--ज्ञा पुं० [म० अवेद्ध] बंदी बनानेवलि पनि । हिरासत स्थान जहाँ से स्तुतिपाठ किया जाता है [को०] । में लेनेवाला [को०) ।। आस्तिक-- वि० [सं०] १ वेद, ईश्वर और परलोक इत्यादि पर विश्वास करनेवाला । ३. ईश्वर के अस्तित्व को मानने वाला। ६२