पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४७

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प्रवृत्तिदीपक आशनाई। कर जान्न । २ पाठ करना । पढना। ३ घूमना । लौटना प्रवेशिक-वि०१ असामान्य । असाधारण । २ व्यक्तिगत । स्वगत । ०] । ४ पलायन [को०] । ५ संसृति । समरि [को०)। ६ निजी । ३ अतनिहित (को॰] । किसी पुस्तक ग्रादि का पुनमुद्रण । सास्करण। भावेष्टक--संज्ञा पु० [सं०] १ घेर । २ जाल [को॰] । क्रि० प्र०—करना ।--होना । आवेष्टन-सज्ञा पुं० [म ०] [वि० श्रावेष्टित] १ . छिपाने या ढंकने आवृत्तिदीपक-सज्ञा पुं० [म०] दीपक अल कार का एक प्रकार जिसमे । का कार्य । २ छिपाने या ढंकने की वस्तु । ३. वह वस्तु क्रियापदो की अनेक वार प्रवृत्ति होती है (को०] ।। जिसमे कुछ लपेटा हो । बेठने । ४ चहारदीवारी । आवृष्टि-सझा डी० [सं०] दृष्टि । वर्षा [को॰] ।। आवेष्टित- वि० [ स० ] १ छिपा हुआ! ढंका हुआ । २ अवेग--सज्ञा पुं० [सं०] १ चित्त की प्रवल वृत्ति । मन की झोक । प्रवेष्टनयुक्त । जोर । जोण । जैसे,- क्रोध के आवेग में हमने तुम्हे वे बातें आवेश(७- सज्ञा पु० [ म० श्रावेश, प्रा० प्रायेस ] दे॰ 'अवैश' । कही थी। २ रस के सवारी मावो में से एक । अकस्मात् उ०--वाको सेवा के श्रावेस में खाइवे की मुवि हैं न रहती।इष्ट या अनिष्ट के प्राप्त होने से चित्त की आतुरतः । दो सौ घाव न०, भा० १, पृ० २११ । भावेजा--संज्ञा पुं० [फा० अावेजह, ] १ लटकनेवाली वस्तु । २ श्रावन्न(G)---संज्ञा पुं० [स० श्रावरण] अाच्छादन । घेरा। उ०--- किसी गहने में शोभा के लिये लटकती हुई वस्तु । जैसे,— दह कोह से स्वामि आराम छुटौ । पछे पग रा मेन व्रिन्न लटकन । झुलनी इत्यादि । उटौ ।--पृ० ०, ६।। २२३७ ।। आवेदक--वि० [सं०] निवेदन करनेवाला । प्रार्थी। शिकनीय- वि०सि० प्राडूनीय] प्राण कीयोग्य । मदेहास्पद [को०)। आवेदन-सज्ञा पु० [ म० ] [ वि० आवेदक, आवेदनीय, आवेदित, प्रागक-सज्ञा स्त्री॰ [ स० शङ्का ] [ वि० प्रशवित ग्राशंकनीय । आवेदी, अवेद्य ] अपनी दशा को सूचित करना। १ हर । भय । खौफ । ४०-उने अपने गिर जाने की अश की निवेदन ! अर्जी । यी ----कान्न, पृ० ६४।२ क । वहा । स देहू । ३. क्रि० प्र०--करना। अनिष्ट की भावना । यौ०--अावेदनपत्र । अाशकित--वि० [८० प्राशङ्कित] १ इ हुमा । भयभीत । २ अावेदनपत्र - सज्ञा पुं० [सं०] वह पत्र या कागज जिसपर सुधार की । | देहात्मक । सदेहयुक्त । श्राप से कोई अपनी दशा लिखकर सूचित करे । प्रशिकित-वि० १. सदेह । शक । २ 'भय । र सो०] । आवेदनीय- वि० [सं०] निवेदन करने योग्य । अशिसन-सज्ञा पु०[स०]१ ग्राशा करना । इच्छा करना । २ कहना । आवेदित-वि० [सं०] निवेदन किया हुआ । सूचित किया हुआ । घोषित करना (को०] । आवेदी--वि० [सं० अाबेदिन्] निवेदन या सूचित करनेवाला ।। अशिंसा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ इच्छा ! २ अशा । ३ संकेत । ४. अवेद्य--वि० [म०] दे० 'आवेदनीय' ।। भाषण । कथन । ५ कल्पना [को०] । ग्रावेलतेल- सज्ञा पु० [ देश ०] १ नारियल का वह तेल जो ताजी आशसित--वि० [सं०] १ इच्छित । २ परिकल्पित । ३ कथित । गरी से निकाला गया हो । २ वह तेल जो मूखी गरी से । ४ मचा हुआ (को॰] । निकाला जाता है । 'मुठेल' का उलटा । पाशसि1T-वि० [सं० ।श सि]] १. अशा या इच्छा करने वाला। आवेश----सज्ञा पुं० [सं०] १ व्याप्ति । संचार । दौर । २. प्रवेश । ३. २ वक्ना। कथन करनेवाला मि] । चित्त की प्रेरणा । झोक । वेग । आतुरता । जोश । अशिसो-वि० [सं० प्रशसिन्] दे॰ 'प्रशिसिता' [को॰] । उ०--क्रोध के प्रदेश में मनुष्य क्या नहीं कर डालता । श्राशसु-वि० [म ०] दे॰ 'प्रशमिता' (को०]। --(शब्द०)। ४ भूत प्रेत की वाधा । ५ अपस्मार। आज-सज्ञा पुं० [सं०] अाहार । भोजन (समाम में प्रयुक्त) [को०] । मृगी रोग । ६. सकल्प । अभिनिवेश ! अाग्रह (को॰] । ७ । प्रशिक---वि० [म ०] खानेवाला । भोजन करनेवाला को०)। गर्व । मद वै] । अाशकार-सज्ञा पुं॰ [ स ० अविष्कार, फा० आशिकार, प्राश कारा, श्रावेशन--सच्चा पु० [म०] १ चद्र या सूर्य की परिधि वा परिवेश । २ घाशकारह । प्रवट । खुला हुआ। स्पष्ट । उ०—जहाँ प्रवेश | ३ कोप । क्रोध । ४ शिल्प शान्ना। शिल्पकेंद्र । ५. देखो वहां मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है। उसी का सव है। भूत प्रेतादि का प्रवेश [को०] । जलवी जो जहाँ मे आकारा है ।--भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, आवेशनिक--संज्ञा पुं० [सं०]मित्रों को दिया जानेवाला भोज । [को०] । पृ० ८५१।। प्रवेशिक'--सज्ञा पुं० [सं०] १ राजशेखर के मतानुसार कवियों की प्राशना--सज्ञा उभ० [फा०] १ जिममे जान पहचान हो। २ एक श्रेणी । मंत्र ग्रादि के वल से प्राप्त सिद्धि द्वारा ग्रावेश की चाहनेवाला । प्रेमी । ३. प्रेमपात्र । जैसे,—(क) वह औरत स्थिति में वविता करनेवाला कवि । २ अतिथि । अभ्यागत उसकी अाशना है । (ख) वह उस औरत का शाशना है । [को०] । ३ अतिथिमत्कार । अातिथ्य को०] । ४, भीतर जाना। आशनाई--संज्ञा स्त्री० [फा०] १ जान पहचान । २. प्रेम । प्रीति । प्रवेथ करना । घुसना [को॰] ।' दोस्ती । ३ अनुचित सबध ।