पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४८

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शिफल आशित ।। अशफल-सझा पु० [सं०] एक प्रकार का वृक्ष जो मद्रास, विहार आशातीत--वि० [स] अशा से बहुत अधिके । अगा में परे (को०] । और बगाल मे वहुत होता है। इसकी लकड़ी वहुत मजबूत शानिर्वेदिसेना--सज्ञा स्त्री० [सं०] विजय से हुनाश देना। होती है और सजावट के असवाव बनाने के काम में आती है। विशेप कौटिल्य ने लिखा है कि प्रशानिर्वेदि तथा परि मृप्त प्राशय-सज्ञा पुं० [सं०] १ अभिप्राय । मतलव । २ वासना । इच्छा । (भगोडे) सेना में ग्राम निवेदि उत्तम है, क्योकि वह अपना जैसे,—ईश्वर क्लेश, कर्मविपाक और प्राशय से रहित है। स्वार्थ देखकर युद्ध के लिये तैयार हो जाती है । यौ--उच्चाशय । नीचाशय । महाशय । अाशापाश-सज्ञा पुं० [सं०] अायाग्रिो का फदा, जाल या वेधन । ३, स्थान । अाधार । जैसे,—ग्रामाशय, ग मशिय । जलाशय । आशविघ---सज्ञा पुं० [स ० भाशावन्य प्राणापति का विश्वमि या पक्वाशय । ४. गड्ढा । खात । ५ कटहुल । पनश । ६ | बंधन [को०] । अभ्युदय । उन्नति कि०] । ७ छन । संपत्ति (को०)। ८ कजूम। आशावद्ध---वि० [सं०] तरह तरह की अशा में पड़ा या लटका कृपण [को०] । ६. अन्नागार । वखार (को०) । १० भाग्य । । हुआ । निन [को० । ११ विश्रामस्थान (को०)। १२. घर । गृह ।। आशाभंग----सज्ञा पुं० [म० प्रशाभङ्ग] प्राशा टूटना । । का न (को०)। १३. जंगली जानवरो को फंसाने का गड्ढा ।। रह जाना [को०] । अवट को०] । शर-संज्ञा पुं० [सं०] १ 'राक्षम । उ०—काहू कुहू गर अमर आशार-सज्ञा पुं० [सं०] अाश्रयस्थान । सुरक्षा की जगह [को०] । मारिय । प्रारत शब्द प्रकाश पुकारिय ।--केशव (शब्द॰) । शालुब्ध-वि० [सं० प्रशालुघ, प्रा० श्रीमालुद्व) आणा के कारण २. अग्नि । लोभ में पड़ी हुई । अाशालुव्ध । ३०---प्रासालुब्धी हूँ न मुडय प्राशा-सज्ञा स्त्री० [म०] १ अप्राप्त के पाने की इच्छा और थोडा सज्जन जजालेइ । ढोला०, ८० २०६ । वहुत निश्चय । जैसे,-(क) अशा लगाए बैठे हैं, देखें कव अशावेसनमज्ञा पुं० [सं० अशी + वसन] दिशाएं जिनके वस्त्र रूप उनकी कृपा होती है । (ख) अशा मरे, निराशर जीए । में हैं अयत् १ शिव ! २ शुक्र । ३ सनरकुमार ग्रादि । ४. २ श्रमिलपित वस्तु की प्राप्ति के थोड़े बहुत निश्चय से । दिगंबर साधु । संतोप । जैसे,---अाशा है, क रुपया मिल जायेगा। अशावह-सज्ञा पुं० [स०] १. ग्रादित्य । सूर्य । २ वृष्णि [को॰] । क्रि० प्र०-फरना ! तोडना । - लगाना |--रखना । शासन-संज्ञा पु० [सं०] किसी वस्तु की आकाक्षा करना या तदर्य मुहा०—ाशा टूटना = शाशी में रहना । आशा भग होना । निवेदन [को०) । जमे,---तुम्हारे नहीं कर देने से हमारी इतने दिनो की अशा टूट अशिसिनीय’---वि० [सं०] अकासनीय । अभिलपणीय [को०] । गई । आशा तोड़ना= किसी को निराश करना । जैसे,—इम अशिसिनीय-सज्ञा पु० १ आशीर्वचन । २ आकाक्षः । स्पृहा (को॰) । तरह किसी की श्राशा तोडना ठीक नहीं । आशा देना= किमी अाशास्य-वि०, संज्ञा पुं० [स०] ६० प्रणासनीय' (को०)।। को उम्मेद बँधाना । किमी को उसके अनुकूल कार्य करने का प्रशिजन---सज्ञा पुं० [स० आशिञ्जन] भूपणों की झpति [को०] । वचन देना । जैसे,---किसी को अशा देकर धोखा देना ठीक अागिजित-वि० [म० अशिञ्जित झन । झकार करता है। [को०)। नही है । आशा पूजना= शाशा पूरी होना । अशा पूरी होना= आणि-सज्ञा स्त्री० [सं०] भोजन ! खाना । भक्षण (को०] । इच्छा और स भावना के अनुसार किसी कार्य या घटना का प्रशिक-संज्ञा पुं० [अ० अाशिक] प्रेम करने वालो मतुष्प । चित से होना । जैसे,---बहुत दिनो पर हमारी प्राशा पूरी हुई । | चाहनेवाला मनुष्य । अनुरक्त पुरुष । प्राशा पूरी करना= किमी की इच्छा और निश्चय के अनुसार प्रशिक-वि० प्रेमी । अशक्त । चाहनेवाला । मोहित । कार्य करना । श्रीशा बँधना=ग्राशा उत्पन्न होना । जैसे,— क्रि० प्र०—होना ।। रोग कमी पर है, इसी से कुछ प्राशी बँधती है । अाशा यौ०-~-श्रामिकतन । शिकजार = अनुरक्त प्रेमी । उ० --- वेकरार घाँधना= प्रा शा करना । प्रशिकजार भाँति भाँति की बोलियाँ बोल रहे हैं ।-प्रेमपन०, य-ि-अशातीत । अाशापाश। झाशावद्ध 1 प्रशाभग । आशा भ०ि २, पृ० ११८। थाशिकनवाज = प्रमियो पर दयानु । रहित । अवान् । निराश । हताश । आशिक माइक = प्रेमी और प्रेमिका या प्रेमाय । श्राशिफ३. दिशा । मिजाज =(१) अाशिकाना मिजाज का । प्रेमी हृदय की । य-प्राशागज = दिग्गज । आशापाल = दिपाले । आशावसन - (२) दिलफेक (व्यग्य) ।। दिगंवर । ०---प्रशासन व्यसन यह तिनही । रघुपति आशिकाना-वि० [अ० अरशिकूनह] अाशिकों की तरह का । प्रालिकों चरित होहिं तहँ सुनहीं 1--तुलसी (शब्द॰) । का सा । शाशिकों के ढग का । ४ दक्ष प्रजापति की एक कन्या । ५. सगीत में एक राग जो "मैरव राग का पुत्र कहा जाता है । आशिकी-संज्ञा स्त्री० [५० अाशिक + फा० ई (प्रत्यo)] प्रेम 1 मुन्न । अशाढ़-सा पुं० [स० अशाद] ग्रापाढ । शित-वि० [स०] १. अशित । छाया हुआ।। २. करके तृप्त। ३. अधिक भोजन करनेवाला [को०] । ६१