पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५५३

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आसन ४६६ श्रेसिंमार्न वतला देना । वैठाना । आसन पेहचानना= बैठने के ढग से शासना-सद्मा पु०[स०] १ जीव । २ वृक्ष । घोडे का सवार को पहचानना । जैसे,—घोडा सवार को पह- आसनो--सज्ञा स्त्री० [म० अमन का हि० प्रल्पा०] छोटा ग्रामन । चानता है, देखो मालिक के चढ़ने से कुछ इधर उधर नही छोटा विना ।। करता । अासन पाटी = खाट खटोला । भोढने बिछाने की प्रामन्न--वि० [सं०] निकट अाया हुया । ममीपम्य । प्राप्त । वस्तु । श्रासन पाटी लेकर पडना = अटवाटी खटवाटी लेकर यौ० - ग्रामन्नकान =(१) प्राप्तकाल । अाया हुम्रा समय । पहना । दुख और कोप प्रकट करने के लिये ओढना प्रोढ कर (२) मृत्युकाल । ( ३ ) जिसकी समय आ गया हो । ( ४ ) या बिछौना बिछाकर खूब प्रहबर के साथ सोना । आसन जिसका मृत्युकाल निकट हो । प्रसन्नप्रसव= जिसे शीघ्र बच्चा बाँधना= दोनो रानो के बीच दबाना । जाँघो से जकडना । होनेवाला हो । प्रासन मारना=(१) जमकर बैठना । (२) पालथी लगा आसन्नता–सज्ञा स्त्री॰ [सं०] नै कटघ । सामीप्य । कर बैठना। उ०—मठ मडप चहुं पास सकारे । जपा तपा सये आसप्तपरिचारक---मझा पु० [म०] १ सदा मानिक के पास रहनेअसिन मारे ।---जायसी (शब्द०)। आसन लगाना=(१) वाला नौकर । निकटवर्ती सेवक । २ अगरक्षक (को०] । शासन मारना । जम कर बैठना । (२) टिकना । ठहरना। आसन्नभूत--मा स्त्री॰ [सं०] १ वह मूतकान जो वर्तमान में मिला जैसे,--वावा जी, अाज तो यही अमिन लगाइए । (३) किसी हुआ हो, अर्थात् जिने बीते योडा ही का? हुआ हो। २. कार्य के साधन के लिये शडकर बैठना । जैसे,—-यदि अाज ने भूतकालिक क्रिया का वह रूप जिसमे क्रिया की पूर्णता अौर दोगे तो यही शासन लगावेगा । (४) बैठने की वस्तु फैलाना । वर्तमान में उगकी समीपता पाई जाय । जैसे,—में जा रहा है। बिछौना विछाना । जैसे,--बाबा जी के लिये यही असन मैं अाया हैं। इसने खाया है। मैंने देखा है। लगा दो । आसन होना = रतिप्रसग के लिये उद्यत होना। विशेष---सामान्य मूत की अकर्मक क्रिया के प्रागे कर्ता के वचन २ वैठने के लिये कोई वस्तु । वह वस्तु जिसपर बैठे। और पुरुप के अनुसार है, है, हैं, ही लगाने में ग्रामन्नत किया विशेष-बाजार में ऊन, मूज या कुश के बने हुए चौखुटे आसन बनती है। पर सकर्मक क्रिया के अागे केवल कर्म के बचन के मिलते हैं। लोग इनपर बैठकर अधिकतर पूजन या भोजन अनुमार ‘है' या 'है' तीन पुरुप में लगता है। करते हैं। सिन्नमरण- वि० [सं०] जो छ ही देर में मरनेवाला हो [को॰] । ३ टिकाने या निवास । (साघुस्रो की बोली)। ४.माधुग्रो । असिन्नमृत्यु--वि० [सं०] दे० 'आसन्न मरण' ।। का डेरा या निवास स्थान । आसपास--०ि वि० [सं० स = मामीप्य अयवा अनुध्व० प्राप्त +म० क्रि० प्र०--करना = टिकना । डेरा डालना ।—देना= टिकाना । पाश्चं] चारी श्रोर । निकट । करीव । इर्द गिर्द । इधर ठहरानी । हेरा देना ।। उधर । अगल बगल । उ०—तब सरस्वती मी फेक साँस, ५ चूतड । ६ हाथी का कघा जिसपर महावत वैठता है । श्रद्धा ने देखा सिपाम ---कामायनी, पृ० २४७ । ७ सेना का शत्रु के सामने डटे रहना । ६. उपेक्षा की नीति आमवद-संज्ञा पुं० [सं० अरश्रय + बद] एक होगा, जो पटवो के पैर से काम करना । यह प्रकट करना कि हमे कुछ परवाह नहीं है। के अंगूठे में बँधा रहता है। इसी तागे ने जेवर को अटकाकर विशेष---इस नीति के अनुसार शत्रु के चढ अाने या घेरने पर भी गूथते हैं । राजा लोग नाचरग का सामान करते हैं। आसमाँ-सज्ञा पुं० [फा०] दे० 'असमान' । तटवा ने नि समान-सच्चा पुं० [फा०, मि० वै० म० अश्मन् = प्रकाश] १ अाक्रमण के रोके रहने की नीति । १० एक दूसरे की शक्ति प्रकाश । गगन । २ स्वर्ग । देवलोक । उ०—-चहू अोर सब नष्ट करने में असमर्थ होकर राजाप्रो की सुधि करके चुपचाप नगर के लसत दिवाले चारु । असमान तजि जनु रह्यो गीरवान रहे जाना। परिवारु --गुमान (शब्द॰) । विशेप-यह पाँच प्रकार का कहा गया है--विगृह्यासन, सधाना मुहा०—आसमान के तारे तोडना= कोई कठिन या असभव कार्य सन, स भूयासन, प्रसंगासन प्रौर उपेक्षासन । करना । जैसे,—कहो तो मैं तुम्हारे लिये आसमान के तारे तोड लाऊँ । आसमान जमीन के कुबाले मिलाना=(१) खुब लबी आसन-सा पु० [सं०] १ जायफ नाम का अष्टवर्गीय पधि । २ | जीरक । जीरा । चौडी हाँकना । सूय बढ़ चढकर बातें करना । (२) गहरा शासना -- क्रि० अ० [स० अस् = होना] होना। उ०—(क) है। जोड़ तोड़ लगाना । विकट कार्य करना । आसमान शाकना या नाही कोइ ताकर रूपा । ना ग्रोहि सन कोइ हि अनूपा। - ताकना = (१) घमह मे सिर ऊपर उठाना। तनना । (२) —जायसी ग्र०, पृ० ३ । (ख) मरी उरी कि टरी विया, मुर्गेबाजों की बोली में मुर्ग का मस्त होकर लड़ने के लिये तैयार कहा खरी, चनि चाहि । रही कराहि कराहि अति अब मुंह होना । झडप चाहना । (जब मुर्ग जोश में भरता है तच असशाहि न शाहि ।—बिहारी र०, दो० ५६ । मान की ओर देखकर नाचता है । इमी से यह मुहावरा बना विशेष-इस क्रिया का प्रयोग वर्तमान काल में ही मिलता है। है) । जैसे,—अब तो मुर्गा आसमान झाँकने लगा । आसमान और इसका रूप 'हि' या हि का ही कोई विकारी रूप टूट पड़ना = किसी विपत्ति का अचानक आ पडना । वज्रपाते होती है। होना । गजर पड़ना । जैसे,—क्यो इतना झूठ बोलते हो।