पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५५२

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सिन इच्छानुकून फन मिलना । उ०—-एक बार आस सत्र पूजी । आसदन--संज्ञा पुं॰ [सं०]१. लाभ । गुनाफा । २ वध | गपके । ३ अब कछु कहब जी म करि दूजी ।—मानस, २१६ । ग्रास निकटता । समीपता । ४ वैठने की क्रिया । वैठना । ५, पुरना= दे० 'अास पूजना' । आस बँधना= अाणा उत्पन्न असन [को०] ।। होना । जैसे,—रोगी की अवस्था कुछ सुधरी है, इसी से ग्रास असन-सज्ञा पुं॰ [सं०]१ स्विति । बैठने की विधि । वैठक । जैसे, वंधती है । प्राप्त लगना = अशा उत्पन्न होना । प्रास ठीक अासन से बैठो। लगानी= अशा बाँधना । श्रास होना=(१) अाशा होना। विशेप-- यह अप्टाग योग का तीसरा अंग है और पाँच प्रकार का (२) सहारा होना। अश्रिये होना । (३) गर्भ होना। गर्म होता है-पद्मासन, स्वस्तिकासन, मद्रारान,जामनौरवोमन । रहना । जैसे,—तुम्हारी बहू को कुछ अास है। कामशास्त्र या कोक शास्त्र में भी रतिप्रसंग चेः ८४ अमन हैं। यौ -से ग्रौलाद । यौ०- पद्मामन । सिद्धासन । गरुडासन । कमलामन । मयुरामन । प्रास'-- माझा स्त्री० [स० अशा दिशा । उ०- जैसे तैसे वीतिगे मुहा०—ासन उखड़ना = (१) अपनी जगह से हिल जाना।(२)घोड़े कलपत द्वादश मास । अाई वहुरि बसंत ऋतु विमल भई दस की पीठ पर रान न जमन ।। जैसे,—वह अच्छा मवार नहीं है, उसका आसन उपड जाता है । मन उठना= स्थान आस ।—रघुराज (शब्द॰) । छूटना । प्रस्थान होना । जानना । जैसे,—तुम्हारा शासन यही असि--सा पु० [सं०] १ धनुप । केमोन । २ चूतड । ३ आसन से कब उठेगा ? प्रासन करना=(१) योग के अनुसार अग (को०)। ४ उपवेशन । वैठना (को०) । ५ सनिधि । को तोड़ मरोडकर बैठना । (२) वैठना । टिकना । ठना । सामीप्य (को॰) । जैसे,—उन महात्मा ने वहाँ असिन किया है। शासन कसना= यौ---कप्यास। अगों को तोड़ मरोड कर बैठना। शासन छोडना= उठ सकत-संज्ञा पुं॰ [स० अशक्ति] [वि॰ सकती, क्रि० असकताना जाना। चला जाना । अासन जमना = (१) जिस स्थान | सुस्ती। अस्य । पर जिस रीति से बैठे, उसी स्थान पर उभी रीति में स्थिर सकती- वि० [हिं० ग्रासफन +ई (प्रत्य॰)] अलसी । रहना । जैसे,—-अभी घोड़े की पीठ पर उनका असिन नहीं असक्त--वि० [सं०] १ अनुरक्त । लीन । लिप्त । जैसे,-इद्रियो मे जमता है । (२) बैठने में स्थिर भाव अाना । जैसे,--अब तो प्रसवत रहना ज्ञानियो का काम नही । २. अाशिक । मोहित । वहीं अासन जम गया, अर्थ जल्दी नही उठते । असिन जमाना = लुब्ध । मुग्ध। जैसे -वह उस स्त्री पर असक्त है । ३ विश्वास स्थिर भाव से बैठना । जैसे,—वह एक घटी भी नहीं प्रासन माननेवाला (को०)। जमकर स्थिर भाव से नही बैठता। अमन जोडना= सिक्ति--सच्चा स्त्री० [स०]१ अनुरवित । लिप्तता । २. लगन् । चाह ! दे० 'असिन जमाना' । असन डिगना = (१) बैठने में स्थिर सति--सझा स्त्री० [हिं०] दे० 'असत्ति' । उ०—श्रावति कहू न भावे न रहना । (२) चित्त चलायमान होना । मन टोलन।। देखिहू, विन नाव तुम्हारे 1-- कवीर में ०, पृ० १५२ । इच्छा और प्रवृत्ति होना । (जिसमें जिस बात की जा न हो सतीन--सज्ञा स्त्री॰ [फा० ग्रीस्तीन] दे॰ 'आस्तीन' । वह यदि उस बात को करने पर राजी या उतारू हो तो असते --क्रि० वि० [फा० आहिस्तह.] १ धीरे धीरे। उ० उसके विषय में यह कहा जाता है । जैसे,--(ब) जप रुपया पौन करि असते न जाऊँ उठी बास ते, अरी गुलावपास दिखाया गया, तव तो उसका भी आतीन डिग गया (ग) उस सुदरी कन्या को देख नारद का अाशन दिग गया । | ते, उठाउ आसपास ते ।-पद्माकर ग्र०, पृ० १२२ । २. असन ढिगाना=(१) जगह से विचलित करना । (२) चित्त होते हुए । को चलायमान करना । तो में या इच्छा उत्पन्न करना । असते?--क्रि० अ० [हिं०] दे० 'शासना' । अासन डोलना =(१) चित चलायमान होना। लोगो के आसतोप--वि०, सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'आशुतोप' । उ०—समरथ विश्वास के विरुद्ध किसी की किमी वस्तु र इच्छा या दूलनदास के असतोप तुम राम ।सतवानी॰, भा॰ १, प्रवृत्ति होना । जैसे—-मैनका के रूप को देय विश्वामित्र का पृ० १३७ ।। भी आसन डोल गया । (ख) रुपए का लालच ऐना है कि असत्ति-सुज्ञा स्त्री० [सं०] १ सामीप्य । निकटता । २ अर्थबोध के वडे बडे महात्मा का भी शासन डोन जाना है। (२) चित्त लिये विना व्यवधान के एक दूसरे से संबंध रखनेवाले पदो या क्षुब्ध होना । हृदय पर प्रभाव पड़ना । इदय में भय और शब्दो का पास पास रहना । जैसे,---यदि कहा जाय कि वह वरुणा का संचार होना । जैरे,--(क) विश्व मम । घोर तप को देख इद्र का प्रावन दोन उठा । (7) नव प्रजा पर खाता था पुस्तक और पढता था दाल चावल' तो कुछ बोध बहुत अत्याचार होता है, तब भगवान् । प्रागन र इटना नहीं होता, क्योकि असत्ति नहीं है । पर यदि कहें कि 'वह है । पासन डोल = फहारो की योनी । जब पानी का रायार दाल चावल खाता था और पुस्तक पढ़ता था तो तात्पर्य बीच से विनफफर एक अोर होती है पर पान ची पार सुना जाता है। पदो को अन्वये श्रमत्ति के अनुसार होता है। ३ प्राप्ति । पाना । लाम । (को०)। मेले । स गति (को०)। भक जाती है तब कहार वोग पर याय या उनै ।। प्रसिथा -संज्ञा स्त्री० [सं० अास्था] अगीकार !--[हिं० )। पासन तले माना=वना में माना। अधीन Pो । अनि पासथान--सुज्ञा पु० [सं० मास्थान] दे॰ 'मास्यान'। देना=सत्कार्य बैठने के लिये कोई नु ये देना या